उन्हें खुल कर उड़ने को पूरा गगन दिया.
जितनी जरुरत थी उतनी ही ढील दी.
चाँद-सूरज को छू लेने की आस लिए
पतंगे अपनी मंजिलों की और भाग रहीं थीं.
कि राह में उन्हें ऊँची इमारतों
बिजली के खम्भों ने रोक लिया
अब अधर में लटक कर तूफानी हवा के थपेड़ों से चीथड़ों में बटना
या फिर बारिश के पानी में गलते रहना
क्या यही उनकी नियति होगी?
लेकिन मैंने अपनी आँखें मूँद ली हैं
कान बंद कर रखे हैं
क्योंकि मैंने पतंगों की डोर
अपने दिल के तारों से जोड़ रखे थे .