Monday, October 18, 2010

खुशियाँ हमारे चारों ओर हैं ।

एल्बम के पन्नो में
पुराने दराज के कोने में ,
अलमारी के किसी कपडे में ,
गद्दे के नीचे किसी खत में ,
ख़ुशी छुपी पड़ी है ,उसे ढूंढ़ लो ।
बरसात के सूखे तौलिये में ,
जाड़े की गुनगुनी धुप में ,
गरम चाय की चुस्कियों में ,
ठेले के चटपटे भुट्टों में ,
सुख कहीं आस-पास है ,उसे समेट लो .
पुराने स्कूटर के स्टार्ट हो जाने में ,
भरी बस में सीट मिल जाने में ,
देर रात ऑटो मिल जाने में ,
बॉस के अचानक छुट्टी पर चले जाने में ,
मस्ती इन्ही में है , इन्हें इंजॉय करो .

1 comment:

  1. जी हाँ खुशियों का कोई भी स्वरूप हो सकता है और वे कभी भी टपक सकती हैं.

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