Friday, July 1, 2011

काफी बड़ा परिवार है हमारा .दो दादाजी की बीस संताने .दस भाई- दस बहनों का परिवार है .मेरे पिताजी तीसरे नंबर पर थे । मधुबनी का शिवनगर गावं.बड़े दादाजी आजीविका के लिए काफी पहले गुजरात के जामनगर चले गए थे .हमारे दादाजी गावं में ही रह गए ,बड़े ही अक्खड़ स्वभाव के .कभी कुछ किया नहीं फिर भी मस्ती में रहे .लेकिन किस्मत की बात ,अभावों के बीच रह क़र भी सभी दसों भाई ऊँचे पदों पर पहुंचे । परदेश में नौकरी के कारण ,प्रायः सब का गावं छूट गया लेकिन शादी व्याह ,जनेऊ ,मुंडन में यथा संभव सभी मिलते जुलते रहे ।
गावं के पुराने वाले आँगन में जब दसों भाई और दादाजी लोग इकठ्ठा खाने के लिए साथ में ओसारे पर बैठते तो जगह काम पड़ जाती ,फिर दूसरी ओर पीढ़ा लगाया जाता था .अगर कोई चीज लोगों को अच्छी लग जाती थी तो घर की महिलाओं के लिए नहीं बच पाता था .खाना परोसने का काम बड़ी दादी के जिम्मे था ,क्यों की सभी चाचियाँ पर्दा करती थीं .दादी हम बच्चों की सहायता से खूब प्रेम से खिलाती थीं । होली के समय तो दामादों की शामत आ जाती थी फिर भी,पता नहीं क्यों दूसरी वार फिर आजाते थे .ऐसा लगाव था ।
शिवनगर के लोग बारातियों का बड़ा लुत्फ़ उठाते हैं .क्या मजाल जो कोई बारात बिना किसी वाकये के शिवनगर से चला जाये .कोई न कोई मजेदार वाकया बन ही जाता है .चाहे कपड़ों में खुजलाने वाला फल लगाना हो या चोरी से जेब में मिठाई डाल कर सबके सामने मजाक उड़ना हो । पुतुल दीदी के दुरागमन में तो इमरजेंसी के नाम पर बारातियों को ऐसा डराया की ज्यादा की संख्या में जो चले आये थे ,रातों रात गावं छोड़ कर भाग खड़े हुए .भले दीदी को ससुराल पहुँच कर ताने सुन ना पड़ा हो ।
फिर परिवार बड़ा हुआ ,गावं का आँगन छोटा पड़ने लगा .कमरे भी कम थे .लोग बाहर ही शादी व्याह करने लगे .इसी बीच चारों दादाजी दादी गुजर गए .नए बच्चों का गावं से लगाव उतना नहीं रहा .कम आने -जाने की वजह से हमारी जमीन दखल की जाने लगी ,तो चाचाजी लोगों ने अपने जमीन को घिरवा लिया .इस से बड़ा अच्छा हुआ .बगीचा वगेरह सुरछित होगया .कुछ नए कमरे भी बने .पुराने तालाब का पुनर उद्धार हुआ .नया तालाब भी ख़रीदा गया
रिटायमेंट के बाद गावं में कोई बसे ,ऐसा सोचते तो सब थे ,लेकिन खुद कोई रहने के लिए तैयार नहीं हुआ .आखिर जाम नगर वाले मोटा चाचा ने गावं में रहने की ठानी .कुछ दिनों तक बेचारे रहे भी मगर ,घर में गैस रिसाव की दुर्घटना में उन दोनों की दर्दनाक मृत्यु हो गयी .अब गावं का घर अफवाहों से घिर गया .कोई कहता था घर से रोने की आवाज आती है .कोई कहता रात में कोई दौड़ता है .वगेरह वगेरह .अब तो घर के लोग भी रात में उस आँगन में रुकने से कतराने लगे ।
पिछले दो तीन सालों से मेरे भतीजों के जनेऊ की बात चल रही थी .कोई भी भाई गावं में उपनयन करने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे .सब की यही इच्छा थी देवघर जहाँ बड़े काका रहते हैं ,-उपनयन कर लिया जाये .गावं में कोई आयोजन करना सचमुच बड़ा कठिन काम है वो भी तब जब आप वहाँ नहीं रहते हों आँगन चूँकि काफी दिनों से खाली पड़ा था इस लिए घर लगभग खंडहर बन गया था ,नल सुख गया था ,बगीचा जंगल बन गया था .लेकिन काका के बेटे नरेन्द्र और उसकी पत्नी नूतन ने गावं में ही जनेऊ करने की ठानी ,यह उनकी हार्दिक इच्छा थी .सभी बड़े बुजुर्गों भी मन से यही चाहते थे .भाई लोग पैसों से तो सभी तरह सहयोग देने के लिए तैयार थे ,मगर किसी के पास उतनी छुट्टियाँ नहीं थी .कुछ भाइयों ने तो पहले ही पल्ला झाड़ लिया .अंत तः ढब्बू ,बुआ और पवन राजी हुए .कुल मिला कर छः बरुआ हुए .इशु ,नमन,आदित्य ,उदित ,यश और हर्ष ।
इतने बड़े आयोजन के लिए काफी पहले से तैयारियां शुरू की गयीं .घर की मरम्मत -चूना - सफाई -शौचालय -बाथरूम ,काका,माँ,नरेन्द्र और नूतन ,कुछ दिन गावं में जा कर रह कर तैयारी करवा आये काका तो वहीँ रह गए । ११ जून को उपनयन होना था .इस के लिए ६ ता.को उद्योग का दिन तय हुआ .हम सभी बहने और घर के बाकि लोग उसी दिन से पहुँच गए .मै तो पूरे चौदह साल बाद अपने गावं गयी थी .गावं काफी कुछ बदला हुआ लगा ,लेकिन मूल स्वरुप वही है .घर सब पक्के के बन गाते हैं .सबसे दुखद पहलु ये की प्रायः सभी घरों का बटवारा हो चुका था .छोटे से आँगन के बीचों बीच दीवार दे कर आँगन को और छोटा कर दिया गया था .जिसकी वजह से संकरी गलियां बन गयी थीं ,उसके अन्दर से बहती गन्दी नलियाँ .किसी को साफ सुथरा रहने की कोई जरुरत महशुस नहीं होती है .खैर ...... फिर भी खूब अच्छा लग रहा था .नए लोगों ने तो नहीं लेकिन पुराने लोगों ने पहचाना .एक दिन तो मै ,साधना दी और हेमा .पुरे गावं में बैना बाँटने चल पड़े .लोगों ने हमें खूब सराहा .बड़ा अच्छा लगा ।
जैसे जैसे जनेऊ का दिन पास आने लगा मेहमान बढ़ने लगे .फिर तो वो गहमा गहमी रहने लगी की कैसे दिन बीत जाता था पता ही नहीं चलता था .कितने ही लोगों से मै सालों बाद मिली थी .जून की उमस वाली गर्मी में ,गावं मेबिजली नहीं, पंखा नहीं ,नल का पानी नहीं ,और सबसे बड़ी बात टी .वी .नहीं .लेकिन हम में से किसी को कभी इन चीजों की जरुरत ही महशुश नहीं हुई.बच्चे भी गावं के खुले वातावरण में मगन हो गए थे ।
सुबह उठ कर चाय .वो भी एक नंबर-चाय -खूब दूध -खूब चीनी -खूब पत्ती -एकदम कड़क चाय .मजा आ जाता था .पुरे दिन ,सिर्फ गप शाप ,हंसी ठहाके ,नाश्ता -खाना .खाना बनाने वाला पंडितजी भी अपने गावं का ही था .बड़े ही मनोयोग से खाना बनता था .बाकि कामो के किये ढेर सारे कार्यकर्ते थे ही.शहर की तरह नहीं एक ढूंढे नहीं मिलता है । जनेऊ वाले दिन तो हमारे नजदीकी रिश्तेदार ही करीब डेढ़ -दो सौ के करीब होंगे .जबकि कितने तो आ नहीं सके और कितनो को बुलाया ही नहीं गया .फिर दूसरे दिन माँ का एकादशी उद्यापन होना था ,इस किये काफी लोग रुक गए .जागरण में तो जो शाम के चार ही बजे से गाने की महफ़िल जमी तो सारी रात हम लोग गाते ही रह गए .गाने वालों में साधना दी ,पुतुल दी ,बड़ी काकी ,मुख्य थे लेकिन नरेन्द्र ढबू ,मिथलेश ,लाल मामा, ठाकुरजी ,काका ,ऐसे लोगों ने गाया जो काफी दिनों से गाना छोड़ चुके थे ।
आते समय हम सभी को रोना आरहा था.एक तो इतने दिनों साथ रह कर बिछुड़ना बड़ा अखर रहा था ,ऊपर से इस बात का दुःख की पता नहीं अब कब मिलना हो .हम लोग रो-रो कर विदा हुए ,फिर से मिलने का वादा कर के .अपने गावं में बीते ये दिन मुझे ही नहीं सबके लिए यादगार बन गए हैं .

Tuesday, June 28, 2011

इस वार जब इनका रूटीन ब्लड टेस्ट करवाया तो उसमे इनके खून में सुगर की मात्र बढ़ी हुए थी .यानि की डायबिटीज की घंटी बज गयी .दूसरे दिन सुबह -सुबह ही इन्होंने कहा अब तो मै बिना चीनी के ही चाय पियूँगा ।
मैं बड़े फेर में पड़ गयी ,ये बिना चीनी वाली चाय पियेंगे तो मै कैसे चीनी वाली चाय पियूँ। आखिर सभी दुःख-सुख में साथ निभाने का वादा जो किया है .बस ....मैंने भी सोचा की ,अब से मै भी इनका साथ देने के लिए बिना चीनी वाली चाय ही पिया करुँगी .जैसे महाभारत की कथा में गांधारी ने अपने पति की खातिर अपनी आखों पर पट्टी बांध ली थी ।
लेकिन हे भगवान ....चाय का पहला ही घूंट इतना बे स्वाद लगा, की मन में आया इस से अच्छा तो आदमी चाय न ही पिए तो क्या बुरा है?बाबा रामदेव भी तो काफी दिनों से यही कहते आरहे हैं .उनका भी मन रह जायेगा । ये तो सुबह -सुबह मुंह का जायका ही बिगाड के रख देता है. वो तो अच्छा हुआ जो मै ने अपना ये ऐलान किसी को बता क़र नहीं किया था ,वर्ना बड़ी किरकिरी होती .मैंने मन ही मन गांधारी माता को प्रणाम किया और कहा माते मेरी बड़ी ग्घ्रिस्त्ता हुईजो मैंने आप जैसा बनना चाहा .सॉरी .

Friday, June 17, 2011

आखिर वही हो रहा है जिस बात का डर था .लगता है ,अन्ना हजारे या बाबा रामदेव का अनशन व्यर्थ चला जायेगा .क्योंकि सरकारी मायाजाल इन्हें अपने छलावे में कपट पूर्वक उलझा रही है ।
कपिल सिब्बल और चिदंबरम तो मिडिया के सामने अन्ना हजारे की छवि घर के ऐसे बुजुर्ग की बना रहे हैं जो व्यवहारिकता से दूर एक अज्ञानी व्यक्ति हों ,जो ऐसी वस्तु मांग रहे होंजिसे पूरा करना संभव ही नहीं हो .इस लिए ये लोग उन्हें आश्वासन का झुनझुना दे क़र बहला रहे हैं ताकि बुढहा ज्यादा बुढ-बुढ न करे ,यानि फिर से अनसन न करे ।
लोकपाल कमिटी मेशमिल ,पांचो गैर सरकारी व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं जिन्हें कानून या संविधान की जानकारी न हो .फिर अगर कोई कानूनी अड़चन आ भी रही हो तो उसे सभी सदस्यों को साथ मिल क़र निबटाना होगा ,न की अन्ना हजारे का मजाक उड़ा क़र ।
सरकार के इन वरिष्ठ मंत्रियों का यूँ किसी बुजुर्ग का मजाक उड़ना शोभा नहीं देता .
अभी पुरे देश में दाखिलों का मौसम चल रहा है .न जाने कितने युवाओं के सपने ,ऊँची उडान भरने को अपने पंख तौल रहे होंगे .लेकिन अच्छे कॉलेजों के जों कट ऑफ़ मार्क्स होते हैं उनसे उन्हें काफी हतासा का सामना करना पड़ता है .खास करके वैसे मेधावी विद्यार्थी जों या तो राज्य स्तरीय बोर्ड के विद्यार्थी हैं या किसी कारणवश ९०-१००% का वह जादुई आंकड़ा नहीं प्राप्त क़र पाए हों ।
जब राज्य सरकार प्राथमिक सिक्छा और १०+२ के नए -नए स्कूल खोल रही है तो उसे उसी अनुपात में कोलेज भी खोलना चाहिए ,या कम से कम उन प्रतिष्ठित कोलेजों में निर्धारित सीटों कीसंख्या बढ़ाना चाहिए ,जहाँ पढ़ने का सपना हजारों विद्यार्थी अपनी आखों मेसंजोये रहते हैं.

Wednesday, June 15, 2011

कल रात ग्यारह बजे हमलोग सोये ही थे की नैना हमें उठाने आई ,कहा दीदी उठिए पिछले मकान में रहने वालों ने फोन करके कहा है कि हमारे पर कोई चढ़ा हुआ है .टोके जाने पर वह अँधेरे में कूद क़र कहीं भाग गया .
उसके पीछे काकी भी अपने कमरे से निकल क़र गयीं .आवाज सुन क़र ,माँ भी जग गयी .मैंने नैना से कहा -नैना,तुम जा क़र काका (घर के एक मात्र , पुरुष सदस्य ) को उठा दो .नैना ने उन्हें भी जगा दिया
फिर हमलोग चारों लेडिज बाहर बरामदे की बत्ती जला क़र बैठ गए .काका अन्दर ही रहे
बाते होने लगीं ,पहले काकी बोली -अरे कैसा आलसी चोर था ,कम से कम अच्छे से रात तो होने देता ,अभी तो सब जग ही रहे थे ,तभी तो लोगों ने देख लिया .लगता है उसे खुद काम निबटा क़र सोने की हड़बड़ी होगी .मैंने कहा .हाँ हाँ -हमलोग भी अभी दस मिनट पहले बात ही क़र रहे थे .तभी माँ ने कहा -उधर देखो तो बेटा ,गेट के पास कोई है क्या?कुछ सफ़ेद काला सा दिख तो रहा है .नैना बोली -अरे दादी जी अगर वहां कोई है भी तो वो सामने क्यों रहेगा बगल वाले असोक के पेड़ पर चढ़ जायेगा ?फिर मैं बोली ,उस से तो अच्छा वो जामुन के पेड़ पर चढ़ जाये कम से कम खाने को जामुन तो मिल जायेंगे .माँ ने हँसते हुए कहा ,अगर उस बन्दे ने इतने सारे अच्छे ऐदीयाज सुन लिए तो वो कल फिर जायेगा .इसलिए क्यों हम फिर से सोने चलें .अब उस चोर को पता चल ही गया होगा की हमलोग जग रहे हैं .हमने एक दुसरे को जोर से गुड नाईट कहा .और कहा हमलोग अब सोने नहीं जागने जा रहे हैं