Thursday, April 26, 2012

mera jivan


   अब तो धरती का बोझ बन गयी हूँ .
     आखों से कम दिखता है ऊँचा सुनने लगी हूँ .
         दाहीना हाथ सुन्न हो गया है,
         पैरों में हरदम दर्द रहता है 
        दोनों किनारों के दाँत टूट गए हैं 
        ठीक से चबा भी नहीं पाती हूँ.
   खाया-पीया पचता नहींहै ,
 पेट कभी ठीक नहीं रता .
         कमर दर्द के कारण झुक नहीं पाती 
       अकारण सरमे दर्द रहता है .
  बच्चे कहते हैं इलाज करवाओ .
अरे ,इतनी बीमारी एक साथ सुन के तो डाक्टर भी पगला जायेगा .
       बच्चे अब बड़े हो गए हैं ,किसी को अब मेरी जरुरत भी नहीं रह गयी है.
   उदेश्यहीन जीवन जी रही हूँ,धरती का बोझ बन गयी हूँ.