अब तो धरती का बोझ बन गयी हूँ .
आखों से कम दिखता है ऊँचा सुनने लगी हूँ .
दाहीना हाथ सुन्न हो गया है,
पैरों में हरदम दर्द रहता है
दोनों किनारों के दाँत टूट गए हैं
ठीक से चबा भी नहीं पाती हूँ.
खाया-पीया पचता नहींहै ,
पेट कभी ठीक नहीं रहता .
कमर दर्द के कारण झुक नहीं पाती
अकारण सरमे दर्द रहता है .
बच्चे कहते हैं इलाज करवाओ .
अरे ,इतनी बीमारी एक साथ सुन के तो डाक्टर भी पगला जायेगा .
बच्चे अब बड़े हो गए हैं ,किसी को अब मेरी जरुरत भी नहीं रह गयी है.
उदेश्यहीन जीवन जी रही हूँ,धरती का बोझ बन गयी हूँ.