Thursday, May 24, 2012

bachhon ka mohak sansar

बेटे ने प्लस टू पास किया .अब बाहर के कॉलेज में एडमिशन लेने की तैयारी है .कभी बंगलौर ,कभी दिल्ली ,मुंबई कोल्कता ,का नाम उछलता है .अंततः उसने दिल्ली में एडमिशन लिया .लेकिन यार दोस्त दूसरी जगहों में बंट गए .
अब आई जाने से पहले गेट टू गेदर पार्टी की .हर बार पैसे लेकर घर के बाहर ही पार्टी होती थी .मै भी निश्चिंत रहती थी .कौन ,अकेले इतना परेशान हो .लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग था .वैभव ने कहा ,मम्मी इस बार हम थोडा ज्यादा समय साथ गुजारना  चाहते हैं  .क्यों न अपने  दोस्तों को घर पर ही बुला लूँ ? सुनते ही मैंने कहा न बाबा न ,एक तो  मेरा इतना छोटा घर ,और फिर तुम्हारे उत्पाती दोस्त .पूरे  घर को कबाड़ खाना बना के रख देंगे .और फिर घर में दावत यानि पुरे दिन पकाते रहो ,और अंत में ये छोकरे ,आंटी ,छोले चंगे बने थे कह कर चल चल देंगे .लेकिन वैभव कहाँ मानने वाला था .उसकी प्लीज मम्मी ,प्लीज शुरु हो गयी .कहने लगा ,नहो तो हम लोग छत पर ही खाना खा लेंगे .मैंने कहा और तुम लोग जो हल्ला -गुल्ला और लाउड मिउजिक सुनोगे .बाद में मुहल्ले वालो के ताने मुझे सुनने पड़ेंगे .खैर ........वैसे घर में चार बच्चे आ जायें तो
अच्छा ही लगता है .
                                समय शाम के सात बजे का रखा गया था .  लेकिन ये क्या ,ये नमन तो छे ही बजे चला आ रहा है .आते ही सीघे रसोई घर में घुस आया .कहा .आंटी मै घर में बोर हो रहा था ,सोचा वहीँ चलता हूँ .आपको डिस्टर्ब तो नहीं किया ?मै बिरयानी के लिए चावल धो रही थी .फिर कहने लगा ,आंटी ,आप काफी थकी लग रही हैं .मुझे चाय बनानी आती है मै  आपके लिए चाय बना देता हूँ .मैंने सोचा वाह कमाल है इसे कैसे
पता चल गया ,अभी सचमुच मेरा चाय पीने  का मन था .    जब तक चाय बनी मैंने झटपट कचौड़ियों के लिए
आटा गूँथ लिया .वैभव कोल ड्रिंक्स लेने गया हुआ था तब तक वो भी आ गया .चाय पीते  हुए नमन ने कहा
आंटी ,मै तो सोसल कॉज के लिए किसी n g o से जुड़ना चाहता हूँ .ढेर सारे औब्संस हैं पोल्युसन ,कुपोसन .
असिक्छा .वगैरा -वगैरा .तब तक सभी आ गए बहस छिड़ गयी .सबके अपने अपने तर्क थे .वैभव समाज के अछूतों पर डॉक्युमेंट्री बनाना चाहता है .पहवा भोजन प्रिय है .उसे तो होटल मेनेजमेंट ही करना है।सभी हँसते हैं ,यार तू तो इंस्तित्युत का भट्टा ही बैठा देगा .राहुल इकलौता है उसे यहीं रहना है .मुम्मी -पापा के पास घर का बिजनेस है उसे वही सम्हालना है .सभी दोस्त उसे अपने अपने मम्मी -पापा काभी  ख्याल रखने को बोलते
हैं .फंस गया बेचारा .
                         इसबीच सबों ने कोल ड्रिक्स पि लिया चिप्स वगेरा चलते रहे .कब नौ बज गए पता ही नहीं चला .मैंने बीच से उठते हुए कहा अरे तुम लोग खाओगे कब ?इस बीच मैंने बिरयानी बना ली थी .सिर्फ कचौड़ियाँ तलनी  बाकी थी सुनते ही सारे  उठ खड़े हो गए .हाथो हाथ खाना टेबल पर लग गया .अंकित ने कहा
आंटी मुझे पुरियां तलनी आती है फिर तो मै बेलती गयी , फटा फट कचौरियां बन गयीं बच्चों ने मुझे परोसने भी नहीं दिया .कहा हम सब कुछ अपने आप ले लेंगे आप हमारे साथ ही खाइये .खाने के दौरान भी बातों का  सिलसिला जारी रहा .बच्चों की उमंग का कोई ठिकाना नहीं था .     बच्चों का संसार भले ही थोडा अपरिपक्व
हो .लेकिन कितना मोहक होता है .





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