Thursday, November 28, 2013

कभी सोचा है ?

 
कभी सोचा है ? कडाके की ठण्ड को ,गुदडी ओढ कर काटने वाला ,जब तुम्हारा गर्म लिहाफ सहेज कर रखता है ,तब उसके मन में क्या चल रहा होगा ?सोचा है कभी?
 कभी सोचा है ? रात की बची ,बासी रोटी खा कर, तडके तुम्हारे लिए गरमा-गरम ब्रेक –फास्ट बनाने वाले के मन में क्या चल रहा होगा ?
सोचा है कभी ?
कभी सोचा है ?बुखार से तपते अपने बच्चे को बस से डाक्टर को दिखाने वाला ,जब तुम्हारे बच्चे को बड़ी सी गाड़ी में सैर करवाने
ले जाता है,तब उसके मन में क्या चल रहा होगा ?सोचा है कभी ?
                जैसे तुम नहीं सोचते ,वो भी नहीं सोचता होगा .
अगर सोचने बैठा तो ,फट जाएँगी उसके दिमाग की नसें ,बिखर जाएगा
उसका आशियाना. अच्छा है ,उसके लिए नही सोचना.
लेकिन तुमने सोचना क्यों छोड़ दिया ?तुम तो सोच सकते हो .
सोचो तो कभी !


.

Wednesday, October 2, 2013

वो डरावना सपना !

आज मैंने पहली वार ,भूतों वाला सपना देखा ! हा हा हा !  वैसे मुझे कभी भूत –प्रेत पर विश्वास नहीं रहा है .लेकिन पता नहीं क्यों ऐसा हुआ! कल दो अक्टूबर था.यानि छुट्टी वाला दिन! धन्यवाद बापू !मै देर तक सोती रही .रिंकू ने जब चाय ला कर मुझे जगाया ,तब मै जागी .बड़े दिनों बाद बेड टी ! मजा आ गया .फिर दोपहर में भी भोजन के बाद हल्की सी झपकी ,यानि छुट्टी का बोनस !लेकिन फिर रात में मुझे नींद नहीं आ रही थी.मै बिस्तर पर जा कर लेट गई और अपनी आखें बंद कर लीं,ये सोच कर की थोड़ी देर में नींद आ ही जायेगी .वो सोने और न सोने के बीच की स्थिति थी .अचानक मुझे लगा की मै ड्राइंगरूम के सोफे पर सो रही हूँ.सोफे पर सोने के लिए पांव को सिकोडना पड़ता है ,फिर भी दिक्कत होती है. मैंने देखा एक औरत मेरे पांव के पास आ कर बैठ गई है.मुझे उसका चेहरा नहीं दिख रहा था.सिर्फ उसके गंदे से बेढब हाथ दिख रहे थे.वो मुझे छूना चाह रही थी,मैं डर से अपने पावों को सिकोडने लगी .जैसे-जैसे मै अपने पैर मोड़ती गई वो और मेरे करीब आती जा रही थी .अंत में मै सोफे के किनारे से सट गई.अब और कोई गुंजाईश नहीं थी  तब जा कर उसने मुझे छूआ ,फिर पकड़ लिया !मै आतंकित हो कर जोर से चिल्लाई ,मेरे गले से उई जैसी जोर की आवाज निकली .उसी आवाज से मेरी खुद की नींद खुल गई.मेरा पूरा शरीर थरथर थरथर कांप रहा था प्यास से गला सूख रहा था.क्या हुआ ये समझने में मुझे थोड़ी देर लगी .मैंने उठ के पानी पिया.तब तक मेरी नींद पूरी तरह टूट चुकी थी .सोचा अपना यह डरावना अनुभव लिख ही लिया जाय c!

Tuesday, September 17, 2013

भाग जाऊं कहीं !


रोज की नीरस दिनचर्या, संवेदनहीन समाज , ईर्ष्यालु लोग ,छद्म आचरण ,कूटचाल. नहीं ये दुनिया मेरे लिए नहीं है .जी करता है, भाग जाऊं कहीं

दरवाजे की घंटी बजती है ,खोलना पडेगा .
जी करता है, भाग जाऊं कहीं !
जी भर के सोऊँ .
कमरे में धूप घुस आए ,तब भी !
तकिये के नीचे सर छुपा कर ,
देर तक ,सोती रहूँ.
उनिंदी आखों से चाय बनती हूँ .
बाई को खुश ,रखने के लिए !
भाdhड में जाये ,बाई !
जी करता है ,भाग जाऊं कहीं !
नींद खुलते ही गरमा-गरम चाय का प्याला ,
मिल जाये ,तो मजा आ जाये !
लोग आते हैं ,चेहरे पर मुस्कान सजाये ,
शब्दों का आडम्बर ,भीतर से खोखलापन !
जी करता है ,भाग जाऊँ कहीं !
कोई तो करे ,सच्चे मन से बात ,
दिल तोड़ने नहीं .दिल जोड़ने की बात !
.

Thursday, August 22, 2013

मनहूस रात !

.अचानक कुत्ते के रोने कि आवाज  से नींद खुल गयी.अजीब मनहूस आवाज में कुत्ता जोर- जोर से रोये जा रहा था कुत्ते के रोने के बारे में इतने  डरावने  किस्से सुन चुकी हूँ की मन आशंकाओं में डूब गया.कुछ दिनों पहले की बात है ,मेरी पड़ोसन कमला जी के नंदोई बीमार पड़े ,उनका इलाज चल ही रहा था .कमला जी ,उनको दखने रांची के लिए गाड़ी से जैसे ही निकली दिन के समय .उनकी गाड़ी के पीछे कुत्ता जोर से रोया.मै उनको विदा करने निकली थी.कमला जी ने तो आवाज नहीं सुनी ,लेकिन मेरे रोंगटे खड़े हो गए .किसी तरह कुत्ते को भगाया.वहाँ पहुंच कर कमला जी ने फोन किया ,उनके नंदोई गुजर चुके थे.अभी आवाज इतनी तेज थी की लगा कहीं मेरी खिडकी के नीचे ही न हो.कहते हैं कुत्ता ,जिस घर की तरफ मुहं करके रोता है ,कुछ अनहोनी घटती है .मै चुप-चाप बिस्तर से उठी खिडकी से सर बाहर निकाल कर देखा ,कुत्ते का सर दिख रहा था.बाहर चांदनी रात थी .कुत्ता मैदान की और मुहं करके फिर रोया .मुझे बड़ी तसल्ली हुई.फिर भी मैंने जोर से हल्ला करके उसे भगा दिया.मेरी आवाज से इनकी भी नींद खुल गयी.इन्होने पूछा क्या हुआ ?मैंने कहा यूँ ही कुत्ता ज्यादा शोर मचा रहा था ,मैंने भगा दिया.ये तो करवट बदल कर सो गए ,मुझे पता नहीं कब नींद आएगी

Sunday, July 21, 2013

लाइफ के कम्प्लिकेशनस



मै तो छोटे शहर में रहती हूँ .लेकिन मेरे बच्चे बड़े शहरों में रहते हैं .छोटे शहर भले ही शहर कहलाते हों .लेकिन थोडा सा गंवई टच अभी भी बरकरार है .सहज जीवन .आराम की दिनचर्या ,लोग जैसे घर में होते हैं ,वैसे ही बाहर भी होते हैं .हाँ ,थोडा बहुत कपड़ों में फेर बदल होता है सो अलग बात है .जब कभी मेरा बच्चों के पास जाना होता है ,उनकी जीवन शैली देख कर मुझे बड़ी हैरानी होती है .कभी कभी तो झल्लाहट भी होती है . सुबह चाहे कितने भी सबेरे निकलना हो ,=बाथरूम में घुसेंगी pureपूरे पिटारे के साथ ! जिसमे होता है शैम्पू ,फेसवास,साबुन ,कंडीशनर .बौडी लोशन और स्प्रे .और भी जाने क्या क्या !इस चक्कर में चाहे सुबह का नास्ता छूट जाये या  दौड कर बस पकडनी पड़े. चलता है .! एक तो इतने तामझाम ऊपर से तरह –तरह के ब्रांड ! मेरा  तो सर ही घूम जाता है .हम लोगों के समय  लक्स या हमाम था ,थोडा बढे तो पियर्स बस ! कपडे साफ करने के लिए 501  या सनलाईट और सर्फ़ ज्यादा सर खपाने की जरुरत ही नहीं .
अब खाना पकाने वाले तेल हो ,चायपत्ती हो ,चप्पल हों या गाड़ी ,इतनी विविधता
है की चुनना मुश्किल ! नए लोग भले इसे बाजार वाद की सफलता बताएं ,लेकिन
मुझे पहले वाली सहजता भली लगती है .