Wednesday, January 30, 2013

फिर बेतलवा डार पर

हे भगवान !ये क्या हो गया ? जशन का रसगुल्ला गले मे ही अटक गया . न उगलते बनता है न निगलते .छह के छ्ह हों वापस आ गये !अब पहले से अधिक ठसक से लौटे हैं मानो कह रहें हों, ''देखा,हमारी पहुंच कहाँ तक है?इधर हुआ ये की वी. सी . के जाते ही असन्तुस्तो ने बकायदा अखबारों मे उनके ''रेट''के भंडाफोड़ बयान दे डाला .अब बेचारों की जान साँसत मे है. उनपर तो वज्र गिरना तय है .पूरे विश्व -विद्यालय मे जोड़ -तोड की राजनीति चरम पर है ,देखना है की वे कैसे मॅनेज करते हैं. वैसे जिन लोगोने पैसे लगाये थे उन्हे विश्वास है की उनका काम जरूर हो जायेगा .आखिर फेयर डील का वाड़ाजो था .कुछ ईमानदार शिक्छक जिन्हों ने प्रोनत्ति.के लिये अभी तक घूस नही दी है वे चिंतित हैं की उन्हे भी शायद पैसे देने ही पडेंगे पैसों की राजनीति है .उपर से लेकर निचले स्तर तक बिना कुछ दिये काम नही होता है .विद्यार्थियों के भविषय का ईश्वर जाने

भागलपुर वि. को एक योग्य कुलपति चाहिए

वामा विचार भागलपुर वि. को एक योग्य कुलपति चाहिये. नीता झा Sunday December 09, 2012 0 आखिरकार भागलपुर विश्व विद्यालयके कुलपति हटाये गये .कल की सनसनीखेज खबर यही थी की बिहार के छह कुलपतियों को एक साथ हटाया गया .लेकिन हमलोग चैन की सांस नही ले पा रहें हैं क्योंकि वो अपने पीछे एक गंदी विरासत छोड़ गये हैं. ऐसा नहीं है की पहले घूस नही लिया जाता था घूस की सस्कृति तो बिहार मे सर्वत्र थी और है .लेकिन ऐसे कुलपति स्तर पर खुले आम वसूली नही की जाती थी .मगर अब तो अधिकारियों ने खून चख लिया है इंतजार सिर्फ शिकार का है ! इनके जाने से वैसे लोग खुश हैं जिन्हों ने घूस की नैया से पार पा लिया है ,लेकिन कुछ अभागों ने देर से रकम पहुँचाई,चूंकि हाईकोर्ट का फैसला अचानक से आया ,सो उनकी नैया बीच मझधार मे ही डूब गयी ,लुटेरा तो पीठ पर गठरी लाडके भागा .गया .बेचारे मातम मना रहे हैं ....अरे भाइयों! बिहार मे छह-छह कुलपतियों का पड खाली है .योग्यता सिर्फ ''गांठ'' की है .बोली लगाइये क्या पता ,आपकी किस्मत का दरवाज़ा भी खुल जाये .रही बात विद्यार्थियों की तो उनकी चिंता किसी को नही है .उनकी नियति तो सिर्फ दौड़-भाग की रह गयी है .कभी पेंडिंग रिजल्ट के लिये तो कभी कोई प्रमाणपत्र ब्नवाने के लिये .इन परिस्तिथियों को देख कर हम घोर आस्तिक हो गये हैं क्यों की अब भगवान ही कुछ अच्छा कर सकते है ,सरकार से तो कोई उम्मीद नही है.

जरा अपने गिरेबां में झांकें। .

भागलपुर में विश्व -विद्यालय के शिक्षकों ने धरना और प्रदर्शन किया अपनी तरह -तरह की मांगों के लिए। बेशक, राज्य सरकार के लिए ये शर्म की बात है अगर शिक्षकों और चिकित्सकों को अपनी मांगों के लिए ऐसा कुछ करना पड़े .क्योंकि ये दोनों ही छेत्र नैतिकता से जुड़े हैं. लेकिन मै इन प्रदर्शनकारी शिक्षकों से कहना चाहूंगी की वे एक बार अपने -अपने गिरेबां में झांक के देखें की आज जिसके लिए आप मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हैं ,उसे भ्रष्ट बनाया किसने?यहाँ मै कुलपति की ईमानदार स्वीकारोक्ति की याद दिलाना चाहूंगी कि "मै खुद किसी के पास पैसा मांगने नहीं जाता हूँ .लोग खुद पैसा ला -ला कर मुझे देते हैं .यहाँ के लोगों के पास पैसा बहुत है ."फिर आती हुई लक्ष्मी किसे बुरी लगती है! ऐसा "सिस्टम "चलाने वाले भी इसी समुदाय के लोग हैं. जिसे आप दलाल कहते हैं वो भी आपके बीच का ही है. दिन में आप, उसे गरियाते हैं और रात में उसी से काम निकलवाने की सौदेबाजी कर आते हैं. अपने गलत काम को सही करवाने के लिए घूस देने की शुरुआत, आप ही लोगों ने की थी. मनचाहा ट्रांसफर -पोस्टिंग के लिए पैसा आप खुद ही दे आये थे. अब जब, "लत "लग गयी तो नारे लगाने लग पड़े! आज जो समाज में शिक्षकों को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है जिसके वो हक़दार हैं ,इसका कारण आप खुद है न की छात्र

Saturday, January 26, 2013

आज का दिन ,हमारे लिए मायूसी ले कर आया .सुबह जैसे ही अख़बार खोला उसमे विश्व -विद्यालय के उन शिक्छकों की सूची थी जिन्हें प्रोन्नति मिली थी .उसमे इनका नाम नहीं था .हमने पैसे नहीं दिए थे ,इसलिए इस बात का अंदाज तो हमें पहले से था लेकिन एक उम्मीद थी की शायद बाकियों के साथ इन का प्रमोशन भी हो जाए .क्योंकि की चार नामों में तीन का जब हो गया तो इन्हें कैसे छोड़ देगा ?लेकिन ये घाघ वी ,सी .'होत ना आज्ञा बिनु पैसा रे 'पर अटल है .घूस दे कर प्रमोशन लेने को हमारी अंतरात्मा बिलकुल तैयार नहीं हो रही है .लेकिन बुरा तब लगता है जब लोग सहानुभूति दिखाते हुए घूस दे कर काम करवा लेने की नसीहत देने लगते हैं .और जिन्होंने बहती गंगा में हाथ धोया है वो कंजूस साबित करके मजे लेते हैं . इन से ज्यादा मै अपसेट हूँ .क्योकि शुरू -शुरू में जब रेट पचास हजार था तब मैंने ही उन्हें पैसे दे कर प्रमोशन खरीदने से मना किया था ,बच्चों ने भी भरपूर विरोघ किया कहा 'पापा हमें आपकी योग्यता पर गर्व है .एक कागज के टुकड़े पर ये लिख कर नहीं मिला तो न सही ' आपके ऐसा करने से हमें आत्म -ग्लानि होगी .ना हमारे पास उपरी आमदनी के इफरात पैसे हैं और ना डिग्री फर्जी है .फिर हम क्यों दें पैसे ? वैसे उन दिनों जब किसी काम से पटना जाना पड़ा तो हमने परिवार के बड़ों से भी सलाह ली .तभी सबों ने सलाह दी थी की ये आदमी बिना पैसों के किसी का काम नहीं करता है .मुजफ्फरपुर में इसका यही रेपुटेसन है .लेकिन इसी बीच बर्खास्तगी का ड्रामा हुआ .हमे लगा शायद कुछ अच्छा होगा। कोई भला आएगा .लेकिन सही है पैसे में बहुत दम है .सारा कुछ ' मैनेज'हो गया .सुनते हैं यही वापस आएगा .खैर ......जो होगा देखा जायेगा !