Saturday, February 2, 2013

बड़े। भैया,आप सा कोई नहीँ।

बड़े भैया आपसा कोई नहीं ! हमारे बड़े भैया ,(जेठ जी )अपने पद से (प्रभारी सचिव , बिहार विधान सभा )रिटायर हो कर लौटे . साथ में उनसे प्रभार लेने वाले अधिकारी भी थे वे भैया को घर तक छोड़ने आये थे .उन्हों ने ही बताया की किस तरह उनके सहयोगियों ने भाव -भीनी विदाई दी .कार्यालय का हर सहयोगी चाहे वो छोटा हो या बड़ा उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलने आया .परिसर से विदा होते समय सहयोगियों ने अपने हाथों से गाड़ी को धकेल कर मुख्य गेट तक ले गए .चूँकि इन्होंने किसी तरह की भेंट लेने से मना कर दिया था इसलिय लोग फूलों के गुलदस्ते ले कर आये थे पूरी गाड़ी फूलों से भरी थी .यह सम्मान ,इसलिए था , की जीवन भर उन्हों ने लोगो का उपकार किया .भैया गद-गद थे ,इस भव्य सम्मान से हम भी अभिभूत हैं .आज कल के युग में एक सरकारी अधिकारी अगर बिना किसी आरोप या लांछना के ससम्मान रिटायर हो जाये तो यह बड़े गर्व की बात है एक एकौन्तेंट से प्रभारी सचिव तक की तरक्की ,उनकी कर्मठता दिखाती है यह नीचे से ऊपर जाने की संघर्ष गाथा है ..बड़े भैया सिर्फ कहने के लिए भैया हैं वैसे वह हमारे पिता तुल्य है .ससुराल में मुझे ससुर की कमी कभी महसूश नहीं हुई . युवा वस्था में ही पिता का देहांत हो गया .तभी से घर की पूरी जिम्मेदारी इन्हों ने अपने सर पर ले ली .तब नौकरी भी छोटी थी और घर भी छोटा था .कंकड़ बाग के विकर सेक्सन में दो कमरों के फ्लेट में रहना .अपने बच्चे ,भाई। उस पर से पटना की' गेस्टिंग ' .हमेशा गाँव के दो तीन लोग रहते ही थे .परिवार की इज्जत -प्रतिस्ठा ढोना मैंने यहीं देखा .कैसे भी करके मेहमानों को संतुष्ट करना। चाहे वो डाक्टर के यहाँ नंबर लगाना हो ,शादी -व्याह की खरीदारी हो या फिर गाँव के लोगों को पटना घुमाना हो .दोनों जने तन -मन -धन से लगे रहते हैं .साथ में अपने बच्चों को भी कभी रिक्शा बुलाने कभी पान लाने वगेरा काम में लगा देते हैं चाहे इसका खामियाजा उनकी पढाई पर पड़ता हो .मेरे पति आज जो कुछ हैं वो उन्ही की बदौलत .भाग्य से उन्हें सह -धर्मिणी भी अत्यंत सुघढ़ मिली हैं जेठानी जी नाम से ही नहीं स्वभाव से भी अन्नपूर्णा हैं।भैया को मिले यश में उनका भी कम योगदान नहीं है .अपने देवरों की प्रिय भौजी ,देवर ही नहीं उनके दोस्त भी उनका गुणगान करते नहीं थकते .जब हमारे बच्चे छोटे थे ,हम हर छुटियों में पटना जाते थे ,यह उनकी आत्मीयता ही थी जो हमें खींच लाती थी .हमें जब भी कोई दिक्कत होती है ,हम सीधे मुह उठा कर पटना चल देते हैं चाहे वो भागलपुर के दंगे हों या फिर बीमारी। .मै जब -जब बीमार पड़ी हूँ,उन्होंने माँ समान मेरी सेवा की . जीवन में मुझे इस बात का हरदम मलाल रहेगा की मै अपनी लाइलाज बीमारी की वजह से कभी उनकी सेवा नहीं कर पाऊँगी .मै उनकी ऋणी हूँ .अब जबकि भैया सेवा निवृत हो गए हैं ,ईश्वर की कृपा से जीवन की तमाम सुख - सुविधा उनके पास है .हमारी हार्दिक कामना है की आप , अपना शेष जीवन बिना किसी तनाव के शांति मय हो कर बिताएं अब तो आप स्वछंद हैं क्यों न ,निश्चिन्त हो कर जीवन का आनंद उठाये!