Tuesday, September 17, 2013

भाग जाऊं कहीं !


रोज की नीरस दिनचर्या, संवेदनहीन समाज , ईर्ष्यालु लोग ,छद्म आचरण ,कूटचाल. नहीं ये दुनिया मेरे लिए नहीं है .जी करता है, भाग जाऊं कहीं

दरवाजे की घंटी बजती है ,खोलना पडेगा .
जी करता है, भाग जाऊं कहीं !
जी भर के सोऊँ .
कमरे में धूप घुस आए ,तब भी !
तकिये के नीचे सर छुपा कर ,
देर तक ,सोती रहूँ.
उनिंदी आखों से चाय बनती हूँ .
बाई को खुश ,रखने के लिए !
भाdhड में जाये ,बाई !
जी करता है ,भाग जाऊं कहीं !
नींद खुलते ही गरमा-गरम चाय का प्याला ,
मिल जाये ,तो मजा आ जाये !
लोग आते हैं ,चेहरे पर मुस्कान सजाये ,
शब्दों का आडम्बर ,भीतर से खोखलापन !
जी करता है ,भाग जाऊँ कहीं !
कोई तो करे ,सच्चे मन से बात ,
दिल तोड़ने नहीं .दिल जोड़ने की बात !
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