कम था, गम न था
वो कंधा भी पत्थर था
मै सारी रात रोई थी
उसी पत्थर के कंधे पर
सुबह देखा तो कंधे को
खड़ा वो मुस्कुराता था
मेरे आँसू से वो अपना
जालिम दिल बहलाता था
मुट्ठियाँ भींचे रहती हूँ ,
जो थोड़ा है फिसल न जाए
दिया जिसने वो थोडा सा
कहीं वापस न ले जाए ,
बांधी है डोर जीवन की
उसी तिनके के छोरों से
एक कंधे को जाना थासर रख कर रोने को
वो कंधा भी पत्थर था
मै सारी रात रोई थी
उसी पत्थर के कंधे पर
सुबह देखा तो कंधे को
खड़ा वो मुस्कुराता था
मेरे आँसू से वो अपना
जालिम दिल बहलाता था
मुट्ठियाँ भींचे रहती हूँ ,
जो थोड़ा है फिसल न जाए
दिया जिसने वो थोडा सा
कहीं वापस न ले जाए ,
बांधी है डोर जीवन की
उसी तिनके के छोरों से