Wednesday, March 19, 2014

भोली जनता


आजकल स्थानीय अख़बारों में बड़े ज़ोर शोर से पूछा जा रहा हैं, 'हे मतदाताओं, बता तेरी मर्ज़ी हैं क्या? तेरा एम. पी कैसा हो?'

बेचारा मतदाता बड़े जोश में ये वो गिनाता हैं और खुश हो जाता हैं की चलो किसी ने पूछा तो. वैसे इस बार जैसी हवा हैं, शायद वोट भी गिरा दे. और फिर नतीज़ो का इंतेज़ार.
लेकिन आह! भोली जनता ! तुम इत्मिनान रखो. कहीं कोई देवदूत सांसद बनने वाला नहीं हैं. अगर कोई बनना भी चाहे तो उसकी टाँग खींचने वाले इतने हैं की बेचारा मुँह के बल गिरेगा.
इसीलिए, ए देश की जनता, तुम इन दिनो को 'एंजाय' करो. चाहे वो टी.वी देख कर हो या फिर रैली में जा कर. मुफ़्त मे अगर आना/जाना/खाना मिल रहा हैं तो क्या हर्ज़ हैं. या चलो जी भर के दारू पीने को मिल रहा है तो और भी अच्छी बात हैं. लगा देना दो -चार ज़िंदाबाद के नारे, क्या फ़र्क पड़ता हैं.
फिर तो वही तुम, वही तुम्हारी जर्जर सड़के, घूसखोर अफ़सर, तुम्हारे भ्रष्ट नेता. तुम्हे कोई फ़र्क नही पड़ने वाला हैं. क्यूँकि तुम्हे इन सब चीज़ों की आदत पड़ चुकी हैं. आख़िर 67 साल बहुत होते किसी आदत को निखरने  के लिए.

Saturday, March 1, 2014

बाबू जी की याद में..


अब हमे अंधेरों से डर नहीं लगता .


रात के अंधियारे में टिमटिमाते हैं अनगिनत तारे
बचपन से सुन रखा है ,वे तारे नहीं ,हमारे हैं .
       जो छोड़ गए ,हमें जल्दीबाजी में,
      उनको भी चैन नहीं जमाने में .
देख रहे होते हैं वे हमे , अंधियारे में.
       अब हमे अंधेरों से डर नहीं लगता ,क्यों की
       कोई अपना अधेरों में भी साथ रहता है .
                                  गर कभी  कहीं फिसले जो हम ,अँधेरे में
               तभी तारा कोई टूट कर, राहें दिखाता है .