Saturday, March 1, 2014

बाबू जी की याद में..


अब हमे अंधेरों से डर नहीं लगता .


रात के अंधियारे में टिमटिमाते हैं अनगिनत तारे
बचपन से सुन रखा है ,वे तारे नहीं ,हमारे हैं .
       जो छोड़ गए ,हमें जल्दीबाजी में,
      उनको भी चैन नहीं जमाने में .
देख रहे होते हैं वे हमे , अंधियारे में.
       अब हमे अंधेरों से डर नहीं लगता ,क्यों की
       कोई अपना अधेरों में भी साथ रहता है .
                                  गर कभी  कहीं फिसले जो हम ,अँधेरे में
               तभी तारा कोई टूट कर, राहें दिखाता है .

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर कविता है. काश जाने वाले समझ पाते कि वो क्या कर रहे हैं पीछे छूट जाने वालों के साथ!
    अगर समझ पाते तो शायद कभी जाते ही नहीं।
    पर तस्सली ये है कि कम से कम तारे तो हर रात आयेंगे साथ निभाने! :-)

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