हमारे बड़ा काका पं.तारा कान्त झा जी का
गुजर जाना हमारे विशाल परिवार पर क्या असर डालेगा ये तो दूर की बात है,लेकिन
फ़िलहाल तो ऐसा लगता है जैसे हमारे सरों पर से छत हट गई हो.इतने विशाल परिवार का
मुखिया होना.दस भाई दस बहने, उनके संबधी ,सम्बन्धियों के संबंधी सबकी अपेक्षाएं.ना
जाने कैसे निभाते होंगे = अपने विनोदी स्वभाव से सबका दिल जीत लेते थे मुझे
याद है,,उमा दीदी और पुतुल दी की नई-नई शादी हुई थी ,दोनों शादी के बाद काका को प्रणाम
करने आई ,तब उन्होंने अनायास ही पूछ लिया की?बौर पसंद पड़लखुन? दोनों शर्म से लाल
हो गईं थी .
यह तो हुई अपने परिवार की व्यथा .लेकिन पूरे मैथिल समाज के लिए उनका जाना दुर्भाग्य पूर्ण है.मैथली
को संविधान की आठवी सूची में शामिल करवाने का भागीरथ प्रयास ,और उसमे सफल होना,हमे
गर्व से भर देता है .इसी तरह अलग मिथिलांचल का उनका सपना ,पता नही अब साकार हो भी
पायेगा या नही उनके जैसा जुझारूपन किसी अन्य में नही दिखता .उनका चुनाव नहीं जीत
पाना ,पूरे परिवार के लिए अफ़सोसनाक होता था .लेकिन अपने सिधान्तों से समझौता नही
किया.
विधानपरिषद के सभापति के रूप में उनका कार्य काल ,विधान्
परिषद के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा .सम्पूर्ण भारत वर्ष की नामी
हस्तियाँ उनके व्यक्तिगत सम्बन्धों के कारण आए .पूरे वर्ष चलने वाला यह आयोजन उनकी
व्यवहार कुशलता के कारण काफी सफल रहा .अभी अतिथिगण उनकी मेजबानी की प्रसंसा करके
गए ..
ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व वाले व्यक्ति का
सम्बन्धी होना हमे गर्व से भर देता है हम उनके नाम से जाने जाते हैं। .उनके चले जाने से जो अपूरणीय क्षति हुई है
उसकी भरपाई संभव नही है हे ईश्वर ,उन्हे सद् गति देना .हमारी विनम्र
श्रद्धांजली .