Wednesday, September 3, 2014

रोना तो बनता है .



ईश्वर ने सबके लिए एक कोटा सिस्टम लागू कर रखा है .यह सब चीजों पर साबित होता है चाहे वो खुशी हो ,गम हो, मिठाई हो, तेल-मसालेदार भोजन हो, वगैरा वगैरा ............अगर आप इन चीजों को थोडा थोडा करके उपभोग करेंगे तो जीवन भर इन्हें पाएंगे .पैसे की ही बात करें,कैसे-कैसे अमीर कंगाल बन जाते हैं खैर ,इस सिस्टम की मार मुझ पर कैसी पड़ी बताती हूँ..जीवन के शुरूआती दिनों से ही मुझे रोना धोना बिलकुल पसंद नहीं था.बल्कि जरा सी बात पर रो देने वाले लोगों पर मै  हँसती थी .बाबू जी हमे फिल्मे खूब दिखाते थे .सिनेमा हॉल में पुतुल दी, मरने- धरने वाले सीन में हिचकियाँ ले कर रोती थी .हॉल से बाहर आने पर हम रो-रो कर लाल हुई नाक देख कर हंसते थे .सिर्फ हम ही नहीं हॉल से निकलने वाले सब लोग उसकी ओर देखते जाते थे .सच कहूँ किसी -किसी सीन पर मेरी भी आखों में आंसू भर आते थे.लेकिन अपनी इमेज खराब ना हो जाये इस डर से ,हॉल के अँधेरे का फायदा उठा कर छुपा कर आंसू सुखा लेती थी.

फिर रोने का एक जबर्दस्त इवेंट आया .पुतुल दी का दुरागमन.{गौना}.पुतुल दी की शादी और दुरागमन चूँकि गांव से हुई थी इसलिए रोने –धोने का कार्यक्रम खूब चला.मैथिलों में लडकियां ससुराल जाते समय गा-गा कर रोती हैं .माँ गे माँ ,हम तोरा बिन कोना क रहबौ गे माँ ,काकी ये काकी ,हमरा बिसरब नहि ये काकी ,बाबू जी यौ बाबू जी हमरा जल्दी मंगवा लेब यौ. हर रिश्ते के लिए अलग लाइन .पूरी जिंदगी शहर में रहने वाली पुतुल दी !,पता नहीं उसने इतना अच्छा परफोरमेंस कैसे दिया.उसकी शादी में इतने लोग आए थे की मेरी बारी नही आई .वैसे भी उस समय मेरे मन में उसके लिए रोने की भावना एकदम नही थी.एक तो वो मुझ से चार साल बड़ी थी .फिर उसका और मेरा ग्रुप भी अलग था .माँ कभी-कभी उसे मुझे कहीं साथ ले जाने के लिए कहती भी थी तो वो मना कर देती थी.मुझे बुरा नही लगता था .क्यों की उसके खेल लड़कों वाले थे,खो-खो कब्बडी ,पिट्टो जैसे खेल. मेरा गुड़ियों का संसार था .

पर उस दिन पता नही क्यों ,मुझे बड़ी जोर की रुलाई आने लगी.अपने नही रोने-धोने वाली लड़की की इमेज खराब होने की बड़ी चिंता थी .मै दौड कर सोने वाले कमरे में घुस गयी और कोने में बिस्तर के ढेर पर बैठ कर फूट –फूट कर रो पड़ी.किसी को फुर्सत नही थी मुझे चुप कराने की ,हाँ मुझे लगा लोग खिडकी से झांक रहे थे .लेकिन उस वक्त माहौल वैसा था तो रोना तो बनता था.

फिर मेरी शादी, दुरागमन की बारी आई .माँ,बाबू जी ,भाई –बहन.अपने घर को छोड़ कर ,एकदम नए लोगों के घर जाना और वहीं रह जाना .मुझे सोच कर घबराहट हो रही थी.मै दिल से रो रही थी .मेरा परफोरमेंस अच्छा नही हुआ था.लेकिन कामा दीदी {पीसी माँ }गा-गा कर ,मेरे गले लग कर खूब रोइं

बाबू जी का अचानक ,समय से पहले गुजर जाना.मेरे लिए बेहद त्रासद था. एक रोने- धोने को नापसंद करनेवाली को जीवन भर उनकी याद रुलाएगी.क्यों की वो थे ही इतने अच्छे.मुझे हर मौके पर उनकी याद आती है .उनके जाने की खबर मिलने के काफी देर बाद हम उन तक पहुंच सके थे.उन्हें बर्फ पर रखा गया था .लोग कहते हैं ,मरने के बाद अपने लोगों से भी डर लगता है.ऐसा कुछ भी नही हुआ.गाड़ी से उतर कर ,मै दौड कर उन तक पहुंची.उनके बर्फ से ठंडे पांवों पर अपना सर रख कर रोती रही .मै वहाँ से हटना नही चाह रही थी लेकिन मुझे लोग हटा कर अंदर ले गए. ऐसे में रोना तो बनता ही बनता है .