Friday, August 8, 2014

परिवर्तन ,एक पडाव

हमने अपना घर बदल लिया है पहले वाला छोटा था. ये काफी बड़ा सा है.वो घर छोटा भले ही था लेकिन उसमे सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी .दो मंजिला घर था हम ऊपर रहते थे.इसलिए छत हमारी थी .छत मेरी पसंदीदा जगह थी .घर के निर्जीव सामान चाह वो कितने कलात्मक क्यों न हों ,रोज –रोज एक ही सामान देखते देखते मन ऊब जाता है. फर्नीचर की जगह बदलने से कुछ ही दिनों के लिए नयापन आता फिर वैसे का वैसा.
                    वहाँ मैंने छत पर ढेर सारे गमले इक्ठा कर रखे थे .चार पांच रंगो के अडहुल ,कनैल ,श्रीन्हार ,एलोविरा का तो एक बार अगर लग गया फिर इतनी तेजी से बढ़ता है की फिर बार बार उसे निकाल कर फेकना पड़ता है इन अतिरिक्त पौधों के लिए पुराने गमले ,बाल्टी सब में मिट्टी डाल कर सहेजना, मेरा समय बड़े आराम से कट जाता था.बच्चों के बाहर चले जाने के बाद का जो खालीपन सा पैदा हो गया था उसे भरने में मेरी बागवानी के शौक ने बड़ा सहारा दिया  .
              छत पर मैंने एक अलग दुनिया बसा रखी थी.मौसम का नया फूल मुझे रोमांचित कर देता था.कागजी निम्बू  के पौधे की मैंने दो साल तक सेवा की ,तब उस पर फूल आए.फिर तो मेरा मन करता था ,हर घर आने जाने वालों को निम्बू की कलियाँ जरूर दिखाउ.
                     सरकारी क्वाटरों की जर्जर हालत ,कॉलोनी के आस-पास की गंदगी ,दुर्गंध करता जमा हुआ पानी ,अंततः हमे कोलोनी छोडना पड़ा किसी कोलोनी में रहने के अपने मजे हैं .आपके प्रति उनका सरोकार ,हर बात की जिज्ञासा ,सुख दुःख में साथ देने की प्रवृति .हमे कभी अकेलेपन का एह्शास नही होने दिया .
             अब हम एपार्टमेंट में आ गए हैं .क्वाटर के मुकाबले ये घर काफी बड़ा है.खिड़कियां बड़ी -बड़ी हैं और उन में शीशे लगे हैं इससे पूरा घर प्रकाशित और हवादार है .
               अपार्टमेंट की दुनिया भी अजीब होती है .भीड़ में अकेला वाली कहावत इसके लिए काफी सही है .अगल-बगल ढेर सारे लोग रहते हैं.सुबह से आवाजे आनी शुरू हो जाती हैं .सटे-सटे घर हैं ,कभी-कभी तो ऐसा लगता है कोई हमारे घर में बोल रहा हो.लेकिन ये सच है की किसी को आपके घर में झाँकने की फुर्सत नही है.सामने वाले फ़्लैट में युवा दम्पति रहते हैं दोनों कामकाजी लोग हैं सुबह निकलते हैं उनके ताला बंद करने की आवाज से मै समझ जाती हूँकि वो जा रहे हैं फिर शाम को उनका घर खुलता है.तेज म्यूजिक बजता रहता है इसलिए किसी के बोलने की आवाज सुनाई नहीं देती.दाहिने ओर एक कम उम्र माँ है पति शायद सारे दिन घर से बाहर रहता है दो छोटे बच्चे हैं एक ने स्कूल जाना शुरू ही किया है,वो कभी एक को पढाती कभी दूसरे को पुचकारती है लेकिन घरके काम का बोझ फिर दो छोटे बच्चों को सम्हालना ऐसे में गुस्सा बड़े पर उतरता है पीटनेकी आवाज से मै व्याकुल हो जाती हूँ .लगता है छोटे बच्चे को मै अपने पास बुला लूँ ,माँ का बोझ कुछ तो हल्का हो जाएगा .एक है  दलजीत .उसकी मम्मी सारे दिन  उसे पुकारती रहती है.उठ दलजीते ,नास्ता कर दल्जीते,अब स्कूल के लिए तैयार हो जा दलजीते,होमवर्क क्यों नहीं करता दलजीते ,टीवी बंद कर दलजीते. लेकिन ये दलजीत भी कोई चीज है.मम्मी लाख पुकारे ,करता व्ही है जो उसका मन .जी करता है ,उस नटखट दलजीत से कहूँ क्यों अपनी मम्माको इतना तंग करते हो?हमारे उपरवाले फ्लोर पर शायद एक वृद्धा रहती है ,चलने फिरने से लाचार,सारे दिन उनकी फरमाइशें चलती रहती हैं .घर में शायद कम लोग है .कई-कई बार मांगने के बाद कोई पास आता है वो तब तक दूसरी जरूरत पेश कर डालती हैं .जब उन्हें कोई पानी देने में देर करता है मुझे बडी अकुलाहट होती है .
         बहरहाल जब रहना यहीं है तो सोचती हूँ खुद उनके घर जा कर परिचय  करूं .