जब पर्यटनकी बात चली तो ढेरों नाम जेहन
में उभरे ,कहीं भीड़-भाड़ की वजह से तो कहीं आवागमन की असुविधा के कारण कुछ तय कर
पाना मुश्किल लग रहा था , तब अचानक मुझे अल्मोड़ा का नाम सूझा. शिवानी जी को मैंने
जब से पत्रिकाएँ पढनी शुरू की तब से पडती रही हूँ .धर्मयुग ,साप्ताहिक हिदुस्तान
,सारिका में अक्सर उनकी कहानियाँ उपन्यास छपते थे .
उनके लिखने की अदभुत शैली से ,मै ही नहीं सब
लोग उनकी कहानियों ,उपन्यासों के दीवाने थे. घर में साप्ताहिक हिदुस्तान और धर्मयुग
पत्रिका आती थी , कौन पहले पढेगा इसके लिए कभी कभी छीना –झपटी की नौबत आ जाती थी .
किसी कथाकार के कथादेश की यात्रा
करना इतना रोमांचक होगा मुझे इसका अनुभव नही था .मै कहूँ की मुझे सब कुछ
जानी-पहचानी चीजें लग रही थी तो कुछ गलत नही होगा.ऐसा चित्र लिखित सा वर्णन चाहे
वो सड़क की हम सफर पगली नदी हो या
देवदार के ऊँचे पेड़, जिसे उन्होंने अनंत काल की तपस्या में लीन सन्यासी कहा है
.रास्ते में पड़ने वाली चाय की दुकाने आम
सी थी चाय भी बढिया पिलाते थे .लेकिन मुझे
तो शिवानीजी की कथाओं वाली चाय की दुकान
की तलाश थी आखिर वो मुझे अल्मोड़ा शहर के छोटे से बाजार में दिख गई .छोटी सी दुकान ,कोयले के धुएं से काली पड़ी दुकान ही नही बिस्कुट के मर्तबान , दीवार पे टंगे
वर्षों पुराने कैलेण्डर ,कालिख की वजह से कुछ पता नही चल रहा की उनमे किस देवता की
तस्वीर होगी लेकिन मामला देवताओं वाला था इसलिए उन्हें हटाना लाजमी नही रहा होगा .
कोयले की अंगीठी पर चढा अलमुनियम का सौसपेन,जिसके बाहर कोयले की कालिख को साफ करना
छोड़ दिया गया था .हम जब गए तो चाय चढ़ी हुई थी ,ढेर सारी गोल दाने वाली चाय पत्ती
को कडछी से औटा जा रहा था ,दुकान के अंदर एक बेंच लगी थी वैसे स्थानीय लोग बाहर
खड़े खड़े चाय पी रहे थे .मै अंदर घुस कर बेंच पर बैठ गयी .साथ के लोगों ने मुझे
हैरानी से देखा मैंने बिना लोगों की मर्जी पूछे चाय का ऑडर दे दिया .शीशे के छोटे ग्लासों
में चाय आ गयी .चाय पीने में अच्छी थी सो सबों ने मजे ले कर चाय पी .
तभी ,दुकान के सामने एक प्रौढ व्यक्ति आ
रुके ,तीन इंच की वर्गाकार ,मोटी सी शिखा ,जिसके अत में गांठ थी .बदन पर शर्ट,
मैली सी धोती .शायद वो भी चाय पीने रुके थे .मुझे उनके उपन्यासों में वर्णित वैद
ज्यु मिल गए थे .गढवाली ब्राह्मणों का हुबहू वर्णित व्यक्ति सामने खड़ा था .मैंने
उन्हें झुक कर प्रणाम किया ,उन्होंने थोडा अक्च्काते हुए स्वीकार किया .फिर हम लोग
आगे बढ गए .शाम होने को थी ,हमे काफी कुछ देखना था .
बरसात के दिन थे ,इलाके
में ऑफ सीजन चल रहा था ,इसलिए काफी कम भीड़ थी .अच्छा था .यहाँ शिमला -नैनीताल से
कम लोग आते हैं,जबकि प्रकृति यहाँ अपने सुन्दरतम रूप में दिखती है ,जितना उपर जाओ
,उतना प्रकृति का पवित्र स्नेह मिलता है .इसमें यहाँ के सीधे -साधे ,भले लोगों का
भी प्रभाव है .कर्मठ और ईमानदार लोग
.पर्यटकों को लूटने का काम नही करते .
यहाँ काफी गरीबी है ,अपने रोज की जरूरतें पूरी
करने में उनका दिन बीत जाता है,सुन्दर गोरी चिट्टी गढवाली औरतें तराई में जलावन के लिए लकडियाँ चुनते दिख जाती हैं कभी सर पे पानी भर कर लाती हुई सब की नाक में बड़ी सी नथ.जो उनके सौंदर्य को बढता है .मैंने पढा था ,ये नथें,उनकी हैसियत बताती है अमीरों की बहुएं ,ज्यादा बड़ी नथ पहनती है .मै उनकी न्थों को गौर से देखती थी .हाँ ,मुझे शिवानी जी की उन ,तीखे नैनों वाली रहस्यमयी नायिकाओं की तलाश थी जो छलावे की तरह आती थी और अंत में न जाने कहाँ चली जाती थी .शायद इसलिए मुझे नही मिली .
.पर्यटकों के आने से उन्हें कोई खास फायदा नही होता
.बाहर की बड़ी पार्टी होटल खोल के मोटा फायदा उठती है .स्थानीय लोगों को बेयरे या
ड्राइवर के रूप में रोजगार मिलता है .फिर भी ये अपनी धुन में मग्न रहते हैं . कभी
फिर मौका मिले तो मै दोबारा यहाँ आना चाहूंगी .