Wednesday, December 6, 2017

शिक्षालय नही घोटालय

 एक वो समय था जब भागलपुर शिक्षा के लिए जाना जाता था | इसका प्रमाण विक्रमशिला के खंडहरों  को देख कर समझा  जा सकता है |लेकिन एक ये दिन है उसी भागलपुर मे ,विश्व विद्यालय इस कदर शिक्षा माफिया के चंगुल में  फंस गया है की  शिक्षा से सम्बन्धित जितने भी कुकर्म होते हैं सारे किये जा रहे हैं |
भागलपुर का मारवाड़ी कॉलेज कइ  मायने में अभी भी अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखने में सफल रहा है |
लेकिन इधर कई सालों से जो डर्टी पोलटिक्स कॉलेज में देखा जा रहा है वह  निंदनीय है| एक तरफ कोलेज की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही  है दूसरी तरफ कोलेज के प्रभारी प्राचार्य को जिस तरीके से अनर्गल आरोप लगा कर ,जाँच कमिटी बना कर उन्हें कार्य मुक्त करवाने की गंदी चाल  चली गयी है वह  काफी अपमानजनक है | उनकी छवि एक अच्छे शिक्षक के रूप में रही है| प्रभारी प्राचार्य की जिम्मेदारी  ईमानदारी से निभा रहे थे ,इसे में उन पर वित्तीय अनियमितता एवं दुर्व्यवहार का झूठा आरोप लगा कर पद से हटाना मानसिक प्रताड़ना है |सुबह अख़बार में देख कर आश्चर्य हुआ |जिन्दगी भर कमाई प्रतिष्ठा गवां बैठे \| यश पाने में वर्षों लगते है अपयश जंगल की आग समान फैलने में देर नही  लगती जब जाँच कमिटी अपनी रिपोर्ट देगी जब देगी तब देगी ,तब तक वो किस किस को अपने इमानदार होने का प्रमाण देते फिरेंगे |आपोप इतने गम्भीर भी नहीी हैं श्रीमान कुलपति इसे अपने स्तर पर निपटा सकते थे |रिटायरमेंट  से पहले उनके कैरियर पर एक दाग  लग गया |






Tuesday, November 21, 2017

ये जग नक्कारखाना

वो चिल्लाई थी .
हाँ वो चिल्लाई थी ,पर हमने सुनी नहीं | चिल्लाने के सिवा वो कर ही क्या  सकती थी ,शराब का नशा भी उसके दर्द को रोक न सका ,उसके शरीर के कोमल अंगों को ,चाकुओं से गोदा  जा रहा था । वो इससे पहले भी उस अपार्टमेंट में आ चुकी थी सभी पढ़े लिखे लोगों का इलाका ह  कोई उम्मीद होगी तभी चिल्लाई होगी ,पर उसे मालूम नही होगा  आदमी जितना पढ़ लिख लेता है ,वह आम लोगों से अपने को उपर समझने लगता है |ये अपार्टमेंट  गुफा के समान होते हैं .   खोहनुमा  फ़्लैट . सब अपने अपने खोह में दुबके रहते हैं जहाँ दुनिया से जुड़ने के तमाम साधन होते हैं पर पड़ोसियों से मिलने की कोई जगह नही होती  ,पडोस में कुछ भी बीत रहा हो अंदर टी. वी. चल रहा होता  है  देश दुनिया से जुड़े रहने का साधन इसलिए पडोस की घटना टी.वी. से या  अख़बारों से मिलती है।और खबर मिल भी गई तो? वो कुछ भी नही  करेंगे अपराधियों का खौफ टाँगें  पीछे खीँच लेने को बाध्य कर देता है |
हमसे अच्छा वो सडक किनारे रहने वाला ,आम आदमी है कोई दुर्घटना होते ही घायल को अस्पताल भी पहुंचता है और सडक जाम कर प्रसाशन को हिला डालता है | ये अपार्टमेंट में रहने वाले सुन कर अनसुनी कर देते हैं देख कर अनदेखा कर देते हैं जो बोलने की नौबत आई तो जबान इस तरह बंद कर लेते हैं गलती से कुछ निकल न जाये .
हमे कभी माफ़ मत करना बच्ची हम भी तुम्हारे गुनाहगार हैं |

Monday, November 20, 2017

भोथरा समाज

भागलपुर जैसे छोटे शहर में अपार्टमेंट संस्कृति का  पनपना दुखद है \छोटे शहर इस लिए अपने जैसे लगते हैं क्यों की यहाँ  आपको व्यक्तिगत रूप से  पहचानते हैं  कल को अगर आपके साथ कोई दुर्घटना होती भी है तो बड़े शहरों की तरह आपको सडक पर छटपटाता  छोड़ कर  कन्नी काट कर  निकल नही  सकते शहर छोटा है ,पर  दिल बड़ा रखते हैं |लेकिन इस शर्मनाक घटना ने समाज के बदलते स्वरूप की इशारा किया है जो  भयावह है | एक ऐसा समाज जिसे सिर्फ अपने से मतलब है अपार्टमेंट में परिवार के साथ रहते हैं |,दुर्घटना उस वक्त घटी जब  लोगों के आने जाने का समय होता है |वो पर  चिल्लाई हमने नही सुनी ,क्यों?हम टी.विै.पर देश दुनिया की  खबर सुन रहे थे | अपने अगल बगल से कोई मतलब नही ,या  फिर हमने इस वजह से सुनना नही  चाहते क्यों की हम डरते हैं ,|दोनों ही परिथिति भयावह है  बात चाहे पुलिस की हो आतंक की हो या  उदासीनता की हो यह सही नही  है|

Friday, October 27, 2017

सफर अकेले

अकेली  महिला का सफर करना आज भी घर के लोगों के लिए चिंता का विषय होता है खास। कर  जो विशुद्ध गृहणी हों और पहली वार अकेली सफर कर रही हों | सबसे पहले ऐसे ट्रेन की तलाश की जाती है जो सीधा गंतव्य तक जाती हो फिर उसके वहां पहुंचने का समय पता किया जाता है शाम से पहले पहुंचे ,बर्थ भी लोअर हो ,सहयात्री चुनना सम्भव नहीं। वरना। .....| मुझे जब पहलीवार दिल्ली जाना था ,ऊपर लिखी सारी प्रक्रिया पूरी हो गई तब स्टेशन जाने के पूरे रस्ते हिदायतें चलती रही अब मुझे लगा बच्चे हिदायतों से क्यों इतना बिदकते हैं | ट्रेन में मुझे बर्थ पर बिठा कर पूछा सामान कहां रखा जाए ? मैं जिस सीट पर थी मैंने कहा मेरे सामने वाली बर्थ के नीचे रखने से मुझे सामान दिखता रहेगा फिर ये खुद कह कर गए की अगर कोई जान पहचान वाला मिला तो उसे मेरा ख्याल रखने को बोल देंगे | ट्रेन चल पड़ी ,शायद इन्हे कोई पहचान वाला नहीं मिला यानि सफर के समुद्र में मुझे बेसहारा छोड़ना पड़ा | सफर में मुझे भूख बहुत लगती है क्योकि निकलने की हड़बड़ी में खाना नहीं होता है और खाने के बाद नींद की बारी होती है ,ट्रेन के हिचकोले मुझे झूले के समान लगते हैं | लेकिन इस वार ऐसा कुछ नहीं हुआ ,अकेले खाने में ठीक नहीं लग रहा था सोचा जब सब खाएंगे तभी खाउंगी दूसरे जिस बर्थ के नीचे मेरा सामान था उसने आते ही मेरा सामान मेरी बर्थ के नीचे रखवा दिया। अब लो सारे समय मुझे सामान की चिंता होने लगी कभी चप्पल ढूढ़ने के बहाने कभी कुछ मुझे झांकना पड़ता था ,सोती क्या खाक ? किसी सहयात्री से बातचीत नहीं करने की हिदायत थी इसलिए सफर उबाऊ लगने लगा था | ए. सी बोगीयां मुझे नापसंद है क्योंकि उससे बाहर का नजारा नहीं दीखता दूसरे हॉकर नहीं आते तरह तरह के चटपटे स्वाद सफर का आनंद बढ़ाते हैं एक समोसे वाला आया भी तो उसके समोसे दो गुने महंगे थे ,मुझे गुस्सा आ गया ,सोचा इससे अच्छा लौट के अपने शहर वाला ही खाउंगी। अकेले सफर करने का रोमांचक सपना बेकार लगा

Tuesday, September 5, 2017

मौत के सौदागर

दहशत,बिक रहा है। मिडिया दहशत,मौत का वीडियो खरीद रहा है।क्यों कि उसे अपनी टीआर पी बढ़़ानी है।देखना दर्शकों की मजबूरी है। सभी समाचार चैनल वही दिखा रहे है। अगर पंचकूला की रिपोर्टिग वैसी दहशत फैलनेवाली नही} होती तो क्या होता? क्या मामले की गम्भीरता कम हो जाती ? कोई मर रहा होता है ,हम अपने घरों में बैठ कर तमाशा देख रहे होते हैं  ये सच है ,मिडिया ने मौत को तमाशा बना डाला है कहाँ तो प्राचीननाट्य शास्त्र में मंच पर मृत्यु को दिखाना वर्जित था |पर अब शव दिखाना वो चाहे कितना भी वीभत्स हो ,दिखाया जाता है , बार बार दिखाया जाता है ,देख कर मन अशांत हो जाता है  मन अशांत होना , दिमाग में वहीं दृश्य घूमना ये सब अब कुछ हम जैसे खाली लोगों का शगल कहलाता बाकियों के लिए ये भुनाने का अवसर है |कोई पैसे बनाता है ,किसी को वाहवाही चाहिए |समवेदनाओं का इस तरह कुंद हो जाना ,एक बेहद भयावह भविष्य की चेतावनी है |हम एक वहशी क्रूर  समाज निर्माण की ओर बढ़ रहे हैं जहां इंसानियत नहीं हैवानियत का बोलबाला होगा किसी को पीटपीट कर मार डाला जा रहा है ,कोई पेट्रोल दाल कर नजरों के सामने जल कर मर रहा है ,लड़कियों की सरेआम इज्जत लूटी जा रही है ,,हादसे में लोग मर रहे हैं मगर आप सहायता के बदले विडिओ बना रहे होते हैं एक छोटे से यंत्र मोबाईल ने हमारा चरित्र बदल डाला ? या हम अंदर से ऐसे ही थे ,इस यंत्र कीवजह से हम अपने असली रूप में आ गए | एकल परिवार के बढ़ते चलन सेसे वैसे ही  आत्ममीयता खोती जारही है पहले समाज से नाता टुटा फिर संयुक्त परिवार छूटा ,अब सिर्फ माता पिता के प्रति लगाव रह गया है ,एकलौता बच्चा प्रायः तानाशाहों की तरह व्यवहार करता है | इसमें गलती उसकी नहीं हमारे परवरिश की कमी है।                      यों  मोबाईल से विडिओ बनाने के पीछे पैसों का गणित भी काम करता है | पैसे दे क्र किसी की हत्या करवाने की बात सुनते हैं लेकिन एक आम आदमी भी ऐसा हो सकता है ऐसा नहीं सोचा था |

Sunday, August 27, 2017

बिहार की गत

कौन बनेगा करोड़पति शुरू होने वाला है...और सामने हैं सृजन घोटाला । इसीलिए, उसी तर्ज़ पर पूछती हूँ, । प्रश्न है, बिहार  के विकास को किसने रोका ?किसने लूटा ? आपके सामने चार ऑप्शंस हैं.... शिक्षा माफिआ ने, जातिवाद ने, डॉक्टरों ने  या भर्ष्टाचार ने ?  उत्तर  चौकाने वाला है. क्योकि ये चारों ऑप्शंस सही हैं.  बिहार को सबने मिल के लूटा है ।चारों ने विकास के चारों हाथों पैरों को पकड़ लिया और नेता ने पीछे से एक लात मारी। बिहार का विकास चारों खाने चित ! चूँकि लात नेता ने मारी तो बदनाम बेचारा नेता हो गया. लूटा तो सबों ने मिल के है !  सवाल का जवाब थोड़ा छोटा है, इसीलिए इस मुद्दे पर फोकस डालना ज़रूरी है। बिहार को शिक्षा माफिआ ने इस कदर बदनाम किया कि सही प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की डिग्री का माखौल बन रहा है ।डीग्री घोटाले में धरपकड़ अभी चल ही रही थी की टौपर घोटाला  सामने आ गया!  यहां जातिवाद लोगों की रगों मे है । चुनाव में नेता चाहे कितना भी तगड़ा  हो, जनता उसी को वोट देती  है, जो उसकी जात का है.  भर्ष्टाचार का आलम ये है, की सरकारी अधिकारी, कर्मचारी, ठेकेदार सब मिल के खाते हैं. और उसके बाद  जो चीज़ बनती है वो बनते-बनते ही टूटने लगती है. फिर चाहे वो पुल हो या सड़क. ।डॉक्टर इस कदर मरीज़ को लूटते हैं, की वो कंगाल बन जाता है। आप एम्स मे जा कर देखें ,75% मरीज बिहारी होते हैं ।. और अंतत 'ऐम्स' में जा के इलाज करवाता है. एक नमूना देखें की हड्डी वाले  डॉक्टर का तीसरी मंजिल  पर अपना क्लिनिक  है. उसकी फीस ७०० है लेकिन नीचे उतर कर  मरीज को देखने की फीस १००० रूपये हैं ।टूटी हुयी हड्डी की वजह से मरीज़ ऊपर जा नहीं पाता, डॉक्टर साब नीचे उतारते हैं और १००० रुपये फीस वसूल के ऊपर चले जाते हैं. वैसे उनके आलिशान मकान में लिफ्ट नही है पर पोर्टिको के ऊपर तक गाडी जाती है. लेकिन ठेला नहीं जा पाता है. इस प्रतियोगिता मे कोई इनाम नहीं है... ईनाम के बदले है धमकी !  ज्यादा फटर फटर किये तो घर  में घुस के मारेंगे।

होप लेस केस


कौन बनेगा करोड़पति शुरू होने वाला है...और सामने हैं सृजन घोटाला । इसीलिए, उसी तर्ज़ पर पूछती हूँ, । प्रश्न है, बिहार  के विकास को किसने रोका ?किसने लूटा ? आपके सामने चार ऑप्शंस हैं.... शिक्षा माफिआ ने, जातिवाद ने, डॉक्टरों ने  या भर्ष्टाचार ने ?  उत्तर  चौकाने वाला है. क्योकि ये चारों ऑप्शंस सही हैं.  बिहार को सबने मिल के लूटा है ।चारों ने विकास के चारों हाथों पैरों को पकड़ लिया और नेता ने पीछे से एक लात मारी। बिहार का विकास चारों खाने चित ! चूँकि लात नेता ने मारी तो बदनाम बेचारा नेता हो गया. लूटा तो सबों ने मिल के है !  सवाल का जवाब थोड़ा छोटा है, इसीलिए इस मुद्दे पर फोकस डालना ज़रूरी है। बिहार को शिक्षा माफिआ ने इस कदर बदनाम किया कि सही प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की डिग्री का माखौल बन रहा है ।डीग्री घोटाले में धरपकड़ अभी चल ही रही थी की टौपर घोटाला  सामने आ गया!  यहां जातिवाद लोगों की रगों मे है । चुनाव में नेता चाहे कितना भी तगड़ा  हो, जनता उसी को वोट देती  है, जो उसकी जात का है.  भर्ष्टाचार का आलम ये है, की सरकारी अधिकारी, कर्मचारी, ठेकेदार सब मिल के खाते हैं. और उसके बाद  जो चीज़ बनती है वो बनते-बनते ही टूटने लगती है. फिर चाहे वो पुल हो या सड़क. ।डॉक्टर इस कदर मरीज़ को लूटते हैं, की वो कंगाल बन जाता है। आप एम्स मे जा कर देखें ,75% मरीज बिहारी होते हैं ।. और अंतत 'ऐम्स' में जा के इलाज करवाता है. एक नमूना देखें की हड्डी वाले  डॉक्टर का तीसरी मंजिल  पर अपना क्लिनिक  है. उसकी फीस ७०० है लेकिन नीचे उतर कर  मरीज को देखने की फीस १००० रूपये हैं ।टूटी हुयी हड्डी की वजह से मरीज़ ऊपर जा नहीं पाता, डॉक्टर साब नीचे उतारते हैं और १००० रुपये फीस वसूल के ऊपर चले जाते हैं. वैसे उनके आलिशान मकान में लिफ्ट नही है पर पोर्टिको के ऊपर तक गाडी जाती है. लेकिन ठेला नहीं जा पाता है. इस प्रतियोगिता मे कोई इनाम नहीं है... ईनाम के बदले है धमकी !  ज्यादा फटर फटर किये तो घर  में घुस के मारेंगे।

Monday, August 21, 2017

बोलते अक्षर: एक बहन की मांग

बोलते अक्षर: एक बहन की मांग

एक बहन की मांग

< सौरी भैया ,मैने.आपको राखी नही बांधी ,ऐसा पहलीवार हो रहा है और मैने सोच समझ कर ये फैसला किया,अब मैं कमजोर नहीं हुँ।आत्मरक्षा मैं कर सकती हुँ।लेकिन भैया तुम सिर्फ मेरी रक्षा करते हो बाकी लडकियों के लिए तुम भेडिये हो।एक ऐसा भेडिया जिसकी लपलपाती नजरें हर वक्त अपना शिकार ढूढ रही होती हैं।वो जगह चलती बस हो,कार हो,सड़क,पड़ोस,घर कहीं हो सकती है।उसकी कातर आँखें तुम्हें पहचान रही होंगी ,तो तुम उसे फोड़ डालते हो।अगर ज्यादा छटपटाइ होगी,तब अपने चार,पाँच,छे साथियों के साथ उसके टांग हाथ तोड़ने मे तुम्हें दया नहीआती?उसकी मर्मातक चीखें ,तुम्हें सोने देती है?कोइ इंसान इतनी विभत्स हत्या कर सकता है? जानवर भी इतना क्रूर नही होता।उस वक्त तुम चाहे पढ़े लिखे हो या मजदूर सभी बन जाते हो नरपिशाच ।भैया मै तुमसे या किसी से रक्षा नही चाहिए ।हमें चाहिए भरोसा। एक ऐसे समाज मे रहने का जहाँ हम तुम्हारी तरह रहें जब चाहें जहाँ चाहें जाऐं अपनी पसंद का पहनू।मुझे अपने लिए भैया बाकी}यों के लिए भेढडि़या नही चाहिए।हमें ऐसा भरोसा दोगे भैया? ।

Saturday, June 24, 2017

पुत्र दंश

मै थाने में पुलिस इंस्पेक्टर के सामने बैठी थी ,इंस्पेक्टर मेरी ओर इशारे करके बड़ी हिकारत से लोगों को बता रहा था ,कैसी शरीफ बन कर बैठी है, इनको सिर्फ बच्चा पैदा करना आता है ,पैदा किया और छोड़ दिया लोगों की नींद हराम करने |मै अवाक् थी ,आज शाम को थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा टी वी देख लूँ |शारदीय नवरात्रों के दिन थे ,सोचा नौकरी के चक्कर में पूजा -पाठ नही हो पाता है माता के भजन सुन कर कुछ पूण्य कमा लूँ टी वी ऑन किया तो स्थानीय समाचार चल रहे थे शहर में दिन दहाडे एक लडकी को अगवा कर लिया गया था शहर में गुंडागर्दी बढ़ गई थी इसलिए लडकी जल्दी घर से सहेलियों के साथ निकली थी ये सोचकर की,अंधेरा होने से पहले लौट पाए ।गुंडो ने दिन दहाड़े मेले की भीड़ से उसे खींच कर बड़ी सी गाड़ी पर ले गए ।सब हतप्रभ रह गए ,कोई कुछ न कर पाया। घटना की खबर ,जंगल मे आग की तरह फैल गई लोगों का गुस्सा फूट पड़ा ,घटना कि जिम्मेदरी पुलिस वालों पर डाली गई ,जनता के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए पुलिश तुरत हरकत में आ गई ,खबर थी की दोषी पहचान लिए गये है धर पकड़ की जा रही है \ तभी दरवाजे पaर दस्तक हुई ,उठते हुए मैने सोचा सूर्य बोल के गया है थोड़ी देर से लौटेगा किसी दोस्त के गाँव जाएगा ।दरवाजा खोलते ही एक महिला सिपाही ने गुस्से से मेरे बाल पकड़े और साथ में आए लोगों से कहा नागिन मिल गई ,थाने ,चल तेरा सपोलिया वहीं तेरा इंतजार कर रहा है | टी वी की खबर मेरे दिमाग में कौंध गई ,सन्न हो गये दिमाग से मैन कुछ नही पूछा और चुप चाप चल पड़ी , हमारा छोटा शहर है ,सब लोग एक दूसरे को पहचानते हैं ।मुझे पता था मुहल्ले के हर दरवाजे पर लोग होंगे . थाने में सामने हाजत में सूर्य बंद था मैंने सूर्य की तरफ देखा उसके चेहरे पर उदासी थी बस वैसी ही जब कभी नम्बर कम आते थे .इससे ज्यादा कुछ नही ,उसके चेहरे की उदासी कम न हो इसके लिए क्या नही किया |जब सूर्य दो साल का था तभी विनय एक रोड एक्सीडेंट में चले गये , बड़े शौक से सूर्य नाम रखा था,कहते थे ,देखना अपने नाम को सार्थक करेगा मेरा बेटा ।सूर्य को बड़े स्कूल में पढ़ाने का सपना मुझे पूरा करना था |बड़े स्कूल के खर्चों को पूरा करने में सूर्य को समय नही दे पाती ,एक दिन सूर्य को मुहल्ले के आवारा बच्चों के साथ खेलता देख आग बबूला हो उठी ,दुसरे ही दिन एक छोटा टी वी खरीद लाई ,ताकी वो घर में रहे । टी वी के सामने उसे नाचता हुआ देख कर उसे हंसी आ गई |कुछ दिनों पहले एक शादी की पार्टी में उसे डीजे वालों से अश्लील गानों की फरमाइश करते और उन्ही आवारों लडकों के साथ झूमते देख कर अच्छा नही लगा ,पर आजकल ऐसे ही गाने बनते हैं सोच कर चुप हो गई । पुलिस इंस्पैक्टर की और देख कर मैं पूछना चाहती थी जमानत कैसे होगी ? तभी भीड़ के साथ एक औरत थाने में घुस आई ,मुझे देखते ही वो चिल्ला चिल्ला कर बोलने लगी, यही है उस गुंडे की माँ .इसके कोई बेटी नही है इसलिए इसे पता नही होगा ,इसके गुंडे बेटे ने मेरी बेटी का घर से निकलना छुड़वा दिया था ,आज वो पूजा करने निकली थी की इसके बेटे ने उसका जीवन बिगाड़ दिया ,उस औरत ने पुलिस वालों को धक्का दे कर उसकी और झपटी ,मैं देख रही थी लेकिन मैंने बचने की जरा भी कोशिश नही की ,वो मुझे तड़ातड़ चांटे मार रही थी।उसका हर चांटा, मुझे प्रायश्चित समान लग रहा था ।उस औरत ने मुझे झिंझोड़ डाला बार पूछ रही थी बोल मेरी बच्ची का क्या होगा .बड़ी मुश्किल से महिला कॉन्स्टेबल उसे छुड़ा पाई |उसके जाने के बाद मैन कुर्सी से उठते हुए कहा इंस्पेक्टर साहब ,मेरा बेटा अब समाज की गंदगी बन गया है मै इस गंदगी को अपने घर नही ले जाउंगी ,इसका जो करना है आप करें ।मैं चल पड़ी ,पीछे से इंस्पेक्टर की आवाज सुनी,कहा इन्हें घर तक छोड़ आओ,देखना कोई परेशान न करे ।थाने के बाहर लोगों की भीड़ थी पर पुलिस के रहते किसी ने कुछ नही कहा।घर लौट कर अंदर से दरवाजा बंद कर ,ढेर सारी नींद की गोली खा ली ,कहा हे माता रानी,अब मुझे मत जगाना ,मेरे बेटे का जहर मुझे डँस गया।

Saturday, June 10, 2017

आशंकित मन

निष्ट्ब्ध रातें मुझे बहुत डराती हैं .कहीं से कोई आवाज नही आती है .इस सृष्टि में न जाने कितने तरह के जीव जन्तु है जो बरसात के महीनों में इस कदर शोर मचाते हैं की कभी डर सा लगने लगता है कहीं ये कोई साजिश न रच रहे हों .पर अभी उनको क्या हो गया है ,क्या वो भी मेरी तरह ,खुली आँखों से चुपचाप किसी अनहोनी की आशंका से डर से शांत हो गये हैं .अरे कोई कुछ तो बोलो ,अच्छा नही तो बुरा ही बोलो ,ये सन्नाटा क्या सही में तूफान लायेगा ?चलो वो भी सही .कुछ होगा लोग अपने अपने अनुभव बताएँगे ,कोई फोन से चीख चीख कर अपनी बात बोलेगा . हो जाएगी चहल पहल तभी अजान की आवाजें आने लगी ,तो सबेरा हो चला .दरवाजा खोल के बाहर निकली ,सामने सूरज का लाल गोला ,हंसता हुआ सा लगा ,जैसे कह रहा हो ,पगली ,डर रही थी ? मै आ ही रहा था ,सचमुच वक्त पर सब हो जाता है .हम खामखा घबराए से रहते हैं .

Wednesday, May 31, 2017

सत रँगी मनवा

उकेरती हूँ, रंगों से अंतर्मन, रंगों की अनोखी दुनिया। कुछ बोलते से रंग, हर भाव का अपना रंग। रंगों से अठखेलियां करती,भावनाएं । स्याह सफेद,शोख मटमैले से रंग। कोई पूछे तो सही जीवन मे स्याह इतना फैला सा क्यों है? सफेद इतना चौधियाता कैसे है। शोख रंगों की गहराइयों में डूबता ये मन मटमैले रंगों से किनारा करता ये मन । लाल रंग से लहू लुहान होता कभी, मन बसन्ती हो जाता ये मन। कभी हरियाली फैलता ये मन । कभी रंग जोगिया में खो जाता ये मन । रंगों से उकेरती हूँ अंतर्मन ।

Saturday, February 25, 2017

हम औरतें ।

हम औरर्ते ,मर्दों से कुछ हट के हैं। साड़ी,चूड़ी,गहने,श्रृंगार करते हैं हम औरते ,जीवन में रंग भरते है, हम मकान को घर बनाते हैं हम खण्डहर को गुलजार करते हैं। हम औरतें,मर्दों से कुछ हट के हैं। हम बहुरूपिये हैं । क्षण क्षण,र्रूप बदलते है, कभी प्रेमिका,कभी पत्नी,कभी मां बन जाते हैं। हमारी खुशियो पर नजर लगते देर नही लगती, ये नजर भी औरते ही लगाती हैं। हम औरते,मर्दों से कुछ हट के हैं। बेटे को, आज्ञाकारी बनाते हैं सासू माँ के लाडले को, जी भर कोसते हैं। हमे बात बात पर रोना। आता हैं । हम झट से खिलखिला पड़ते हैं। उँगलियों पर जोड़ कर पैसे देते हैं, सालगिरह,वर्षगांठ, हम नहीभूलते हैं। हम औरतें,मर्दों से कुछ हट के हैं।

हम खास हैं

हम औरर्ते ,मर्दों से कुछ हट के हैं। साड़ी,चूड़ी,गहने,श्रृंगार करते हैं हम औरते ,जीवन में रंग भरते है, हम मकान को घर बनाते हैं हम खण्डहर को गुलजार करते हैं। हम औरतें,मर्दों से कुछ हट के हैं। हम बहुरूपिये हैं । क्षण क्षण,र्रूप बदलते है, कभी प्रेमिका,कभी पत्नी,कभी मां बन जाते हैं। हमारी खुशियो पर नजर लगते देर नही लगती, ये नजर भी औरते ही लगाती हैं। हम औरते,मर्दों से कुछ हट के हैं। बेटे को, आज्ञाकारी बनाते हैं सासू माँ के लाडले को, जी भर कोसते हैं। हमे बात बात पर रोना। आता हैं । हम झट से खिलखिला पड़ते हैं। उँगलियों पर जोड़ कर पैसे देते हैं, सालगिरह,वर्षगांठ, हम नहीभूलते हैं। हम औरतें,मर्दों से कुछ हट के हैं।

Sunday, February 19, 2017

बदलाव आहिस्ता आहिस्ता

हम बदल रहे हैं .लेकिन बड़े प्यार से आहिस्ता –आहिस्ता ,इतना की हमे खुद पता नही हो रहा है .मजे की बात ये है की इस परिवर्तन के लिए न कोई आन्दोलन हुआ न तो कोई झड़पें हुई पर हम बदल गये .आप लाख कहें ,कोई हो नहो की आप तो अपनी परम्परा को सम्हालने वाले अकेले इन्सान है पर जब मै बिदुवार इसके लक्ष्ण गिनाउंगी तो कही न कहीं आपकी सुई अटक जाएगी ,और एक चुभन जरुर महसूस होगी हमारी भाषा ,पहनावा ,खाना –पीना ,रीती-रिवाज ,और विचारों ने तो ऐसी छलांग लगाई है की पुरानी सोच चारों खाने चित्त हो गया है . शायद ये ग्लोबल संस्कृति की शुरुआत हो . हमारी भाषा ,पहनावा ,खाना –पीना ,रीती-रिवाज ,और विचारों ने तो ऐसी छलांग लगाई है की पुरानी सोच चारों खाने चित्त हो गया है . शायद ये ग्लोबल संस्कृति की शुरुआत हो . 1. सबसे पहले अपनी बोली हिदी को लें.अंग्रेजी शब्दों से भरी हुई जिसमे क्षेत्रीय भाषा का तड़का लगा कर बोली जाने लगी है. 2. छोले भटूरे ,इडली डोसा ,चाउमीन ,ढोकला ,पावभाजी ,दही बड़ा ,पुरे देश में मिलती है ,और चाव से खाई जाती है . 3. सलवार सूट पर अब पंजाबियों का एकाधिकार नही रहा .सबों ने इसे स्वीकार कर लिया है लडकियों ने ही नही आंटियों को भी भा गया है . 4. कुंवारी लडकियों का नौकरी करना वो भी अपने घरों से दूर अकेली रह कर ,कल्पना से परे था,बल्कि कम औकात की बात होती थी .अब हर कोई नौकरिवाली पत्नी चाहता है . 5. लाडले बेटे का घरेलू कामो में अपनी पत्नी की हेल्प करने पर खून का घूंट पी कर रहने वाली माएं ,अब बेटे को कोओपरेटिव नेचर वाली सीख दे रही है 6. लडकों को भी अब नैपी बदलने ,पौटी साफ करने से कोई परहेज नही है . 7. परिवार के साथ दूर दर्शन पर चित्रहार या सिनेमा देखते वक्त एडल्ट सीन के समय लोग इधर उधर ताकने लगते थे .अब तो सोशल मिडिया पर घर की बहु बेटियां आधुनिक कपड़ों में सेल्फी पोस्ट करने में हिचक नही करती उधर ससुर जी like करने लगे हैं . 8. अपने शहर में होटल में खाना फिजूलखर्ची माना जाता था अब उसे रईसी माना जाने लगा है. 9. सबसे अछ्छी बात लडके लडकियों का एक समान पालन पोषण होने लगा है . 10. सबसे दुखद है ,खेती को छोड़ना .पहले नौकरी को निकृष्ट और खेती को उत्तम कार्य माना जाता था अब ठीक उल्टा नौकरी करने वाले अपने खेत बेच कर नौकरी वाले स्थान में भाग रहे हैं अपनी पहचान खो कर एक शहरी चेहरा बन कर रहने को अभिशप्त मनुष्य | .

Thursday, January 5, 2017

अपने अपने खोह ( फ़्लैट )

कोई सा फ़्लैट हो Cययसकता है ,ये कोई वृद्धा हो सकती है , ये किसी की माँ ,पत्नी ,सास ...... कोरिडोर में किसी के चलने की आवाज होती है .वो बड़े ध्यान से सुनती हैं ,उनका दिमाग चलने लगता है,आहट थोड़ी अलग सी है . क्या पता यहीं आता हो,उन्होंने गर्दन घुमाईे घर का जायजा लिया ,थोडा बिखरा है पर ,इतना तो दरवाजा खोलने से पहले भी किया जा सकता है .कोई धड से थोड़े ही दरवाजा खोलता है ?मान लो खोलने में देर हो गई पर जैसे ही उन पर नजर जाएगी वो, खुद समझ जाएगा (उम्र देख कर )क्यों देर हुई ,फिर ध्यान किचन पर चला गया ,चाय के साथ देने के लिए बिस्किट वगैरा हैं की नही. उन्हें याद आया,हाँ नमकीन वाले हैं फिर उन्हों ने अपने बालों में हल्की सी ऊँगली घुमाई ,बाल ज्यादा उलझे नही लगे अब उनमे कॉन्फिडेंस आगया ,अब ठीक है. कदमो की आहट उनके फ़्लैट तक आई पर बिना रुके आगे निकल गई . वे मायूस हो गई ,पर फिर अपने आप को झिड़का ,मालूम है की यहाँ कोई नही आता तो उम्मीद लगाने की जरूरत ही क्या थी? वो फिर से फोफे पर पसर गई .कोई तो आता नही पर ये उनके लिए एक खेल बन गया था .हर आहट उसकी मंजिल यानि घर के दरवाजे {जहाँ तक उनके कान उस आवाज का पीछा करते। आवाजों को वो अब पहचानने लगी है पडोस का नटखट बाबला ,उसे कभी चलते नही सुना हमेशा उसके दौड़ने की आवाजे सुनी है . उन्होंने मन में सोचा ये घर अंदर भी क्या ऐसे ही दौड़ता होगा ?उनके सामने वाले फ़्लैट का नौकर भगता हुआ निकलता ।उसकी मालकिन उसे भाग कर सामान लेने भेजती,कहते हुए , जल्दी ले के आ सब्जी बनानी है ।पर वो लौटता ,बड़े आराम से कोई हिप हॉप गाना गुनगुनाता हुआ । शाह जी,दफ्तर जाने के पहले हिदायत देना नही भूलते,पर समझ में नही आता ,सारी हिदायते,घर के अंदर ,क्यों नही दे डालते ,क्या वो ये चाहतें है की लोग सुने? बेटा राहुल ,देर से लौटता था .तब भी मोबाइल नही छुट्ती थी ,इशारों से हाल चाल पूछता हुआ ।तब उन्हें बड़ी झुंझलाहट होती थी ।सारा दिन चुपचाप बीताने के बाद वो बताना चाहती थी की उस भागने वाले बच्चे का सर फूट गया ,तमाम हिदायतों के बावजूद शाह की पत्नी ने बिना पूछे दरवाजा खोल दिया ,कुरियर वाले के बहाने चोर काफी सामान उठा ले गए । .उन्होंने बेटे से कहा था कम से जस्ट पड़ोसी से जान पहचान रखनी चाहिए ।लेकिन रोहित ने कहा उसे खुद फुर्सत नही मिलती टीवी तक नही रखा है उन्होंने मन ही मन सोचा ,(यही बड़े शहरों की त्रासदी है )और उन्हें रहना ही कितने दिन हैं उन्हें ये सही लगा . रोहित की बीमारी की वजह से उन्हें आना पड़ा था.बीमारी पेट की थी डाक्टर ने घर का बना खाने की हिदायत दी थी इसलिए वो आई थी। लौटते समय उन्होंने मुड़ के देखा ,अब कौन सुनेगा उन आवाजौं को ,आवाजे यूँ ही आया करेंगी,खो जाया करेंगी शून्य में ।