Saturday, February 25, 2017

हम औरतें ।

हम औरर्ते ,मर्दों से कुछ हट के हैं। साड़ी,चूड़ी,गहने,श्रृंगार करते हैं हम औरते ,जीवन में रंग भरते है, हम मकान को घर बनाते हैं हम खण्डहर को गुलजार करते हैं। हम औरतें,मर्दों से कुछ हट के हैं। हम बहुरूपिये हैं । क्षण क्षण,र्रूप बदलते है, कभी प्रेमिका,कभी पत्नी,कभी मां बन जाते हैं। हमारी खुशियो पर नजर लगते देर नही लगती, ये नजर भी औरते ही लगाती हैं। हम औरते,मर्दों से कुछ हट के हैं। बेटे को, आज्ञाकारी बनाते हैं सासू माँ के लाडले को, जी भर कोसते हैं। हमे बात बात पर रोना। आता हैं । हम झट से खिलखिला पड़ते हैं। उँगलियों पर जोड़ कर पैसे देते हैं, सालगिरह,वर्षगांठ, हम नहीभूलते हैं। हम औरतें,मर्दों से कुछ हट के हैं।

2 comments:

  1. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति नीता जी।
    मेरी पोस्ट का लिंक :
    http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/01/blog-post_5.html

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  2. धन्यवाद राजेश जी ,आपने पढ़ा और प्रतिक्रिया भी दी,आभार।

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