Friday, October 27, 2017

सफर अकेले

अकेली  महिला का सफर करना आज भी घर के लोगों के लिए चिंता का विषय होता है खास। कर  जो विशुद्ध गृहणी हों और पहली वार अकेली सफर कर रही हों | सबसे पहले ऐसे ट्रेन की तलाश की जाती है जो सीधा गंतव्य तक जाती हो फिर उसके वहां पहुंचने का समय पता किया जाता है शाम से पहले पहुंचे ,बर्थ भी लोअर हो ,सहयात्री चुनना सम्भव नहीं। वरना। .....| मुझे जब पहलीवार दिल्ली जाना था ,ऊपर लिखी सारी प्रक्रिया पूरी हो गई तब स्टेशन जाने के पूरे रस्ते हिदायतें चलती रही अब मुझे लगा बच्चे हिदायतों से क्यों इतना बिदकते हैं | ट्रेन में मुझे बर्थ पर बिठा कर पूछा सामान कहां रखा जाए ? मैं जिस सीट पर थी मैंने कहा मेरे सामने वाली बर्थ के नीचे रखने से मुझे सामान दिखता रहेगा फिर ये खुद कह कर गए की अगर कोई जान पहचान वाला मिला तो उसे मेरा ख्याल रखने को बोल देंगे | ट्रेन चल पड़ी ,शायद इन्हे कोई पहचान वाला नहीं मिला यानि सफर के समुद्र में मुझे बेसहारा छोड़ना पड़ा | सफर में मुझे भूख बहुत लगती है क्योकि निकलने की हड़बड़ी में खाना नहीं होता है और खाने के बाद नींद की बारी होती है ,ट्रेन के हिचकोले मुझे झूले के समान लगते हैं | लेकिन इस वार ऐसा कुछ नहीं हुआ ,अकेले खाने में ठीक नहीं लग रहा था सोचा जब सब खाएंगे तभी खाउंगी दूसरे जिस बर्थ के नीचे मेरा सामान था उसने आते ही मेरा सामान मेरी बर्थ के नीचे रखवा दिया। अब लो सारे समय मुझे सामान की चिंता होने लगी कभी चप्पल ढूढ़ने के बहाने कभी कुछ मुझे झांकना पड़ता था ,सोती क्या खाक ? किसी सहयात्री से बातचीत नहीं करने की हिदायत थी इसलिए सफर उबाऊ लगने लगा था | ए. सी बोगीयां मुझे नापसंद है क्योंकि उससे बाहर का नजारा नहीं दीखता दूसरे हॉकर नहीं आते तरह तरह के चटपटे स्वाद सफर का आनंद बढ़ाते हैं एक समोसे वाला आया भी तो उसके समोसे दो गुने महंगे थे ,मुझे गुस्सा आ गया ,सोचा इससे अच्छा लौट के अपने शहर वाला ही खाउंगी। अकेले सफर करने का रोमांचक सपना बेकार लगा