Saturday, April 7, 2018

अनमोल रिश्ते

शहर मे अफवाहों का बाजार गरम था ,हम  बिगड़ते माहौल की चर्चा मे  सर को याद कर  ही रहे थे की ,तभी वौआ( सर के छोटे बेटे )ने फोन किया, कहा  बाउजी नहीं रहे ।हमें झटका लगा। (प्रोफेसर नरेश झा  TMBU मे अर्थशास्त्र के प्रोफेसर। )इन्होने पी एच डी उन्ही के अंतर्गत किया है इसलिए वो शाब्दिक रूप से भी हमारे गुरु थे।   लगा जैसे सिर से स्नेह की छांव हट गयी हो।  छल प्रपंच से परे एक सरल इन्सान ।पिछले दंगो मे हम कई दिनो। तक उनके घर मे रहे थे।एक परिवार की तरह, हमें लगा ही नही हम मेेहमान हैं।  पूरे परिवार ने जिस आदर और   अपनेपन से रखा ,वो हमारे लिए अनमोल थाती है।   
अपने मूल इलाके से दूर ,ठेठ मैथिल परिवार से मिल कर हमे बहुत अच्छा लगता था। हम अक्सर उनके घर जाया करते थे और ये सिलसिला उनके 
रिटायरमेन्ट तक चला जिसका श्रेय ,कन्हाई जी की मां को जाता है।मिथिलांचल के एक से एक व्यंजन और उनका प्रेमपूर्वक आग्रह से खिलाना, हम उनके स्थाई मेहमान बन गए थे।
   कुछ दिन पहले उनकी पचासवी विवाह वार्षिकी थी । यह बड़ेे सौभाग्य की बात है। उनके श्रवणकुमार सरीखे बच्चों  ने बड़ेे उत्साह एवं धूमधाम से पूना के रिसौर्ट मे मनाया था ।उसी मौके पर सर ने अपनी खुशहाली एवं स्वास्थय का श्रेय अपनी अर्धांगिनी  को माना। सच है ,सर की दिनचर्या उनकी दिनचर्या बन गई थी।
ईश्वर से यही प्रार्थना है की इस विकट परिस्थिती  से उबर कर अपने मन की व्यथा  को भुला कर अपने बच्चों को पिता की कमी  महशूस न होने दें ।
सर को हमारा नमन एवं श्रद्धांजली

No comments:

Post a Comment