tag:blogger.com,1999:blog-78771160342641116072024-03-13T21:00:22.310-07:00बोलते अक्षरhindiNeeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.comBlogger136125tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-12685900112413025462024-02-15T14:48:00.000-08:002024-02-15T14:48:11.551-08:00सफरी ने ताज देखा<p> <span style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">बेशक हमारी यात्रा ,यादगार यात्रा साबित हो रही है उसमें जिस ट्रेन से हम सफर कर रहे हैं 'अजिनाबाद एक्सप्रेस'उसका भी सहयोग है। ट्रेन पर</span></p><div class="mail-message expanded" id="m6771603766671783484" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;"><div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images " style="margin: 16px 0px; overflow-wrap: break-word; user-select: auto; width: 328px;"><div class="clear"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"> चढ़ने के बाद काफी नाक भौं सिकोड़ा था यहां तक,कहा कि ये अंगरेजों की बनाई ट्रेन है,जो उन्होंने अपने नौकरों के लिए बनवाई होंगी।खुद तो काफी लंबे चौड़े हुआ करते थे इतने संकरे सीटों पर क्या तो बैठ पाते होंगे,छोटा सा टॉयलेट,जंजीर लगा मग्गा,जिसे कितनी भी कोशिश कर लो उदेश्य सफल नहीं होता। उपर से गंदगी।खैर रात की ट्रेन थी ,चढ़ते ही अपनी अपनी तय बर्थो पर सो गए,करवट लेने का कोई स्कोप नहीं था,एक ही करवट सो रहे।</div></blockquote></div></div></blockquote></div></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto">सुबह नींद खुली तो खिड़की से झांका लिखा था 'प्रयाग राज '!वही पौराणिक पवित्र स्थान,जिसका वर्णन वाल्मिकी रामायण में है।</div></blockquote></div></div></blockquote></div></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto">तो हम प्रयाग राज में थे। मन खुश हो गया। ये तो वही बात हुई जिसके बारे में सोचा भी न था वो अनायास हो गया। अदृश्य भगवान पर मेरी आस्था बढ़ गई।</div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto">संगम नहाए या नहीं इस पर गौर बिल्कुल न करे़ंं, प्रयाग राज में प्रवेश और प्रयाण हो गया।हम धन्य धन्य हो गए। </div></blockquote></div></div><div dir="auto">साईड लोअर की सीट पर आड़े तिरछे हो कर हमारी यात्रा हौले हौले बढ़ रही थी, बिना किसी चिंता के की हम चार घंटा लेट हैं , अरे ! ये क्या दिख रहा है? हम चकित होकर देख रहे थे सामने ताज महल खड़ा था ,असली का ! जिसे देखने के लिऐ लोग दूर दूर से आते है,पैसे खर्च करते हैं हम उसका दीदाद मुफ्त में कर रहे थे, हमने खिड़की से उसे खूब निहारा,अंतिम झलक दिखने तक और उसके बाद गर्दन घुमाई तो क्या देखा ? आगरे का विख्यात किला सामने नजर आया। हमारी बांछे खिल उठीं, हमारे दोनों हाथ मे़ लड्डू थे सर कढ़ाई में न चला जाए इसलिए मन ही मन ट्रेन के सामने नत् मष्तक हो गए। कहा, ऐ मेरी प्यारी ट्रेन तू धन्य है।आज तक कितनी गाड़ियों में सफर किया होगा पर जो कमाल तुमने किया ,ऐसा नज़ारा किसी ने नहीं दिखाया ,तू चार के बदले छे घंटे देर से पंहुंच।ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? शरीर ही तो जकड़ेगा ,सर में दर्द होगा पर फट तो न जाएगा ।मंजिल भागी नहीं जा रही है ,वो वहीं रहेगी।</div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto">जा तुझे माफ किया।</div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto">हमने टिकट की पूरी कीमत वसूल कर ली थी,बाकी की यात्रा बोनस पॉइंट मे़ हो रही है.....यात्रा जारी है आगे आगे देखते हैं होता है क्या?</div><div dir="auto"></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"></blockquote></div></div></div></blockquote></div></div></div></blockquote></div></div></div></blockquote></div></div></div></div><div class="mail-message-footer spacer collapsible" style="height: 0px;"></div></div>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-43231010820732520922024-01-23T09:37:00.000-08:002024-01-23T09:37:00.032-08:00दाता राम<p> जय श्री राम।।</p><p><br /></p><p>राम जी कितनों को तारेंगे?</p><p>हिसाब लगाया है?</p><p><br /></p><p>इन दिनो अपने देश में राम नाम की नैया तैर रही है। उस पर सब अपनी अपनी तरह सवारी कर रहे हैं।कोई आध्यात्म को पाना चाहता है। किसी को सत्ता चाहिए,कोई यश की लालसा में है ,किसी को धन चाहिए।सब ओर राम नाम की लूट मची है।</p><p>इस लिस्ट में सबसे उपर अयोध्या नगरी का नाम है। </p><p>राम लला के आगमन से तर गई अयोध्या नगरी,पहले की अयोध्या ,याद है न ? छोटा सा रेलवे स्टेशन देखा था,अब चकाचक हवाई अड्डे से लैस हो गई है।गलियों सड़कों का ऐसा कायाकल्प ,मानो किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो।</p><p>तर गए अयोध्या वासी उनके दोनों हाथ में लड्डू हैं,सुविधा ओर रामलला की नगरी का नागरिक होने का आध्यात्मिक बोध ।</p><p>अगर नरेन्द्र मोदी जी चुनाव जीत गए तो इसे श्री राम भक्ति का प्रसाद माना जाएगा,वो भी तर जाऐंगे।</p><p>तर जाने वालों में शहर ही नहीं आसपास के होटल व्यवसायी भी हैं ।वहां के सारे होटल पहले से बुक हैं ,उस खास दिन ही नहीं बल्कि अब उनके दिन फिर गए समझिए,क्योंकी यह कॉरिडोर पर्यटकों को ध्यान में रख कर विकसित किया जा रहा है। </p><p> उस क्षेत्र के ट्रांसपोर्ट वाले, </p><p>मंदिर निर्माण से लेकर सभी निर्माण कार्य से जुड़े ल़ोग,तर गऐ।</p><p>छोटे व्यवसायी,जो कचौरी,जलेबा,रबड़ी या सभी खोंमचे वाले ,जो पर्यटको ं को खूब लुभाते हैं सभी कमा कर तर जाऐंगे।सरकारी पर्यटन विभाग ,रेल विभाग अथाह कमाई के श्रोत बन कर सरकार को तार देंगे,जय श्री राम।</p><p>श्री राम उनको भी तारेंगे जो कहीं न कहीं किसी रूप में जुड़ा है। लोग तीर्थ पर जातें हैं लौटने पर परिवार के लिए ,तस्वीरें,प्रसाद,चुड़ी बिंदी,सिंदूर लाता है,उन्हे भी तारेंगे प्रभु श्री राम।</p><p>सारा मिडिया जगत जिन्हे कई दिनों से परोसने के लिए सामग्री मिल गई इन दिनों इधर उधर खबर तलाशने से छुट्टी मिल गई है। सबका बेड़ा पार करेंगे श्री राम।।</p><p>कलाकारों की भी बन आई है,धड़ाधड़ भक्ति गीत लिखे गाऐ जा रहे हैं,तरह तरह के विडिओ बन कर बाजा़र में बिक रहे हैं।</p><p>जय हो राम का नाम।</p><p>सच कहा है ,राम नाम की लूट है ,लूट </p><p>सको तो लूट।</p><p> आईए अपने लिए कोई स्कोप हो तो राम नाम की नैया पर सवार हो जाइऐ </p><p>अंतकाल पछताऐंगे जब,सब कुछ लेंगे, लूट।</p><p>।।जय श्री प्रभु राम ।।</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-74294949031386622002024-01-10T03:04:00.000-08:002024-01-10T03:04:14.777-08:00शीत लहर का कहर<p> शीत लहर का कहर जारी है !</p><p><br /></p><p>इन दिनों पूरा उत्तरी भारत शीत लहर से थरथरा रहा है । हर कोई ठंड से जान बचा रहा है, कोई रजाई के अंदर घुसा हुआ है ।कोई अलाव ताप रहा है।</p><p>सबकी अपनी औकात , अपने तरीके हैं ,सब इसे भगाने में लगे हुए हैं ।यही लोग कुछ दिनों बाद गरमी दूर करने के उपाय ढ़ूंढ़ते नजर आऐंगे। जो मिला उसी में संतुष्ट हो जा़ऐं सो नहीं ,जो नहीं मिला उसके लिए बेहाल हुए जा रहे हैं। अरे भाई,किसी एक का साथ दो,ये क्या बात हुई जो आया उसे भगाया ।</p><p>मुझे सर्दियों का मौसम अच्छा लगता है, हमेशा।</p><p><br /></p><p>इसकी बहुत सारी वजहें हैं।</p><p>जाडे़ के दिनों में लोग ज्यादा चुस्त दुरुस्त स्मार्ट नज़र आने लगते हैं।</p><p> सर्दियों में अपने देश में जहां खुले बदन रहने का चलन नहीं है,चाहे लड़की हो या लड़का।</p><p>अचानक से बहुत संस्कारी दिखने लगते हैं,सबों के बदन पर कपड़े होते है तन प्रदर्शन करने, कम कपड़े पहनने की गुंजाइश नहीं रहती, तन प्रदर्शन करें तो कैसे ? गर्मियों में लड़कियां ना जाने कैसे छोटे-छोटे कपड़े पहनकर निकल जाती हैं ।और ये लड़के , शॉट्स क्या आ गया है इसे पहनकर कहीं भी चले जाते हैं,</p><p>चाहे सफर हो या होटल हो। जैसे टांगे दिखाने का इनको लाइसेंस मिल गया हो। यही लोग सर्दियों में,कोट,जैकेट,स्वेटर में चुस्त दुरुस्त नजर आते हैं।</p><p>इसी बहाने हमारे गर्म कपड़े जो सामान्य कपड़ों की तुलना में काफी महंगे होते हैं बक्से के बाहर निकलते हैं समझिए दाम वसूल होता है नहीं तो साल के 10 महीने बंद करके रखना, घर की जगह जो लेते हैं सो अलग। ऐ,सी. पंखा, फ्रिज, कूलर के बिजली का बिल कम आता है।मेहमान भी सिर्फ एक प्याली चाय से खुश हो जाते हैं।</p><p><br /></p><p>गर्मियों में लोगों का दिमाग गरम हुआ रहता है,बेवजह आपस में उझलते रहते है ,</p><p>जबकि ठंड में लोगों का दिमाग भी ठंडा रहता है,जल्दी तनाव में नहीं आते, लड़ते कम हैं।</p><p>हम गृहणियों को ठंड इसलिए भाता है क्योंकि सब्जियों और फलों की बहार होती है।</p><p>लोग बीमार कम पड़ते हैं,</p><p>कोई मन पसंद चीज थोड़ा ज्यादा भी खा लिया,हजम हो जाता है।।</p><p>और अंत में एक खास राज की बात ! </p><p>सर्दियों में मैचिग ब्लाउज की कोई टेंशन नहीं होती, शॉल स्वेटर के अंदर </p><p>किसी भी रंग का पहन लिया किसी को पता नहीं चलता।</p><p>हा हा हा।</p><p><br /></p><p><br /></p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-64366657827084604502024-01-07T15:40:00.000-08:002024-01-07T15:40:08.302-08:00वक्त का सैलाब<p> <span style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">किसी भागते पलों में तुमने थामा था मेरा हाथ, कहा था चलेंगे साथ साथ।</span></p><div class="mail-message expanded" id="m#msg-a:r5096548042810639510" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;"><div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images " style="margin: 16px 0px; overflow-wrap: break-word; user-select: auto; width: 328px;"><div class="clear"><div dir="auto"><div dir="auto">वक्त का सैलाब तुम्हें न जाने, कैसे कहां ले कर चला गया,</div><div dir="auto"> तुम्हें अपने साथ।</div><div dir="auto"> मैं वहीं खड़ी हूं अब तक,</div><div dir="auto"> तुम आ न जाओ तब तक।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">तुम्हें ढूंढने की कोशिश की,</div><div dir="auto">हजारों बार , पर, </div><div dir="auto">तुम न मिले एक बार,</div><div dir="auto">लोगों से पूछा बार बार</div><div dir="auto">,कब मिले थे तुम आखरी बार।</div><div><br /></div></div></div></div><div class="mail-message-footer spacer collapsible" style="height: 0px;"></div></div>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-37991354596581027202023-08-31T08:37:00.006-07:002023-08-31T08:37:58.647-07:00गाम आऊ न <p> मैथिल मोनक उद् गार</p><p><br /></p><p>हम बसै छी, दिल्ली बम्बई,</p><p>मोन बसईयै मिथिले में !</p><p>चलु रे भैया,चलु यै बहिना, </p><p>गाम चलु अहि छुट्टी में,</p><p><br /></p><p> दुर्गा पूजा में हम जबै,</p><p>मा़ं दुर्गा के दर्शन करबै,</p><p>मैया सं हम आशीष मंगबै।</p><p>और मैया के भोग लगेबै।</p><p> लड्डू,पेड़ा और जिलेबी। तखन उपर सं पान मखान ।</p><p><br /></p><p>चलु रे भैया,चलु यै बहिना, </p><p>गाम चलु अहि छुट्टी में,</p><p><br /></p><p>गामक मेला नीक लगैया,</p><p>पाव भाजी सं मोन घुमैया</p><p>ऐतय ने भेटय मुड़ही कचरी,</p><p> माछ भातक दोकान कहां,</p><p><br /></p><p>चलु रे भैया,चलु यै बहिना, </p><p>गाम चलु अहि छुट्टी में,</p><p><br /></p><p>,माईक कोर सन अप्पन मिथिला,</p><p>आन कतहु ने चैन भेटैया ।</p><p>अप्पन भाषा अप्पन बोली,</p><p>सुनितहि होईयै हर्षित प्राण।</p><p><br /></p><p>चलु रे भैया,चलु यै बहिना, </p><p>गाम चलु अहि छुट्टी में।</p><p><br /></p><p>दुर्गा पूजा आबि रहल अछि,सबगोटे गाम चलै चलू,</p><p>एखन आहां गाम के छोड़ने छी,बाद में गाम आहां के छोड़ि देत। अपन गाम घर के,ओगरि क राखू,ई अप्पन घरोहरि थिक,अप्पन सुंदर संस्कृति विनाशक कगार पर अछि एकरा सम्हारय के भार हमरे सब पर अछि।सम्हारु ने!</p><p><br /></p><p><br /></p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-30194411156010242832023-08-30T12:12:00.000-07:002023-08-30T12:12:10.541-07:00कोटा का सचं क्या है?<p> कोटा में फंदा क्यों?</p><p><br /></p><p>कोटा में ये हो क्या रहा है? पिछले 24 घंटों में दो बच्चों ने अपनी जान दे दी, ऐसा आए दिन हो रहा है, क्या इसकी गहराई से जांच नहीं होनी चाहिए?</p><p>बच्चों के कोमल दिल पर कैसा खौफ डाला जा रहा है?</p><p>सच्चाई थोड़ी कटू है पर सही है।</p><p>इसमें अविभावक भी शामिल हैं।क्या आप जानते हैं मानसिक प्रताड़ना की कीमत पर मिली सफलता को क्या बच्चा सहजता से लेगा?</p><p>हम अपनी महत्वाकांक्षा बच्चों से पूरी करवाना चाहते हैं, बिना ये समझे कि मेरा बच्चा कितने पानी में है।</p><p> सब बच्चे एक समान नहीं होते, लेकिन आप एक सफल बच्चा चाहते हैं जो आपकी रुचि के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाए ।</p><p>साहित्यिक रुचि के बच्चे को विज्ञान पढ़ाना उसकी स्वाभाविक प्रतिभा को दबाना होगा। </p><p>अपने माता पिता के अरमानों के बोझ तले कोटा पहुंचने वाले बच्चों को ये गिद्ध कोचिंग वाले ,फीस तो सबसे एक जैसा लेते हैं पर बाद में ,सभी बच्चों को बारिकी से जांचते हैं उनमें से मेघावी बच्चों को चुन लिया जाता है(जो वैसे भी सफल हो ही जाते)बाकी अभागों को भेड़ बकरियों के समान हांका जाता है।</p><p>कमजोर पर मेहनत कौन करे ?</p><p>हीन भावना से भरे ये बच्चे, जो हो सकता है कुशल शिक्षक के हाथों बन भी जाते , मगर बिना सही पढ़ाई के पिछड़ते जाते हैं,एक के बाद एक परीक्षा में कम नंबर लाते लाते अंततः हताश हो जाते हैं, इनमें से जो अधिक संवेदनशील होते हैं या जिन पर ज्याद दबाव होता है वो लौटने से बेहतर मरना पसंद करते हैं।सवाल माता पिता से है,आप क्या पसंद करेंगे ? </p><p>आपका बच्चा उन तेज तर्रार बच्चों के बीच भोंदू बनकर रहे ?</p><p><br /></p><p> या आपका औसत प्रतिभावान बच्चा जो संवेदनशील भी है, अपने शहर में आपके साथ रह कर अपनी पसंद का विषय लेकर पढ़ाई करे ?</p><p>बच्चा दो पैसा कम कमाएगा,पास तो होगा।</p><p>अंत में </p><p>ओ कोटा जाने वाले बच्चे ,हो सके तो लौट के आना।</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-19631316891666376882023-06-08T06:31:00.002-07:002023-06-08T06:31:44.662-07:00आमहि आम<p> आमक महिमा </p><p>एखन आमक समय चलि रहल अछि .आमक नाम लिय त गाम मोन पडैत अछि आ गाम क नाम लिय त आम ! सेब -समतोला लोग खेलक नई खेलक कोनो बात नई ,प्राय लोग डाक्टरे के कहला पर खाईत अछि \मुदा आम,कतबो महग हुए लोग खाईते टा अछि ,मोनक संतुष्टि के,के कहै ,अत्मा तक तृप्त भ जाईत छईक |</p><p>जे जन सुतली अन्हरिया राति में ,बिहाड़ी एला पर ,गाछी कलम में आम बिछय गेल होथिन हुनका सब के एकर आनन्द आजीवन मोन रहतनि |</p><p>अहि प्रसंग में विशेष ई जे लोग अप्पन कलम मे पाछु काल ,</p><p>दोसर के कलम में पहिने जईत छल |</p><p>दोसर दिन बाबी,पीसी ,काकी सब गोटे टिकुला सोही सोहि आमिल बनब में बेहाल भेल रहैत छलखिन |</p><p>अपना सब दिस आमक विविधता सेहो प्रस्सन करय बला अछि ओ लोकनी दसहरी आ लंगड़ा खा क तृप्त भ जाईत छथि |जखन की एम्हर बम्बई ,कृष्ण भोग ,करपुरिया मालदह ,सुगवा कलकतिया वगैरह कत्ते कही ,तहिना आमक तरह तरहक आचार ,कुच्चा ,फाड़ा भरुआ ,आ सबसँ विशेष अमोट ,जे बादो में थोड़े बहुत आमक कमी पूरा करैत छईक ,पेटक गरमी सेहो दूर होइत छैक .मतलब किछु बर्बाद नहि हेबाक चाही हम शहर में रहय वाला . .,आमक कतरा खाय वाला लोग के कहैत छियनी , गाम जे छोड़ि देलियई ई तकरे सजा अछि ,कम स कम आमक समय में अवश्य गाम आऊ कीनल फल त सब दिन खाईते छी ,एक बेर आम तोड़ि क खाउ ! . .</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-28503755326952685502023-05-28T07:12:00.004-07:002023-05-28T07:12:36.183-07:00आम तुम्हें प्रणाम<p> <span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">इस बार भी आम नहीं फलेंगे,</span></p><div class="content" style="background-color: white; box-sizing: border-box; clear: both; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px; line-height: 28px; margin-top: 5px; overflow-wrap: break-word;"><p style="box-sizing: border-box; height: auto !important; margin: 20px 0px 0px; max-width: 100%;">गांव से फोन पर बात हो रही थी,उधर से देवर जी थे,<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />उन्होंने कहा क्या बताऊं, ऐसी जबरदस्त आंधी थी,तूफान की गति से हवा चली,आम की कौन कहे, पेड़ सहित जड़ से उखड़ गए।सारी फसल बर्बाद हो गई।सुनकर मन उदास हो गया ।<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />लगता है,आम नाम जान कर कहीं प्रकृति भी इसके साथ राजनीति करने लगी क्या?<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />सोचने लगी ऐसी विपत्ति आम पर ही क्यों आती है?<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />एक तो साल, दो साल में नानुकुर करके आम में मज्जर आते हैं,<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />सबसे पहले प्रचंड गर्मी इसके फूलों (मज्जर)को झुलसाती है।<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />उससे बचा तो इन दिनों बिन मौसम अचानक से खूब तेज हवाएं,आंधी पानी का झोंका आता है,इस समय आम इतने छोटे होते हैं की किसी काम के नहीं न अचार न चटनी अमिया असमय बर्बाद हो जाती हैं।और अंत में मौसम अपना मारक अस्त्र चलाता है,वो है ,ओला वृष्टि! जो थोड़े बहुत बचे रहते है ये ओलेराम ले डुबते हैं।<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />मतलब आप साल भर आम का नाम जपिए और राजा जी,यूं ही खाली हाथ टरका देते हैं।<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />यूं इस वार आम के दिनों में गांव जाने का मन बनाया था अपने बगीचे का ताजा आम खाए सालों बीत गए ,दरअसल हमारे इलाके में आम थोड़ी देर से पकते हैं तब तक बच्चों की छुट्टीया़ं खत्म हो जाती थी।लेकिन अब जब बच्चों की जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए तो सोचा चलकर आम खाया जाए ,पर हाय री किस्मत ,यहां तो आम ,खास क्या बनते, गायब ही हो गए।<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />गांव तो नहीं गई लेकिन काफी दिनों पहले जब हम आम के मौसम मैं गांव गए थे , उस समय की याद आ गई जब हम थोड़े छोटे थे।<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />सौभाग्य से हमारा परिवार काफी बड़ा है। गर्मियों की छुट्टी में सब सपरिवार गांव आ जाते थे, काफी बड़ा जमावड़ा हो जाता था।संयोग वश उस बार हमारे चाची जी का गौना हुआ था चाची पहली वार ससुराल आई थी और सबसे मजेदार बात ये थी की रिश्ते में चाची होते हुए भी हमारी हमउम्र थी,परिवार की सभी लड़कियों का ग्रुप नई दुल्हन चाची के इर्द गिर्द मंडराता रहता था बल्कि हमारा अड्डा चाची का कोहबर घर बन गया था।घर के लोगों ने भी हमें चाची का मन लगाने के नामपर छूट दे रखी थी। हम घरेलू कामों से मुक्त थे,सारा दिन ,बातचीत हंसी मजाक में बीत जाता ,आम का मौसम था इसलिए बगीचे से कभी एकाध कच्चा आम भी मिल जाता तो हम नमक मिर्च के साथ बड़े प्रेम से खाते थे।अभी सोच कर हैरानी होती है,उस उम्र में कच्चे आम भी,बड़े आराम से चबा लेते थे और दांत खट्टे नहीं होते थे।<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />एक रात,सब सोए हुऐ थे की बड़े जोर की आंधी आई सब बागीचे की ओर भागे हमने भी खूब आम चुने,दूसरे दिन घर की सब महिलाएं अचार खटाई वगैरा आम की व्यवस्था में लग गई ।इधर कोहबर ग्रुप की बन आई हम कच्चे, अधपके आम का बड़े चाव से कभी खट्टा मीठा अचार बनाते,कभी चटपटे आम,कभी सरसों हरी मिर्च डाल कर चटपटी चटनी बनती,किसी के पास पैसे रहे तो गरम पकौड़े और मुरमुरे की दावत होती !लेकिन ये सब कुछ गोपनीय था हमने आम काटन छिलने काटने जैसे काम के लिए चाची के मायके से मिले गृहस्थी के सामान का सहारा लिया,सिर्फ कोहबर ग्रुप की लड़कियां ही मिल कर कमरे में दावत करते।हम किसी बहाने से कमरे का दरवाजा बंद कर लेते , फिर होती हमारी पार्टी!घर भर के सभी लोगों में प्रसाद बांटना संभव नहीं था।आम के छिलकों को संदूक के नीचे छुपा दिया करते,ताकी किसी को भनक न लगे।उन्ही। दिनो चाची के मायके से संदेशे में टोकरी भर के पुरी पकवान,नमकीन मिठाईयां आईं।पुरे मुहल्ले में बयाना बांट दिया गया अब घर के लोगों की बारी थी,दादी मां व्यस्तता की वजह से बांट नहीं पा रही थीं,अचानक से लोगों ने गौर किया टोकरी का सामान खाली हुआ जा रहा था ,शंका की सुई हमारे ओर जा टिकी ,हमारे हुड़दंगी भाई कोबर में नहीं घुसने देने पर पहले से खार खाए बैठे थे ही ,उसमें से एक ने सबको बताते हुए कहा कि उसने कोबर के झरोखे से हमें कुछ खाते हुए देखा था,हमने तुरत सफाई दी हम तो सिर्फ मुरमुरे खा रहे थे,उसने चिढ़ कर कहा तो दरवाजा क्यों बंद किया था?<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />हमारी छुट्टी खत्म होने को थी अब सब अपनी चले जाऐंगे,ऐसा सोच कर मामले को तूल नहीं दिया गया।<br style="box-sizing: border-box; max-width: 100%;" />हम आम की तरह खट्टी मिट्ठी यादों को लिए वापस अपने घरों को लौट आए।</p></div><div style="background-color: white; box-sizing: border-box; clear: both; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;"></div><div class="disclaimer" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: grey; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 12px; margin-bottom: 20px; padding: 11.75px 0px;">डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं</div>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-25137005160527063452023-05-26T01:27:00.002-07:002023-05-26T01:27:52.018-07:00आम आम आम<p> अहू बेर आम नहि फरत, गाम सं फोन पर गप्प होई छल,ओम्हर सं दिअर छलखिन,</p><p>कहय लगला की कहु,</p><p>तेहन बड़का बिहाड़ि छल जे आम के कहै ,गाछो खसि पड़ल।मोन उदास भ गेल।</p><p>जा...आब की खैब कपार ?</p><p>आहिरे बा सबटा बिपैत आमे पर कियैक अबैत छैक,</p><p>बुझाईत अछि,भगवानो राजनीति करय लागल छथिन,</p><p>ओकरा आम जानि ओहि पर कनियो ध्याने नहि दइत छथिन।</p><p>एक आम के हजार दुश्मन!</p><p>पहिने त मजरबे में नाकुर नुकुर,</p><p>जौं मजरल त कहियो तेहन प्रचंड रौदी की सबटा मज्जर झड़ि गेल,</p><p>ताहि सं बांचल त भीषण पनि बिहाड़ि सं खतरा,</p><p>बिहाड़ि ऐबे टा करै छै ,</p><p>आ ,नहि त यै पैध पैध पाथर खसबे टा करत !</p><p>अंतत: आम आम करिते समय बीत जाई छै, अगिला बेरक आस में।</p><p>आम नहि त गाम की ?</p><p>आबत आमक समय में,</p><p>गाम नहिए जैब,</p><p> प्रसंगवश मोन पड़ैया,एक बेर आमक समय में ,गाम गेल छलहूं।स्कूल में पढ़ैत छलहूं तखुनके गप्प छैक ।</p><p>गरमीक छुट्टी में हम माता पिता सब भाई बहिनं ,गाम गेलहूं। जखन स्कूल में गरमिक छुट्टी होईत छलै तखन आम पाकैक समय नहि होइत छलै, ओहि वयस में कांच, डमहैल सब नीक लगैत छल।कलम गाछी बौआबय के क्रम में एकाध टा टपकलहा कांचो आम भेटला सं मोन प्रसन्न भ जाइत छल।</p><p>संयोगवश , दुरागमन करा क जे नबकी काकी आयल छलखिन सेहो कनिया काकी समवयस्यकी छलीह ताहि द्वारे हमसब लड़की सबहक सबसं प्रिय स्थान छल नबकी कनिया काकीक कोबर घर । संयोगवश परिवार पैघ अछि, छुट्टीक समय छल ,घर भरल रहैत छलै।नब कनिया के मोन लगाबय क लेल हमरासब के छूट भेटल छल तैं लोकक बीच में रहनाई जरूरी नहि छलै ,ओना अगल बगल के बाबी पीसी उपराग देबय में पाछा नहि रहैत छलखिन ,ऐकरा सब के त कत्तउ देखितो नहि छियई जे चिन्हबो करबै,जौं भेट भेल ,त 'ई की पहिरनै छहक,'</p><p>'कोना बाजय छई' , के बारे में कोनो एकटा टिप्पनी अवश्य भेटइत छल।तहि सं काते भ क रहनाई ठीक बुझाई छल।</p><p>एक राति ,सुतलि राति में बड़का बीहाड़ि उठलै ,सब बोरा,झोरा संगे कलम गाछी पड़ैल,दोसर दिन सं सब स्त्रीगण आम के जगह लगाबय में ,तरह तरहक अचार ,आमिल कुच्चा ,बनबय व्यस्त रहैत छलखिन।एम्हर कोबर घरक सदस्य सबहक मौज होबय लागल ,हमसब नब कनियाक सांठक पेटार सं हांसु बहारक, चुपचाप कांच ,अध् पक्कू आमक झक्का,खट्टमिट्ठी,सरिसों मिरचाई द क चहटगर बना बना क खूब खाइत छलहूं,हमरा सबहक ई कारोबार अत्यंत गोपनीय रूप सं चलैत छल।भरि आंगन के प्रसाद बांटनाई संभव नहि छल ,लोक नई बुझै तैं,आम सोहिक छिलका सबके संदुक तौर में नुका देल जाई छलियै ,कहियो ककरो पाई भेटल,तकर मुड़ही,कचरी के पार्टी चलैत छल। मुदा केहन केहन चतुर चालाक लोग धरा जाईयै तकर सोझा में हमसब की छलहूं।नबकी कनिया काकी नैहर सं पूछारिक भार पठौलकनि, टोल पर बैन तिहार बांटल गेल ,घरक लोग सब चिखबो ने केने छल की भारक चंगेरा खाली भ गेलै, सबहक शंकाक नोक हमरे सब दिस घुमल छलै अहुना हमर सबहक हुड़दंगी भै सब कोठाक झरोखा दक हुलकी मरिक झंकलकै त हमरा सबके किछु खाईत देखलक, शोर भ गेलई ,हमसब कतबो कहलियै,हमसब उसनल अलहुआ खाईत रहि त, पुछलकै त केबाड़ कियै ठोकल छलै?</p><p>मामला जल्दिऐ सलटि गेलई कियैक त हमरा सबहक छुट्टी खतम होबय वाला छल।</p><p>अहि तरहे हमर सबहक गामक यात्रा,आमे जकां खटगर मिठगर स्मरण के संग समाप्त भ गेल।</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-21854073185515709282023-04-24T00:57:00.000-07:002023-04-24T00:57:12.036-07:00हक दें,इज्जत के साथ<p> <span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">हमारे समाज में शिक्षक का बहुत आदर किया जाता है विश्वविद्यालय प्रोफेसरों की एक गरिमा होती है।जिन्होंने समाज को ज्ञान दिया है हम उन्हे सम्मान देते हैं। लेकिन भागलपुर विश्वविद्यालय के कुछ सेवानिवृत्त प्रोफेसरों को अपनी पेंशन के लिए यूनिवर्सिटी कार्यालय के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, उन्हे टेबल दर टेबल भटकना पड़ रहा है,यह कैसी त्रासदी है? जिन्होंने ज्ञानदान दिया,बदले में उन्हे क्या मिला?</span></p><span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">कार्यालय के स्टाफ जिन्हें उन्होंने कभी पढ़ाया था,उनके दया के पात्र बने हुए हैं,वो भी बेचारे क्या करें,नौकरी के नियमों से बंधे हैं।</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px; max-width: 100%;" /><span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">जब ये बुजुर्ग शिक्षक धूप में पसीने से लथपथ कार्यालय में दिखते हैं तो उनकी दुर्गति पर रोना आता है।</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px; max-width: 100%;" /><span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">मुख्यालय में कई ऐसे, वरिष्ठ सेवा निवृत्त शिक्षक है जो सेवा निवृत होने के बावजूद पेंशन के लिए शहर छोड़ नहीं सकते।अपने एक परिचित रिटायर्ड प्रोफेसर दंपत्ति की इस व्यथा मैंने करीब से देखा है ,बच्चे साथ नहीं होते,जिसने जीवनभर सेवा की, अब उनकी सेवा कौन करे? एक तो वृद्धावस्था, बीमार तन ,उपर से विश्वविद्यालय का ऐसा अमानवीय रवैया,उनका मन व्यथित रहता है।</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px; max-width: 100%;" /><span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">आखिर कोई भी इंसान नौकरी क्यों करता है ?अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए,लेकिन जब कमाए हुए पैसे नहीं मिले तो क्या करे? यह अन्याय है !अब तक जो कमाया था बच्चों को लायक बनाने में खर्च हो गए, सेवा निवृत्ति के बाद मिलने वाला धन ही उसके अपने लिए होता है, उसके बुढ़ापे का सहारा।</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px; max-width: 100%;" /><span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">लोग पहले से योजना बना लेते हैं , जो पैसे मिलेंगे उनसे मकान बनवाऐंगे या अपने इलाज के लिए खर्च करेंगे।जिनके पास मकान नहीं है वो अब क्या करेंगे?पेंशन के बिना न किराया देना संभव और न कहीं जाना।कई लोग अपने बच्चों के पास जाना चाहते हैं, कोई गांव में घर बनवाना चाहते हैं ,लेकिन इस अनिश्चिता ने उन्हें बीमार कर डाला है। कईयों को तीर्थ करना था।</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px; max-width: 100%;" /><span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">सबों की योजना धरी पड़ी हैं।</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px; max-width: 100%;" /><span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">इन परिस्थितियों को देख कर,</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px; max-width: 100%;" /><span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">संबंधित अधिकारियों से करबद्ध प्रार्थना हैं ,कि जिन्होनें अपना पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया , शहर के गणमान्य नागरिक रह चुके हैं ,</span><br style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px; max-width: 100%;" /><span style="background-color: white; color: #2b2b2b; font-family: "Noto Sans Devanagari", sans-serif; font-size: 16px;">उन्होने जिस गरिमा के साथ जीवन बिताया है ,उसे कम न होने दें ,इन्हें इनका देय,अविलम्ब उपलब्ध करवाने की कृपा करें।</span>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-3108308337319382042023-04-20T22:46:00.002-07:002023-04-20T22:46:52.996-07:00हत्यारों की सोच<p> <span style="color: #500050; font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">मारना कितना आसान है। </span></p><div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">जेब से पिस्तौल निकाली और मार दी गोली।सब देखते रह गए अगर आदमी अपनी जान की परवाह किए बिना ठान ले तो किसी को मारने से कोई रोक नहीं सकता, देख कर लगता है भारत में मौत ऐसी ही सस्ती हो गई है, शायद नहीं। जिस अतीक की सुरक्षा पर करोडों रूपए खर्च हुए थे , दो दो जिलों की पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था दांव पर थी क्योंकि अतीक को अपनी जान पर खतरा लग रहा था ,उसकी आशंका सही निकली ,सारी सुरक्षा व्यवस्था धरी की धरी रह गई। तीन युवाओं ने बड़े आराम से गोली मारी ,किसी पुलिस वाले ने जवाब में गोली नहीं चलाई बल्कि वे अपने आपको बचाने में लगे रहे फिर हत्यारों ने अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया ,देखते ही देखते सब कुछ हो गया ,लगता है जैसे सारा कुछ सुनियोजित हो ,यही कि तुम किसी तरह मार डालो तुम्हारी जान की सुरक्षा हम देख लेंगे बेशक इस दुस्साहसिक घटना की जांच की जा रही होगी, लेकिन एक और पहलू है जिस पर ध्यान देना चाहिए,वो है हत्यारों की सोच का। क्या सोच हत्यारों की रही होगी,जबकि हत्यारों की परिवारिक पृष्ठभूमि भी आपराधिक नहीं रही हैं, ना ही वे किसी संगठन से जुड़े अपराधी थे, अपराध की इतनी बड़ी घटना को अंजाम देना उनके वश का नहीं होगा थे जेहादी नहीं थे जिन्हे बचपन से ही जान देना सिखाया जाता है फिर इन युवा लड़कों की ऐसी कौन सी सोच थी जिसके तहत तीन अलग अलग क्षेत्र के लोग मिल कर एक खूंखार की हत्या के लिए तैयार हो जाते है?गौर तलब है की। हो सकता था उसमे वे मारे भी जा सकते थे ऐसे में पैसा भी कोई मायने नहीं रखता उनके पारिवारिक रिश्ते भी ऐसे नही थे क्योंकि घरवालों ने उन्हे छोड़ रखा था।ऐसे में उनकी इस सोच से देश के उन युवाओं की सोच का पता चलेगा जो किन परिस्थितियों मे ये राह से भटके युवक इतना बड़ा दुस्साहसिक कदम उठाने को तैयार हो गए।अगर वे किसी तरह सजा से बच गए तो यह हमारी न्याय व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह जरूर होगा।</div>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-23117265777037901882023-04-16T23:22:00.000-07:002023-04-16T23:22:36.421-07:00हाय !हम डिजिटल हो गए ।<p> <span style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">हाय हम डिजिटल हो गए ।</span></p><div style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto">ऐ बिहार की जनता तुमने खूब जातिवाद कर ली ,अब लो भुगतो ,सरकार ने तुम्हारी कोडिंग कर दी है ।अब बिहार सरकार ने जातिगत कोड जारी किया है,उसमे अपना नंबर याद कर लो , हां आसपास वालों के भी करना होगा ,मतलब उलझे रहो,इस डिजिट के चक्कर में।एक हमारा आधार नंबर पहले से मौजूद है अब ये दूसरा नंबर।ये</div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><span style="color: #500050;">21वीं सदी जब से आया है तब से हमें डिजिटल करने की साजिश की जा रही है</span><br /></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto" style="color: #500050;"><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto">पहले हमारे घरों को डिजिटल किया गया, फिर गलियों मुहल्लों को।</div></blockquote></div><div dir="auto"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto">खुशी की बात है कि अभी तक हम अपने नाम से जाने जाते है,क्या पता कुछ दिनों बाद शायद हम भी xyz कहाने लगें । </div></blockquote></div><div dir="auto"><br /></div></div><div dir="auto"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto">पहले के पते कुछ यूं होते थे,असर गंज,टेढ़ी गली, मीठी नीम में,गुप्ता जी रहा करते थे, फिर हुआ A ब्लॉक में तीसरी गली अब जब गुप्ता जी को ढूंढना हो तो पता होता है, नाम सेक्टर/11,बलॉक/b, रोड नंबर/6,क्वाटर नम्बर 13।</div></blockquote></div><div dir="auto" style="color: #500050;"><div dir="auto">हे भगवान इतना पढ़कर तो कोई मैथ्स पास कर ले।</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote" dir="auto"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto" style="color: #500050;"><div dir="auto"><br /></div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto">इम्तिहानों डिजिटल मुहावरे का मतलब पूछा जाएगा<br /></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote" dir="auto"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto" style="color: #500050;"><div dir="auto"><br /></div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto">प्रश्न कुछ यूं होगा,</div><div dir="auto">100 /13 की ,और 1/194 की, </div><div dir="auto">का क्या मतलब?</div><div dir="auto"> उत्तर</div><div dir="auto">(100 सुनार की 1 लोहार की ,)<br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto" style="color: #500050;"><div dir="auto"></div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto">कहानी होगी ,एक गांव में एक गरीब 126रहता था।उसका मित्र 95 था राह में उन्हे 13 और195 मिल गए।....…</div><div dir="auto">अब पढ़ने वाला के दिमाग की दही न बन जाए तो समझें ।</div></div></blockquote></div></div><div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;"><div dir="auto"><div style="margin: 16px 0px; width: 328px;"><div dir="auto"><div dir="auto"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto">लेकिन हम लोग भी अपनी आदतों को भला क्यों छोड़ें? जात तो हम पूछेंगे ही।</div></div></blockquote></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto">बिहार में आपके पड़ोस में कौन आया है जानने के लिए सीधा सपाट तरीका है पूछते हैं ,आपके पड़ोस में ,किस जात का आदमी आया है? आने वाले की हैसियत उसकी जात से जानी जाती है अगर आपने बताया कोई सिंह जी हैं, तो उधर से कहा जाएगा ,</div></div></blockquote></div></div></blockquote></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto">ई तो नाम में सिंह लिखा है ,चालाक बनता है, ज़रा ठीक से पता लगाईये ये कहीं142,भैंसिया के सिंग तो नहीं है?</div></div></blockquote></div></div></blockquote><p> सरकार लाख कोशिश कर ले हम नहीं सुधरे़गे।</p></div></div></div></div></div>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-25304392060103363582021-09-05T09:59:00.002-07:002021-09-05T09:59:15.934-07:00गूगल गुरु नमो नम:<p> शिक्षक दिवस की सभी को शुभकामनाऐं।</p><p>आज शिक्षक दिवस है।</p><p>अवसर है हमें शिक्षा देने वाले,</p><p>कदम कदम पर</p><p>हमें सही राह दिखाने वाले।ज्ञान के सागर।</p><p>जैसी विशेषता रखने वाले को धन्यवाद देने का।</p><p>मुझे आज की बदली हुई परिस्थितियों में गुगल से अच्छा गुरु कोइ नहीं दिखता।इसलिए मै गुरु गुगल का अभिनंदन करती हूं।</p><p>निवेदन है उनके सम्मान में कुछ पंक्तियां;</p><p>कृपया काव्य रचना विवेचना में वक्त जाया न करें, हृदय के भाव को समझें।</p><p>गुगल गुरु दोनो खड़े,काको लागूं पाऊं।बलिहारी गुगल आपकी,जिन गुरु का पता दियो बताय।(गुगल मैप)</p><p>क्योंकी गुगल सब कुछ जानता है।अगर हम अपने राह से भटक जाऐं तो यही गुगल</p><p>अपने मैप के सहारे हमें सही रास्ता बताता है।</p><p><br /></p><p>गुरु गुगल,गुरु ऐप्पल,गुरु याहु,नमो नम:।।</p><p>सेटेलाईट है साक्षात परमसत्य,</p><p>मोबाईलं नमो नम:। </p><p><br /></p><p>जहां हाथ हाथ में मोबाइल हो,</p><p> पेट मे न हो दाना ,वो भारत देश है मेरा।</p><p>लेकिन दाना नहीं होने पर होटल की राह यही दिखलाता है। यही नहीं,डॉक्टर, दुकान,मकान सभी की राह बताता है।</p><p><br /></p><p>जय गुगल, ज्ञान गुण सागर,जय मोबाइल तिहु लोक उजागर।</p><p>इसी के साथ रहने से हमे तीनों लोक (जल थल वायु) के बारे में पता चलता रहता है।</p><p>कहां नाव डूबी,कहां बाढ़,कहां सूखा,(जल)</p><p>कहां सड़क दुर्धटना हुई।दंगे फसाद,सड़क जाम(थल)।</p><p><br /></p><p>हवाई दुर्धटना,आंधी,पानी,</p><p>तूफान(वायु)।</p><p>इस गुरु की सबसे बडी़ खासियत,जब ,जहां, जैसे आपको शिक्षा दे सकता है।</p><p>आपकी जेब में पड़ा रहता है</p><p>○तो अंत में इन महान गुरु को शत् शत् प्रणाम।</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-29650594503024879722021-08-30T19:51:00.004-07:002021-08-30T19:51:35.670-07:00क्या श्री कृष्ण NRI बन जाएंगे?<p> मैं बन जाऊंगा NRI ।</p><p>क्यों? क्यों नही?</p><p><br /></p><p>भगवान श्री कृष्ण नाखुश हैं। आखिर वजह क्या है?</p><p><br /></p><p>आज उनका जन्मदिन है, पूरा देश उनको खुश करने में लगा है।कोई व्रत कर रहा है, कोई भजन गाकर उनको खुश करने में लगा है। लोग उनकी बचपन की यादों को ताजा करने के लिए झांकियां सजा रहे हैं।</p><p><br /></p><p>पूरा देश कृष्णमय है।</p><p><br /></p><p>अजी नहीं, ये सब छलावा है, जो सच है वो ये कि मेरे ही देश में मुझे इग्नॉर किया जा रहा है। भारतवर्ष के दो अवतारी पुरुष ,</p><p><br /></p><p>तुलना करके देखिए।एक तरफ</p><p><br /></p><p> ब्रदर श्री राम चंद्र की पोजिशन देखिए अयोध्या में क्या आलिशान मंदिर बन रहा है, वहां की चकाचक सड़कें , मेरे जन्म स्थान मथुरा की गलियों को याद करो।और तो और पब्लिक ने भी मेरी ईमेज डाउन करके रखी है ।</p><p><br /></p><p>लड़का अगर अच्छा है तो कहते हैं, राम सा बेटा ! और ज़रा शैतानी क्या की ,तुरत कहते हैं, छोरा तो कृष्ण कन्हैया बना फिरता है।और ये कवि साहित्यकार , अपने रंगीले विचार मेरे नाम पर निकालते हैं।कहां तो एक राधा नाम की लड़की तक की कल्पना कर ली।रात में मुझ से मिलने चोरी चोरी,आती है।मैं छुप छुप कर तालाब के किनारे पेड़ पर बैठ कर लड़कियां ताड़ा करता था। उनके कपड़े छुपा देता था।</p><p><br /></p><p>इट्स ऑल डिसगस्टिंग !</p><p><br /></p><p>किस्मत की बात महाभारत की लड़ाई के वक्त जो इतना अनमोल ज्ञान दिया उसे सिर्फ समारोह सभागारों तक सीमित रखा, इन शॉर्ट लोगों तक क्या पहुंचा ?</p><p><br /></p><p>अरे मजबूरी में अपने भाई बंदो को मारना पडे़ तो कोई दिक्कत नहीं है।पता है न , कृष्ण भगवान ने अर्जुन को यही समझाया था ।</p><p><br /></p><p>रही N .R. I.बनने की बात ,</p><p>तो भैया , सरकारी रवैया अगर ऐसा ही रहा तो मैं इस बारे में विचार कर सकता हूं । क्योंकी इस्कॉन वालों ने मेरे रहने के लिए वहां एक से एक आलीशान मंदिर बनवा रखा है।</p><p>अंत में क्षमा याचना।</p><p>हे श्री कृष्ण भगवान ,मैं आपसे हार्दिक क्षमा चाहती हूं।आपने ही कहा है इस सृष्टी में जो होता है उसमे मैं ही हूं।शायद मुझसे ये सब लिखव</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-51177627113193366372021-08-30T05:42:00.000-07:002021-08-30T05:42:06.888-07:00ओ,काबुली वाले <p> <span style="color: #500050; font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">हा हा काबुल दुर्दशा न देखी जाई। </span></p><div class="mail-message expanded" id="m#msg-a:r8059955817913147733" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;"><div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images " style="margin: 16px 0px; overflow-wrap: break-word; user-select: auto; width: 328px;"><div class="clear"><div dir="auto"><div><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div class="quoted-text" style="color: #500050;">ओ काबुली वाले कहां है तू?</div><div dir="auto"><div class="quoted-text" style="color: #500050;"><div dir="auto">बचपन में टैगोर जी की कहानी पढ़ी थी</div></div><div dir="auto"> 'काबुली वाला' ।कहानी,एक छोटी सी बच्ची,और सूखे मेवे,बेचने वाले पठान की थी जिसे उस बच्ची में उसे अपनी बेटी दिखती थी। बच्ची को प्यार से तोहफे में ढेरों मेवे देने वाला ,स्नेही पिता। अफगानियों के बारे में एक धारणा है कि अपनी जुबान के पक्के ,पर स्वाभिमानी, नेकदिल इंसान होते हैँ ।जब</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">काबुल पर हमला हुआ , दिल दहल गया ।निर्दोष नागरिकों का ऐसा नरसंहार !</div><div class="quoted-text" style="color: #500050;"><div dir="auto">जान बचाने को भागते बदहवास लोग, रहम की भीख मांगती औरतें,</div></div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">आत़़ंक से डरे छोटे बच्चे,उन्हें समझ में नही आ रहा है ये हो क्या रहा है। तालिबानी कहीं से इंसान नहीं हैंं ।मानव होते तो' मानवाधिकार' की बात समझते,</div><div class="quoted-text" style="color: #500050;"><div dir="auto">ये वहशी जानवर हैं,मिनटों में लाशें बिछाने वाले इनके हथियारों के डर से,हर कोई कतराता है।</div></div><div dir="auto">अपने खास दुश्मनों को टोहती निगाहें,मेरे बेटे का अफगानी दोस्त,हर दिन जगहें बदल कर फोन से खुद को वहां से निकलवाने का कोइ तरीका पूछता है।उसकी बेबसी,उसकी कातर आवाज,हमें बेचैन कर देती हैंं ।ऐसी लाचारी,ऐसे माहौल में कोई क्या करे, फोन घंटी हमें डरा देती है।हम निरंतर उसकी सुरक्षा के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैंं।इसके सिवा हम कर ही क्या सकते हैं।उन्हे सबक सीखाने के लिए उन्हे भी मार डालना समाधान कतई नहीं है।</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">चाहे कोई मारा जाता हो,</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">झेलतीं हैं औरतें ।</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote" dir="auto"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">क्योंकी लड़ते हैं सैनिक मैदाने जंग में,</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div class="quoted-text" style="color: #500050;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote" dir="auto"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">शहर भर जाता है ,जिंदा लाशों से।</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">पथरा जाती हैं मासूमों की आंखें,</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">पिता की राह तकते तकते।</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">कायर नहीं हैं हम ,पता है हमको,</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">कि मरना है एक दिन सबको,</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto">उनसे डर कर नहीं भागेंगे, इस उम्मीद से कि शायद कहीं,उसके रूह में छुपा हो एक कतरा भर इंसानियत ।</div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="gmail_quote"><blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"><div dir="auto"></div></div></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto">मुड़ के बैठ जाऐंगे हम घुटनो के बल ,</div><div dir="auto">पलकें झुका के नहीं,</div><div dir="auto">नजरें मिला कर सामना करेंगे उन निगाहों का, शायद उन्हे, </div><div dir="auto">इन आंखो में दिख जाए कोइ अपने बेटे सा</div><div dir="auto">या किसी चेहरे से झांकता हो पिता का चेहरा।</div><div dir="auto">आमीनं ।</div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto"> </div><div><br /></div></div></div></div><div class="mail-message-footer spacer collapsible" style="height: 0px;"></div></div>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-79563745175133401482021-08-25T11:05:00.002-07:002021-08-25T11:05:44.567-07:00चिंगारी<p> <span style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px;">कुछ खबरें जंगल की आग की तरफ फैलती है और मामला किसी की इज्जत का हो तो आग को और हवा मिल जाती है। शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार की लड़की को दिनदहाड़े अगवा कर लिया गया था।</span></p><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;"> शहर में अफरा-तफरी का माहौल बन.गया था ।सड़क जाम ,पुतला दहन, गाड़ियों में तोड़फोड़ नारेबाजी ,की जा रही थी ।सबसे बुरा था उस लड़की के बारे में अनाप-शनाप की बेहूदा बातें ,मैं उस लड़की के परिवार को काफी पहले से जानती थी। मुझे बेहद बुरा लग रहा था। अंततः लड़की घर वापस आ गई ।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">मैं अपने आप को उनके यहां जाने से रोक नहीं पाई ।मैं मयूरी से मिलना चाहती थी क्योंकि उस प्यारी सी बच्ची के बारे में ऐसी अनर्गल बातें मेरे गले से उतर नहीं रही थी । लेकिन वह कहीं अंदर कमरे में थी उनके घर में अजीब तनावपूर्ण माहौल था ।जब मैंने मयूरी से मिलने की बात कही तो लगा जैसे उन्हें पसंद नहीं आया । फिर भी मुझे मयूरी कि कमरे में भेज दिया गया।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">क्या तुम गंदी लड़की हो ? मैंने सीधा ,उस से उसकी आंखों में आंखें डाल कर पूछ डाला । उसकी आंखें डबडबा आई। उसे उम्मीद नहीं थी इस तरह के सीधे सवालों की,फिर उसने मेरी तरफ.नजरेंं उठा कर देखा और आहिस्ते से कहा,आंटी आपने मुझ से कुछ पूछा तो सही,यहाँ कोई पूछता ही नही है।फिर उसने गहरी़ सांस लेकर कहा ,नही आंटी ,अगर मैं ऐसी होती , तो फिर मैं वापस क्यों आती ? मेरा सुंदर होना मेरा गुनाह हो गया ।वो पापा के बिजनेस पार्नटर का बेटा था। उसने मुझे 5 मिनट के लिए बोल कर स्कूल गेट के बाहर बुलाया था सामने उसकी गाडी़ खडी़ थी वो खुले दरवाजे के पास खडा़ था उसने मुझे पास आंने को कहा जैसे ही मैं पास पहुंची मुझे एक झटके से गाड़ी मे बिठा लिया। गाडी़ तेज रफ्तार से निकल गई ।व़ो परचित था भौंचक्का थी इसलिए मैं कुछ नहीं कर पाई ।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">कुछ दिनो पहले मैंने पापा को किसी से फोन पर बोलते सुना था, किसी को बर्बाद करने की धमकी दे रहे थे। उधर से क्या बोला था मैंने नहीं सुना</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;"> उनके आपसी झगडे़ का अंजाम थी यह घटना ।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;"></div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">मैंने मयूरी को बचपन से देखा था।मुझे बेहद अफसोस हो रहा था।लड़कियों को बदनाम करना कितना आसान होता है।उससे कुछ पूछा नही जाता है बल्कि लोग मनगढ़न्त बातों को चटकारे ले कर सुनते हैं और अगर कुछ ऊँच नीच हो गई तो उसकी हर गतिविधि को गलत नजरिये से देखा जाता है! ये बहुत बड़ी मानसिक प्रतारणा है</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">फिर उसने उसके अपने लोगों के रवैये की बात कही ,कहते कहते रो पडी़।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">जिस दिन मुझे छुडा़ कर घर लाया गया, मैं बेहद खुश थी।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">जैसे ही मैं गाडी़ से उतरी,सामने दादी दादा जी खड़े थे। मैं लपक कर उनके पैर छूने आगे बढ़ी लेकिन उनकी तरफ से ना ही आशीर्वाद का हाथ बढ़ा ना एक शब्द निकला।पहले यही लोग आशीर्वाद की झड़ी लगा देते थे, अजीब लगा। मम्मी ने गले लगाने के बदले झटके से मुझे खींच कर कमरे के अंदर कर लिया।न मुझ से कुछ कहा न पूछा,बस आँखों से आंसुओं का सैलाब फूट पडा़ ।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">पापा की आंखों मेंं पता नहीं क्या था,पर पहले जैसा कुछ नहीं था। मैंने गौर किया, मुझ से कुछ दूरी बना रहे थे।बस छुटका वैसा ही था।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;"></div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">पापा ने पिछले जन्मदिन पर स्मार्ट फोन दिया था । हमारा वॉट्सअप ग्रुप था, मुझे वीडियो गेम खेलना अच्छा लगता था ।मम्मी की डांट पड़ने पर छुप छुप कर मोबाईल से गेम खेलती थी।ऐसा मेरी उम्र के सभी करते हैं।लेकिन अब इसे लड़के से बात करने से जोड़ दिया गया। मुझे सजने संवरने का शौक था ,मम्मी मेरे लिए लेटेस्ट फैशन के कपडे़ खरीदती थी।वे अपनी सुंदर सलोनी गुडि़या सी बेटी को किसी से कमतर नहीं देखना चाहती थी।मुझे फैशनेबल बिगड़ी हुई लड़की समझ लिया गया। जिसे माँ ने बिगाड़ा है।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">लेकिन ऐसी मैं अकेली नहीं हूँ। फिर मेरे साथ ऐसा हुआ तो मेरी क्या गलती? क्यो सब कुछ बदला बदला सा है ।कुछ टटोलती सी आँखें।मानो कुछ ढूँढ रही हो मम्मी प्यार जताती थी, लेकिन कमरे के अंदर, सब से छुपा कर।क्योंकी सब मान कर चलते हैं लड़की मां की जिम्मेदारी होती है मेरी मां चूक गई थी इसलिए अब मैं प्यार नही दुत्कार की हकदार थी।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">मैं घर लौटने के लिये कितना बेताब थी।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">रोती थी,गिड़गिड़ाती थी ,मैं ने खाना पीना छोड़ दिया था । कहती थी मेरे बगैर पापा मम्मी कभी नहीं खाते हैं। मैं कैसे खाऊँ।अब मुझे अलग कमरे मे खाना दे जाते हैं ,लोगों की नजरों से बचाने की कोशिश की जाती है।मेरे लौट आने की खुशी किसी को नही थी।बल्कि एक मातम छाया रहता है ऐसा माहौल जिसमें न खुल कर मातम मना सकते हैं न खुशी। उधर वो आवारा ,चूंकि पापा ने केस उठा लिया था इसलिए उसकी ठसक बढ़ गई थी ,अब और चौड़ा सीना करके बाईक से मुहल्ले का चक्कर काटता था।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">हमे नीचा दिखाने के लिए।अजीब है हमारा समाज।मुझे घृणा हो गई है।समाज से और उससे भी ज्यादा घरवालों से ,वो एक बार भी खुल के नहीं बोलते हैं ,कि मेरी बेटी चरित्रहीन नहीं है,जो हुआ वो एक दुर्घटना थी।जो किसी के साथहो सकती है।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;">उनकी चुप्पी से लोगों को मौका मिल रहा है।</div><div dir="auto" style="font-family: "noto sans devanagari", sans-serif; font-size: 12.8px; height: auto !important; margin-top: 20px; max-width: 100%;"> पहले ऐसा समझती तो मैं अपने घर नही लौटती</div>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-74379957016215330342021-08-06T09:24:00.002-07:002021-08-06T09:24:25.934-07:00टेंशन मत ले ऐ इंसान,<p> आधुनिकता ने हमे दो चीजों का श्राप दिया है।बाहरी तौर पर प्रदूषण और भीतर से तनाव और डिप्रेसन । !अब डाक्टर भी कहते पाए जाते हैं कि हर बीमारी की जड़ यही नासपीटा तनाव है। यहां तक कि फोड़े फुंसी भी ? </p><p>कैसे ,कैसे ,कैसे ? </p><p>वो ऐसे ,की जब कोइ राज आप अपने भीतर छुपा कर रखते हैं ।जाहिर हैअब कम ही लोग खुले दिल के होते हैं । इसलिए हर चीज की तरह कुछ दिनों में ये भी सड़ने लगतीं हैंं । शायद यही वो वजह हो सकती है ।</p><p> अलबत्ता,टेंसन नही लेने का ,बिंदास रहने का,टेंसन देने का,लेने का नही ,जुमले खूब उछाले जाते हैं, दुकान में आकाश छूती मंहगाई की बात पर दुकानदार झट से कहेगा आप इसकी 'टेंसन मत' लो जी ।</p><p>भैया पैसे मुझे देने हैं टेंसन कैसे न् लूं? </p><p>कुछ मामलों में टेंसन हो ही जाती है ।</p><p>आपने खूब मेहनत कर सुख सुविधा के सभी साधन जमा कर लिए। सोचा होगा अब चैन से रहेंगे, कोई टेंसन नही होगा।लेकिन सुबह सुबह जब काम वाली बाई नही आती है ,उस समय की बैचैनी याद है? </p><p> तो पूरे दिन टेंसन टेंसन टेंसन </p><p>ऐसे ही आप की टेंसन की कई वजहें ड्राईवर ,गार्ड वगैरा होती हैं।</p><p>बच्चे स्कूल से लौटते हैं।</p><p>कहीं बैग,कहीं जूते, सबसे पहले टी.वी.खोल कर बैठ जाते हैं।</p><p>झुँ झुँ झुँ झुंझुलाहट।</p><p> ऐसे टेंसन के मौक़े आते रहेंगे,बस कोशिश करें इन मौके पर कूल बने रहें।बच्चे बैग,जूते फेकेंगे ही, उठाना आपका काम है।अबतक नही सिखाया तो कभी नही सीखेंगे। बच्चों के साथ आप भी टी वी देखें।</p><p>पतिदेव शाम को शॉपिंग का वादा कर के नहीं आते हैं।</p><p>गु गु गु गुस्सा।</p><p>आज नहीं तो कल उन्ही के साथ शॉपिंग करना है। इस गलती का फायदा उठाने का मौका नहीं चूकें। आईस क्रीम की फरमाइश करें ।क्यों क्या की ओर मन को न लगाएं , गुस्से की दहक कम होगी।</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-15743884817824122572021-05-17T10:21:00.003-07:002021-05-17T10:25:14.170-07:00माँ का दिन !<p> आजकल मदर्स डे,या यू कहूं तो तरह तरह के 'डे' मनाने का रिवाज ही चल पडा़ है और फेसबुक पर नही दिया तो क्या किया 'जगल में मोर नाचा' मेरी बला से ,किसी ने देखा क्या?</p><p>कविता तो यूं पढ़ेंगे,मानो मां के धो कर,सिंहासन पर बिठा कर आए हों,पता है,पता है आज भी रोज की तरह न खुद चैन से खुशी खुशी बाय बोला होगा ना मम्मा मुस्कुराई होगी।फिर भी</p><p> डे क्या है ?हैप्पी मदर्स डे,</p><p>क्या सही में?</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-44556594395241699252020-09-28T13:23:00.002-07:002020-09-28T13:23:23.141-07:00असली स्क्रिप्ट<p> <span style="font-family: sans-serif; font-size: large;">हम भारतीय आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं।सुशांत की कथित आत्महत्या के संदर्भ में कहा जा सकता है कि उसकी आत्मा भटक रही होगी ,और अपनी मृत्यु की साजिश में शामिल हत्याऱों की दुर्गति पर हंस रही होगी।</span></p><div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: large;"><div class="elided-text"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="elided-text"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto"><div class="elided-text" dir="auto"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto">कला को <span style="font-family: sans-serif;">काला बना कर रख दिया इन कलाकारों ने ।ऊपर से हसीन दिखने वाली इनकी दुनिया अंदर कितनी घिनौनी होगी, सोचा ना था । गला काट प्रतिस्पर्धा को अक्षरशः साबित कर दिखाया इन्होंने । क्या किसी सहकर्मी की सफलता से ईर्ष्या की आग ऐसी की भड़क उठी की उसे तड़पा तड़पा कर मार डाला ? और तो और उसे मरता हुआ देख रहे थे ।।ऐसी पाशविक प्रवृत्ति कलाकारों में थी? लानत है, इन्हें कलाकार कहलाने पर। अगर यही प्रवृत्ति चलती रही तो कुछ दिनो बाद ये मरने वाले की बोटियां काट कर खाएंगे। ंनशे की दुनिया के ये नसेड़ , जिनका पूरा परिवार इस नरक में डूबा है।पता नहीं ,इनका अंजाम कैसा होगा ।</span></div></blockquote></div><div dir="auto"><br /></div><div class="elided-text" dir="auto"><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;"><div dir="auto">अपनी लौहपुरुष,एक आदर्श भारतीय नागरिक की छवि रखने वाला कलाकार अन्दर से,इतना लाचार और टूटा हुआ है।इंसान अपने परिवार को सुख में रखने के लिए धन कमाता है,और वही धन इसकी बर्बादी का कारण बनता है।इन्हीं शातिर दिमाग वालों ने एक प्रतिभान नौजवान को बरगलाना शुरू किया होगा ।छोटे शहर की,आत्मीयता के माहौल से निकल कर मुंबईया धूर्तों के बीच जा फंसा बेचारा। घात लगा कर बैठे इन दरिंदों ने कैसे कैसे कुचक्र रचे, जानकर फिल्में देखने का दिल नहीं करता ।</div></blockquote></div></div></blockquote></div></div></blockquote></div></div><div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: large;">पहले के समय में फिल्मों को और उसमे काम करनेवालों को अच्छी नजरों से नहीं देखते थे लेकिन इन कुछ सालों में लोगों की मानसिकता बदलने लगी है जिसके कारण एक से एक सुन्दर प्रतिभावान कलाकारों कोआजीविका मिल रही ।लेकिन इस जधन्य हत्याकांड के बाद इस क्षेत्र मे आजीविका ढूंढने वाले दस दफा सोचेंगे।इस घटना से फिल्म जगत की प्रतिष्ठा को गहरा आधात लगा है।</div>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-85893755329473277852020-09-21T02:01:00.002-07:002020-09-21T02:01:52.760-07:00गांडीव उठाओ<p> बिहार फिर चुनाव की चपेट में है।सोचा कुछ लिखा जाए,पर क्यो?</p><p>कुछ नया हो,कुछ अलग हो, यहां तो </p><p>वही आलम है,नागराज जीतेंगे या सांप राज हमे क्या?</p><p> हमारी ड्राइंग रूम पार्टी यूं ही चलती रहे।</p><p>अपना वही पुराना राग अलाप रही हूं।</p><div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: large;">चुनाव दर चुनाव देश की जनता को एक ऐसे नेता की तलाश है जो पढा़ लिखा, बेदाग छवि वाला हो,जिस पर देशहित का भरोसा किया जा सके | लेकिन हम केवल कल्पना करते हैं, पहल नही करते|</div><div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: large;">किसी दुर्घटना के बाद , सड़क जाम हो या आक्रोश दिखाने के लिऐ किया जाने वाला रोड जाम ,प्रदर्शन ,पुतला दहन | </div><div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: large;">कौन करता है ये सब ? प्रायः औसत अंक लानेवाला छात्र ,जो ऊँची पढा़ई के लिए बाहर नही जा पाते, वे ही इन कामो मे बढ् चढ् कर हिस्सा लेते हैं|</div><div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: large;"> हम -आप अपने बच्चों को इन कामों से दूर रखते हैं | उन्हे अच्छी शिक्षा लिए बाहर भेज देते हैं ।हम अपने बच्चों को अपनी घरेलू समस्याओं से भी दूर रखते हैं , की हमने उसकी पढा़ई के खर्चे कैसे पूरे किए | उसे मानसिक तनाव नहो |फिर तो हमारा इतना बड़ा देश ,अंतहीन समस्यााऐं ,अगर इस ओर उलझ गया तो पढ़ेगा कैैसे ? कब ? हां GK मे सौ मे सौ नं लाने के लिए उसे सब कुछ पता होता है |लेकिन उसे इन लफड़़ोंं से दूर रखते हैं|</div><div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: large;">कॉलेज मे चुनाव होते हैं शुरुआत में यही बच्चे छात्र संघ का चुनाव लड़ते हैं |ये उनके राजनीति मे प्रवेश की पहली सीढी़ होती है |उसका भविष्य इसबात पर निर्भर करता है की वह कितना आक्रामक है| यही औसत दर्जे के छात्र अंतोगत्वा मंत्री बन जाते हैं |मंत्री बनने के बाद उनका हक है कि वह जो चाहे कानून बनाए कानून बदलें |यही हमारे नीति नियंता बन जाते हैं |आजकल किसी पार्टी का कोई सिद्धात नही होता |इसलिए जहाँ चारलोग बैठे हों और चर्चा राजनीति की हो तो नेताओं के गिरते नैतिक स्तर ,उनके चरित्रहीन ,अपराधी होने की बात करते नहीं थकते । पहले राजनीति को जनसेवा से जोड़ा जाता था हर पार्टी का अपना एक सिद्धांत हुआ करता था, लोग उसी हिसाब से पार्टी चुनते थे | लेकिन अब उसकी कोई चर्चा ही नहीं होती किसी भी तरह उद्देश्य होता है सत्ता प्राप्ति । क्योंकी जैसी सुख सुविधाएं उसे मिल रही है वह हमारे लिए दूर्लभ है | हम कुढ़ते है ,सरकारी नीतियों की निंदा करते हैं |लेकिन पहल नही करते|</div><div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: large;">अपने कमरे में TV के सामने बैठकर बातें करना आसान है दरअसल हम अपना टाइम पास करते हैं क्योंकि हमे कोई जरूरत नहीं है बेटे को नौकरी नहीं चाहिए , राशन कार्ड नहीं चाहिए आपको डॉक्टर के लिए सरकारी हॉस्पिटल नहीं चाहिए ।आपके पास सारी सुख सुविधाएं हैं, इसलिए आप वोट देने तक नहीं जाते छुट्टियां मनाते हैं ।नेता कोई भी बने आपको कोई मतलब नहीं 'कोहु नृृृप होहु हमे का हानि', ऐसै मे शिकायत करना गैरवाजिब है| लेकिन देश हम सबका है | राजनैतिक मतभेद होना अलग मुद्दा है |लेकिन सभी दलों को देशहित के मामलों मे एक मत होना होगा | अगर देश को सही दिशा मे ले जाना है तो हमे पहल करनी होगी |राजनीति को यूँ हल्के से लेने के कारण आज नेता शब्द गाली जैसा बन गया है| राजनीति एक गम्भीर विषय है| क्योंकी किसी गलत कदम से देश ही नही विदेशों मे भी हमारी शाख कमजोर होती है| विदेशों मे रहने वाले करोडो्ं भारतीयों की उम्मीदें हमारी नीतियाँ पर टिकी होती हैं।</div>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-38290513127099751392020-09-11T01:22:00.004-07:002020-09-11T01:22:25.633-07:00रिश्ता ,दिल का<p> जितिया के पारण का दिन था,मैंने पूजा की,फल –मिठाइयों का भोग लगाया .मन उदास था.मुझे याद है, इन बच्चों ने ही ये व्रत शुरू करवाया था जितिया के अगले दिन उन्हें मुझसे बड़ी शिकायत रहती थी ,क्योकि उस दिन जिन की माएं व्रत रखती थी लंच बॉक्स में बढिया –बढिया चीजें ले कर आते थे.फिर मै भी .बच्चों की पसंद के पकवान बनाती थी .अब तो त्योहारों में शायद ही कोई आ पाते हैं.बस फोन से मैं आशीर्वाद दे देती हूँ ,और वे भी अपना ख्याल रखने की हिदायतें दे देते है.मैं ये सब सोच ही रही थी की सूरज हडबडाता आया ,मेमसाब आपकी पूजा हो गयी ?सब्जी बन गयी है गरम-गरम ,पुरियां तल के लाऊं क्या?असल में साहब की तरफ से उसे सख्त हिदायत दी गयी थी की जैसे ही पूजा खत्म हो, मुझे झट से नास्ता परोसा जाय.बड़ा कठिन व्रत होता है ,फिर मेरी तबियत ठीकनहीं रहती है</p><p><br /></p><p> सूरज तेरह-चौदह साल का लड़का,अब हमारे घर का सदस्य बन गया है.जब से मेरी तबियत खराब रहने लगी थी,मेरा घर में अकेला रहना थोडा असुरक्षित हो गया था. क्या पता कभी चकरा के गिर गयी तो? या फिर पांव ही फिसल जाये .हमारी कॉलोनी के पास एक बस्ती है.मेहनतकश लोगों की.कभी कभार बाजार जाने के क्रम में एक रिक्शा चालक से कहा था ,कोई घर के कामकाज में सहायता करने वाला, मिले तो बताना और ये भी जोड़ दिया था की उसके रहने, खाने-पीने दवाई-पढाई जैसी सारी जिम्मेदारी हम उठाएंगे . दो तीन दिनों बाद वही रिक्शा वाला , इसी सूरज को साथ लिए आ खड़ा हुआ .उस वक्त इसने स्कूल ड्रेस पहना हुआ था .उसे देखते ही मैंने उसे डाटते हुए कहा अरे ,इस बेचारे को क्यों पकड़ लाए ?इसकी पढाई छूट जायेगी.ये तो स्कूल जाता होगा.कोई गांव का गरीब हो तो लाना . उसने बोला ,मेमसाब ये मेरा ही लड़का है.मै तो रिक्शा ले के निकल जाता हूँ .मेरे पीछे ये स्कूल से भाग आता है फिर सारे दिन गली के शैतान बच्चों से मिल कर आवारागर्दी करता है .अपनी माँ का कहना नही मानता है .आपके पास रह कर सुधर जाएगा.इसकी जिंदगी बन जायेगी . मै सोच में पड़ गयी,कहीं आवारा बच्चों के साथ रह कर उन्ही जैसा बन गया हो तो हम तो मुसीबत में फंस जायेंगे .नौकरों द्वारा किये गए न जाने कई किस्से दिमाग में कौंध गए.शायद वह भी मेरे मन की बात भांप गया .कहने लगा नही-नही मेमसाब मैंने अभी तक इसे बिगड़ने नही दिया है .ये आपको कोई शिकायत का मौका नही देगा.मैंने लडके का चेहरा गौर से देखा चेहरे पर मासूमियत थी .नजरे झुकाए खड़ा था.मैंने उसे छोड़ जाने को कहा.अजनबी लोग नई जगह .उसका घर पास में था सोचा ,कहीं भाग ही न जाये .मैंने टीवी ऑन करके उसे बिठा दिया .फिर क्या था.वो मग्न हो कर टीवी देखने लगा .मेरी चिता दूर हुई .उसका अपना साबुन है .पेस्ट ,टूथ ब्रस,कंघी ,शीशा हर नए सामान को पा कर अचम्भित हो जाता था . .फिर तो सूरज ऐसा रमा की हम सारे दिन सूरज-सूरज करते रहते .वो दौड –दौड कर हमारी जरूरतें पूरी करता. सन्तान के सारे कर्तव्य वो करता. कभी- कभी तो उससे भी बढ कर उसने हमे सहारा दिया है .मैंने सूरज को प्यार से देखा वो मेरे हाँ कहने का इंतजार कर रहा था मैंने संतान को दिया जाने वाला पहला प्रसाद उसके हाथ में दे कर कहा ,जा बेटा, पहले प्रसाद खा ले फिर पूरी तलना .वो खुश हो कर अंदर भागा .</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-52481212098111316702020-09-05T04:05:00.002-07:002020-09-05T04:05:13.752-07:00हाउस कीपर,टीचर,, नमन है<p> आज शिक्षक दिवस के मौके पर मैं दुनिया के तमाम शिक्षकों का अभिनंदन करती हूं ,और उन्हें शुभकामनाएं देती हूं जिस सम्मान के वे हकदार हैं समाज उन्हें वही गरिमा प्रदान करे ।आज का पूरा दिन हमनें शिक्षकों को समर्पित किया ,</p><p>लेकिन मुझे समाज से शिकायत है । आज सब शिक्षकों का सम्मान कर रहे हैं ।उन्हें बधाइयां दे रहे हैं, क्योंकि वे विधिवत शिक्षक है यानी किसी स्कूल या कॉलेज में पढ़ाते हैं ।लेकिन ऐसी शिक्षिकाऐं जो कहीं नामांकित तो नहीं है लेकिन पर्दे के पीछे से अनंत काल से शिक्षा देने का काम करती आई हैं ,उसे किसी ने बधाई नहीं दी उसके काम के महत्व को नहीं समझा। नहीं समझे ? वही मास्टर की पत्नी मास्टरनी बोलते हैं । मास्टर की पत्नी भले ही अंगूठा छाप हो धड़ल्ले से मास्टरनी बना दी जाती है। बुलाते हो तो बधाई देने में दोहरा व्यवहार क्यों? शिक्षक जब छात्रों को पढ़ा कर घर लौटता है घर में उसे पढा़ने मास्टरनी मौजूद रहती है । स्कूल में सख्त माना जाने वाला मास्टर घर में पत्नी के सामने शिष्यवत बैठा रहता है। पत्नी उसे बाजार में ठगी से बचने के तमाम तरीके सिखाती है। सावधान करती है ।मास्टरनी से शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक झोला लेकर बाजार को निकल जाता है। </p><p>यही हाल प्रोफेसर साहब का है ।क्लास में छात्रों को लेक्चर दे देकर जब घर लौटते हैं तो खराब तरकारी लाने के लिए प्रोफेसराईन एक लंबा सा लेक्चर सुनाती है और प्रोफेसर साहब सर झुका कर सुन रहे होते हैं , मानो सब्जियां उन्होंने ही उगाई हैं। या ठेलेवाला उनका कोई सगा है। ् इसलिए इस मौके पर मैं मास्टरनी और प्रोफेसराईन को बधाई देती हूं और शुभकामनाएं देती हूं उनका वर्चस्व बना रहे ।घर की बात बाहर कतई न निकले ,जिस गरिमा से अपने पति का साथ देती हैं वही गरिमा बनी रहे ।</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-45615878670178104302020-08-25T15:08:00.003-07:002020-08-25T15:08:48.339-07:00अंत में क्या निकला परिणाम?<p> बेचारा रोता पीटता आया था । बेहतर नहीं ,कमतर ही सही ,की उममीद ले कर,वहां करौना से भागा था,यहां टिकने का कोई जुगाड़ क्या बैठाता ,बची उम्मीदें बाढ़ बहा ले गई ।फिर कभी वापस नहीं लौटने की कसमो को झुठलाता । वापस लौट रहा है । कइयों ने अपनो को खोया,कई खुद लापता हो गए।</p><p><br /></p><p>अब हमारी बारी है ,अपने गिरेबां में झांकने की,हमने क्या किया?</p><p><br /></p><p>हम खाते पीते लोग,रेगुलर टी.वी. देखते रहे।रामायण महाभारत के ब्रेक मे़ उनकी व्यथा के साथ थे। काम वालियों को एक महीने की पगार दी , बिलकुल दी,बिना काम करवाऐ ,फिर खुद काम करने की आदत हो गई।</p><p><br /></p><p>लिखने पढ़ने वाल़ों ने अपनी कलम मजबूती से पकडे रखी ,कहीं किसी की त्रासदी नोट डाउन करने से कहीं छूट न जाए।</p><p><br /></p><p>देश का बुद्धीजीवी वर्ग दो खेमे मे बंटा है,तीसरा ऐंगल अभी बाकी है।एक के पास धर्म का झुनझुना है,दूसरे के पास तमाम तरह के आंकड़े हैं ।व्यापार में धाटे के,बेरोजगारी के,अर्थव्यवस्था के,होना ये चाहिए, क्या गलत किया जा रहा है, का निरंतर जाप जारी है ,ताकी कहा जा सके,देखा,हमने तो पहले ,से बोल रखा था। जिसके लिए ये सारा कुछ किया जा रहा है , उसे क्या मिला ? बैंक में पांच सौ रुपये ,पांच किलो चावल, इधर उधर से सहायता,बस ! ये खैरात भी कब तक?</p><p><br /></p><p>उसने अपना वापसी का टिकट कटवा लिया है, जिस करौना से भागा था,वो अभी भी वहीं है, पहले से भयावह रुप में ।घर वापसी के दौरान क्या उसने अपना इम्यून सिस्टम इतना मजबूत कर लिया है?</p><p><br /></p><p> सब कुछ समझ कर वहीं लौटने की त्रासदी ,मरना तो तय है ,ऐसे में धर्म का झुनझुना उसे मोक्ष प्राप्ती का आसान जरिया लगता हो तो गलत क्या है।</p>Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-4375630611458395162020-05-12T11:32:00.001-07:002020-05-12T11:32:14.174-07:00तुम खुश तो हो ना बेटी?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="quoted-text" style="color: #500050; font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div>
<div class="gmail_quote">
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
तुम खुश तो हो ना बेटी?<div dir="auto">
<br /></div>
<div dir="auto">
हम रोज बातें किया करते हैं </div>
<div dir="auto">
कुछ इधर की , कुछ उधर की,</div>
<div dir="auto">
बे सिर पैर की बातें। </div>
<div dir="auto">
और जी खोल कर हंसते हैं ।</div>
</div>
</blockquote>
</div>
</div>
<div dir="auto">
<div class="gmail_quote">
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
<div dir="auto">
अब हम सहेलियां जो बन गई हैं।</div>
</div>
</blockquote>
</div>
</div>
</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div class="gmail_quote">
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
<div dir="auto">
हमारे रिश्ते बदलते रहते हैं ,</div>
</div>
</blockquote>
</div>
</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div class="gmail_quote">
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
<div dir="auto">
पहले मैं मां थी ,तू बेटी ,</div>
</div>
</blockquote>
</div>
</div>
<div class="quoted-text" style="color: #500050; font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div dir="auto">
<div class="gmail_quote">
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
<div dir="auto">
फिर हम सहेलियां बने ।</div>
</div>
</blockquote>
</div>
</div>
</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div class="gmail_quote">
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
<div dir="auto">
कुछ दिन बाद तू मां बन जाएगी ,</div>
</div>
</blockquote>
</div>
</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div class="gmail_quote">
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
<div dir="auto">
मुझे डांटा करेगी</div>
</div>
</blockquote>
</div>
</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
अजीब है ना ?</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
तुम कल भी हंस रही थी ,</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
हर बात में हंसना जरूरी नहीं होता ,</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
लेकिन तुम हंस रही थी ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
मानो पूरा कर रही थी , कोई शर्त ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
हंसी आए न आए हंसने की मजबूरी हो।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
तुम कब कैसे कहां हंसती हो ,</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
मुझे मालूम है सब ,</div>
<div class="quoted-text" style="color: #500050; font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div dir="auto">
मैं तुझे तुझसे ज्यादा जानती हूं </div>
</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
क्यों नहीं जानू तेरी नसों में</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
मेरा खून दौड़ रहा है बेटी ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
कभी दिल की गहराइयों से निकलती है हंसी ,</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
कभी दिल खोल कर निकलती है हंसी।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
कभी पहाड़ी झरने सी हंसी,</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
सारे गिले-शिकवे, गम अवसाद,</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
साथ बहा ले जाती है हंसी।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
कल की हंसी ,हंसी नहीं थी ,</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
खोखली सी रूंधी हुई , </div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
लगता था हंसते-हंसते रो पडोगी। </div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
तुम्हारी आंखों के नीचे काले घेरे,</div>
<div class="quoted-text" style="color: #500050; font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div dir="auto">
कुछ अलग ही बयां कर रहे हैं।</div>
</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
तुमने अपने जबड़े क्यों भींच रखे हैं,</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
डर है हंसी के बदले रोना न निकल आए ।</div>
<div class="quoted-text" style="color: #500050; font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div dir="auto">
हमने तुम्हारा हाथ दिया है।</div>
</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
उनके हाथों में कोई बांध नहीं दिया है, </div>
</div>
Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7877116034264111607.post-7195789309574953542019-11-02T15:07:00.000-07:002019-11-02T15:07:00.349-07:00समय की बात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
<div class="gmail_quote">
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
<div class="gmail_quote">
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
<div class="gmail_quote">
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
<div class="gmail_quote">
<div class="quoted-text" style="color: #500050;">
<div class="gmail_attr" dir="ltr">
अभी-अभी हमने त्योहारों का पावर पैक मनाया, एक के बाद एक त्योहार आए गए ,गौर किया होगा बहुत कम लोग अपने घरों से निकल कर दूसरों के घर बधाई देने गए । अच्छे महंगे कपड़े, ख़ूब सूरत रंगोली ,घर की सजावट तमाम तामझाम, सब कुछ हुआ लेकिन सबों ने अपने अपने घरों में त्योहार मनाया।अपने आप में सिमटे रहे। </div>
</div>
<blockquote class="gmail_quote" style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex;">
<div dir="auto">
संबंध खोखले हो रहे हैं लेकिन शब्दाडंबर इस कदर बढ़ गया है कि मानो दिल की गहराई से भाव निकल। कर आ रहे हों।ना ना किसी भ्रम में मत रहिए ,आदमी वैसा ही खूसट है ,जैसा पहले था ,हां अब बातें बनाना सीख गया है। पहले सिर्फ दीपावली की शुभकामनाएं दी जाती थी। अब धनतेरस की पूर्वसंध्या से शुभकामनाओं का आवागमन चालू हो जाता है।तेरस,चौदस, फिर दीपावली उसके बाद चित्र गुप्त पुजा, गोवर्धन पूजा, भाई दूज त्योहारों का व्यस्त समय होता है फिर भी सबको जवाब देना जरूरी लगता है नहीं तो उनके रुठ जाने का डर है। रिश्ते व्हाट्सएप ,फेसबुक, ट्विटर वगैरा के हिसाब से बनते बिगड़ते हैं ।किस ने लाईक किया ।किस ने क्या ,कैसा कमेंट किया।कभी हर्ट होते हैं। कभी हैप्पी। लेकिन सभी हवा हवाई होता है। </div>
<span style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">कभी मुसीबत के वक्त बुला के देखिए कैसे रंग बदलते हैं। लेकिन मना भी करेंगे चासनी में डूबे बोलों से एकदम मौलिक वजह। आप दोबारा उम्मीद करना छोड़ देंगे ।अलबत्ता प्राइवेट नर्सिंग होम अपना चरित्र बदल रहे हैं। अपनों से टूटा हुआ आदमी जब अकेला इन नर्सिंग होम के द्वार पर जब जाता है तो ये नर्सिंग होम वाले, एक बिजनेस स्ट्रेटजी के तहत इस कदर </span><span style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">होमली ,फैमिलियर केयरिंग</span><span style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;"> भाव दिखाते हैं कि अपनों से टूटा हुआ आदमी इनके मोहपाश में बंधता चला जाता है ।जबकि इन नर्सिंग होम वालों की नजर आपके हेल्थ इंश्योरेंस पर टिकी रहती ।हां,भले ही पैसों के लिए लेकिन आपके लिए फाइव स्टार सुविधा मुहैया कराते हैं। सफाई वाली महिला पहुंचते ही आपका स्वागत भरपूर अपनेपन के साथ , कैसे हो ताऊ जी ,कैसी हो अम्मा, कैसे हो साहब जी पूछ कर आपका दिल खुश कर देगी ।नर्स की मुस्कान आपको आपनी बहन ,भाभी ,पत्नी जैसी लगेगी और सबसे ऊपर डॉक्टर पहले आपसे आपके मूल स्थान का पता लगाएगा फिर आपको आपकी ही बोली में आप से सवाल जवाब करके दिल खुश कर देगा। आपका भी जाता क्या है,भले ही पैसे लेकर दो मीठे बोल तो कहे।</span></blockquote>
</div>
</div>
</blockquote>
</div>
</div>
</blockquote>
</div>
</div>
</blockquote>
</div>
</div>
<div dir="auto">
<br style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;" /></div>
</div>
Neeta Jhahttp://www.blogger.com/profile/10459276945679237125noreply@blogger.com0