Tuesday, September 5, 2017

मौत के सौदागर

दहशत,बिक रहा है। मिडिया दहशत,मौत का वीडियो खरीद रहा है।क्यों कि उसे अपनी टीआर पी बढ़़ानी है।देखना दर्शकों की मजबूरी है। सभी समाचार चैनल वही दिखा रहे है। अगर पंचकूला की रिपोर्टिग वैसी दहशत फैलनेवाली नही} होती तो क्या होता? क्या मामले की गम्भीरता कम हो जाती ? कोई मर रहा होता है ,हम अपने घरों में बैठ कर तमाशा देख रहे होते हैं  ये सच है ,मिडिया ने मौत को तमाशा बना डाला है कहाँ तो प्राचीननाट्य शास्त्र में मंच पर मृत्यु को दिखाना वर्जित था |पर अब शव दिखाना वो चाहे कितना भी वीभत्स हो ,दिखाया जाता है , बार बार दिखाया जाता है ,देख कर मन अशांत हो जाता है  मन अशांत होना , दिमाग में वहीं दृश्य घूमना ये सब अब कुछ हम जैसे खाली लोगों का शगल कहलाता बाकियों के लिए ये भुनाने का अवसर है |कोई पैसे बनाता है ,किसी को वाहवाही चाहिए |समवेदनाओं का इस तरह कुंद हो जाना ,एक बेहद भयावह भविष्य की चेतावनी है |हम एक वहशी क्रूर  समाज निर्माण की ओर बढ़ रहे हैं जहां इंसानियत नहीं हैवानियत का बोलबाला होगा किसी को पीटपीट कर मार डाला जा रहा है ,कोई पेट्रोल दाल कर नजरों के सामने जल कर मर रहा है ,लड़कियों की सरेआम इज्जत लूटी जा रही है ,,हादसे में लोग मर रहे हैं मगर आप सहायता के बदले विडिओ बना रहे होते हैं एक छोटे से यंत्र मोबाईल ने हमारा चरित्र बदल डाला ? या हम अंदर से ऐसे ही थे ,इस यंत्र कीवजह से हम अपने असली रूप में आ गए | एकल परिवार के बढ़ते चलन सेसे वैसे ही  आत्ममीयता खोती जारही है पहले समाज से नाता टुटा फिर संयुक्त परिवार छूटा ,अब सिर्फ माता पिता के प्रति लगाव रह गया है ,एकलौता बच्चा प्रायः तानाशाहों की तरह व्यवहार करता है | इसमें गलती उसकी नहीं हमारे परवरिश की कमी है।                      यों  मोबाईल से विडिओ बनाने के पीछे पैसों का गणित भी काम करता है | पैसे दे क्र किसी की हत्या करवाने की बात सुनते हैं लेकिन एक आम आदमी भी ऐसा हो सकता है ऐसा नहीं सोचा था |

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