Tuesday, August 25, 2020

अंत में क्या निकला परिणाम?

 बेचारा रोता पीटता आया था । बेहतर नहीं ,कमतर ही  सही ,की  उममीद  ले कर,वहां  करौना से भागा था,यहां टिकने का कोई जुगाड़ क्या बैठाता ,बची उम्मीदें बाढ़ बहा ले गई ।फिर कभी वापस   नहीं लौटने की कसमो को झुठलाता  । वापस लौट रहा है ।  कइयों  ने अपनो को खोया,कई खुद लापता हो गए।


अब हमारी बारी है ,अपने गिरेबां में झांकने की,हमने क्या किया?


हम खाते पीते लोग,रेगुलर टी.वी. देखते रहे।रामायण महाभारत के ब्रेक मे़ उनकी व्यथा के साथ थे।  काम वालियों को एक महीने  की पगार दी , बिलकुल दी,बिना काम  करवाऐ ,फिर  खुद काम करने की आदत हो गई।


लिखने पढ़ने वाल़ों ने अपनी कलम मजबूती से पकडे रखी ,कहीं किसी की त्रासदी नोट डाउन करने से कहीं छूट न जाए।


देश का बुद्धीजीवी वर्ग दो खेमे मे बंटा है,तीसरा ऐंगल अभी बाकी है।एक के पास धर्म का झुनझुना है,दूसरे के पास तमाम तरह के आंकड़े हैं ।व्यापार में धाटे के,बेरोजगारी के,अर्थव्यवस्था के,होना ये चाहिए, क्या गलत किया जा रहा है, का निरंतर जाप जारी है  ,ताकी कहा जा सके,देखा,हमने तो पहले  ,से बोल रखा था। जिसके लिए ये सारा कुछ किया जा रहा है , उसे  क्या मिला ? बैंक में  पांच सौ रुपये ,पांच किलो  चावल, इधर उधर से सहायता,बस ! ये खैरात भी कब तक?


उसने अपना वापसी का टिकट कटवा लिया है, जिस करौना से भागा था,वो अभी भी  वहीं है, पहले से भयावह रुप में ।घर वापसी के दौरान क्या उसने अपना इम्यून सिस्टम इतना मजबूत कर  लिया है?


 सब कुछ समझ कर वहीं लौटने की त्रासदी ,मरना  तो तय है ,ऐसे में धर्म का झुनझुना उसे मोक्ष प्राप्ती का आसान जरिया लगता हो तो गलत  क्या  है।