Saturday, April 30, 2016

माँ सी , मासी।

मौसी {लीला दी }नही रही ,मुझे क्या किसी को एक बार में विश्वास नही होगा . पर जिन्होंने उनके दाह संस्कार में भाग लिया ,उन्होंने इस सच्चाई को देखा ।

कहते है ,अकस्मात जाने वालों को ,मौत किसी न किसी बहाने ले जाती है .मौसी के यूँ जाने की न कोई वजह थी न बहाना .लगा jaiseवो अभी –अभी हमारे बीच थी ,न जाने कब चुपचाप हमे छोड़ कर चली गयीं .न किसी की सेवा न कोई परेशानी .हाँ , उनके बच्चों को इस बात का संतोष  उनके पास थीं ,वरना ये मलाल रहता की मधुबनी जैसी छोटी जगह के कारण सही इलाज नही हुआ होगा .मौसी जैसी खुद थी ,वैसे ही संस्कार अपने बच्चो को दिया ,सादगी  एवम् सामाजिक ,मिलनसार लोग ।

मै बीमार हूँ ,ये सुन कर कोई दस दिनों पहले वो मुझ से मिलने आई थीं  बिलकुल पहले जैसी.अपनी कडक बौडर वाली तांत की साड़ी  में .,बेहद प्यारी लग रही थीं. अब मौसी कभी नही मिलेगी .न कोई रोग न वैसी बीमारी .मै कैसे मान लूँ ? की अब वो नही रही .सब कुछ इतना चटपट हो गया की मै  इतने पास रह कर भी उनके अंतिम दर्शन नही कर पाई .    
   

मौसी  की मै किस –किस  बात याद करूं?वो थीं ऐसी की हम सबों के पास यादों का खजाना है . हर अवसर पर हमारे  लिए चूड़ी –कंगन ,एकदम सही नाप ,सुंदर रंग डिजाईन, देखते ही पसंद आने वाली .धर के लिए निमकी खजूर ,मिठाई जब जैसा बन पड़े ,अपने हाथों ,इतना कुछ बनाना ,फिर साड़ी –चूड़ी की मार्केटिग ,जाने कैसे करती होंगी

हर अवसर पर पहुंचना ,और कोई भी काम ,चाहे परोसना हो  या बनाना ,हाथ बटाने को तत्पर रहती थीं .एकादशी जाग के मौके पर उन्हें गाते सुना था ,कितने तो भजन उन्हें याद थे ,रात भर भजनों का सिलसिला चलता रहा मौसी साथ देती रहीं .सवेरे वैसी ही फिट ,इन दिनों उन्हें फेसबुक पर देखती थी ,स्मार्ट मौसी ,लुक से भी , वर्क से भी ,जमाने के साथ चलने वाली  .उनकी उम्र की महिलाएं जहाँ मोबाईल को सिर्फ सुनने-बोलने की चीज समझती हैं ,वहीं वो पसंद के विषयों पर अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपनी सक्रियता का एहसास कराने वाली मौसी !मुझे बड़ा अच्छा लगता था .कुछ दिनों पहले उन्होंने ,मेरे शेयर किये विषय को लाईक किया था .इतनी एक्टिव ,मै भगवान से पूछती हूँ .क्यों ले गये उन्हें ?

हम महिलाएं ,जिनकी दिनचर्या पति के इर्दगिर्द घुमती है .
हमारे लिए अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद {,जैसा नुनु मामा ,देते है },मायने रखता है .अंतिम वार भी वो मुझे सुहाग की निशानी ,चूड़ी –सिदुर दे कर गयीं . जिन्दगी भर सौभाग्य चिह बाँटने वाली मौसी को भगवान ने उचित सदगति दी.अखंड सौभाग्य के साथ वो परलोक गई .जरुर कोई पुनात्मा थीं ,जिन्हें बिना कष्ट –दुःख के सहज मुक्ति मिली ,

Thursday, April 14, 2016

आखिर कब तक?

आप हैदराबाद में वेमुला को आत्महत्या के लिये मजबूर करते हैं ।आप बाड़मेर में डेल्टा की हत्या करते हैं ।
दोनों दलित वर्ग के प्रतिभावान युवा थे।बल्कि डेल्टा के पिता ने अपनी लाड़ली की बहुमुखी प्रतिभा को भांप कर उसका नाम डेल्टा रखा था,नहर से निकली अजस्र धाराएं।  डेल्टा मार दी गई है,अब उसके चरित्र पर ऊँगली उठा कर, उसके परिवार को मानसिक रूप ,प्रताड़ित करने की साजिश है। क्षेत्र की लड़कियों ने इस वार अभी तक स्कुलो में नामांकन नही कराया  है ।यह खबर   बेशक,उनको  अच्छी लगेगी ,जिन्होंने यह  कुकृत्य किया ,करवाया होगा ।लेकिन कोई भ्रम में न रहें ,यह क्षणिक आतंक का प्रभाव है ।क्यों की उधर हैदराबाद ,इधर बाड़मेर ,लहर चल पड़ी है । बाड़मेर जैसे सुदूर स्थान में रह रहे मध्यमवर्ग के वासी ने व्यापार के लिए नही,अपने तीन बच्चों की शिक्षा के लिए बैंक से अठारह लाख का कर्ज लिया । क्या यही वो कदम नही है,जो जागरूकता की ओर उठ चुके हैं ।इन्हें रोक सको, तो रोक लो।