Sunday, July 29, 2018

चंगुल मे।

सुबह के 9:00 बजे हैं अभी मैं एम्स में हूं  ।पिछले पांच सालों से  मेरा इलाज चल रहा है । इन पाँच   साल मे मरीजों की संख्या मे चौगुना बढ़ौतरी हुई है। चारों ओर लोगों का रेला है चल रहा है।किसी को लाइन में लगना है, किसी को कमरा नंबर पता करना है, कोई अपने डॉक्टर का कमरा ढूंढ रहा है। इसे अफरा-तफरी ,ठेलम ठेला , धक्का मुक्की  जो भी चाहे कह  लेंं । लेकिन यह रोज का दृश्य है जबकि यहां तैनात सुरक्षाकर्मी काफी सहयोग करते हैं शायद उन्हें खास हिदायत दी जाती  होगी , कि उन्हें मरीजों और मरीजों के परेशान परिजनों  के बीच काम करना है  ।
मरीजों मे सबसे ज्यादा संख्या बिहारियों की है। सब मरीज बिहार के डॉक्टरों द्वारा बिगाड़े  हुए केस हैं । ये ईलाज के नाम पर मरीजों का खून चूसने का काम करते हैं ।जब सारे पैसे ख़त्म ना हो गलत इलाज चलता रहता है। जब  तक मरीज मर्णासन और कंगाल न हो जाए ।बिहारी
 अभी भी  पर्यटन के नाम पर   तीर्थ यात्रा करते हैं। दिल्ली का एम्स बिहारियों के लिए तीर्थ से कम नहीं है है। एम्स के डॉक्टर उनके लिए भगवान हैं   चाहे मरीजों से  बीमारी के बारे में  पूछने का रवैया  या दवाई लिखने की बात 
सस्ती और  सही दवा।
प्राइवेट में  डॉक्टर  बिना  जरूरत  ढेर सारी दवाइयां लिख देते हैं  क्योंकि  उन्हें कमीशन मिलता है  मंहगे टेस्ट करवाने को बोल देते हैं ।
पता नहीं  दिल्ली के एम्स के डॉक्टर  किस कुएं से पानी भी पीते हैं  और बिहार के डॉक्टर  किस कुएं का पानी पीते हैं । यहां डॉक्टर भगवान बन जाते हैं  और वहां के डॉक्टर  शैतान ।  मरीजों के पैसे से पैसे से आबाद हुए ये डॉक्टर आलीशान मकान मे रहते हैं।    डॉक्टर पिता की भुसकौल संतान ,क्लीनिक को चलाने के लिए डोनेशन देकर डॉक्टर बने ये लोग  मरीजों का खून चूस कर ही क्लिनिक चलते हैंं ।सालों से पटना में एम्स बनने की खबर सुन रही हूं  अगर बना भी हो तो वो विश्वस नहीं जमा है ।ये नेताओं की हवा हवाई है ।हमारी तकदीर में यही धक्का-मुक्की लिखा है ।अपने खून पसीने की कमाई डॉक्टरों के आगे उझल कर  आ जाते हैं। शायद पिछले जन्म का कोई कर्ज हो । मरीज बर्बाद हो रहे हैं डॉ आबाद हो रहे हैं। न  जाने कब  बिहार के डॉक्टरों की अंतरात्मा जागेगी और वो मरीजों का भला सोचेंगे ।
हे भगवान मुझे माफ करो मैं धरती के भगवान उकी शिकायत कर रही हूं ।लेकिन यह मेरी मजबूरी है क्योंकि  आपने उन्हें भगवान बना कर भेजा ,फिर वे शैतान क्यों बन गए?  हाँ ,अभी भी कुछ अच्छे और ईमानदार डॉक्टर हैं।मेरे इस आलेख से उन्हें ठेस पहुंची हो तो मैं क्षमा चाहुँगी। लेकिन सच्चाई यही है।

Wednesday, July 11, 2018

रंगमंच से

छोटे शहरों में अभी भी मनोरंजन के नाम पर फिल्में ही देखी जाती हैं चाहे वह हॉल में हो या TV पर इसलिए दिल्ली में नुक्कड़ नाटकों से जुड़ी कोमिता से मिली तो बातों ही बातों में मैंने उससे कहा मैंने अभी तक कोई बढ़िया नाटक नहीं देखा तो उसने ज्योती डोगरा की एकल मंचन वाली  नाटक देखने को कहा यह नाटक छतरपुर में होना था शायद सारे लोग दिल्ली की कलाजगत से जुड़े    लोग थे ।पूरा माहौल काफी कलात्मक लग रहा था हल्का प्रकाश और मोमबत्तियों की जगमगाहट, हॉल  खचाखच भरा था । इस फास्ट फास्ट जमाने में इत्तमिनान से नाटक शुरू हुआ काफी लंबा  सांसों के उतार-चढ़ाव से शुरू हुआ उनका नाटक,दर्शक दम साधे नाटक देख रहे ।  विषय चाय था ।एक चाय के इतने आयाम हो सकते हैं? सोचा न था दर्शक भले अभिजात्य वर्ग के थे  लेकिन प्रसंग दिल्ली के मध्यम वर्ग से जुड़े थे।
नाटक देखने के बाद यही ख्याल आया दूध की उम्मीद में मेरे हाथ में मलाई आ गई ।नाटक के बारे में सिर्फ एक शब्द अद्भुत  ! चाहे वह अभिनय हो, परिकल्पना हो, मंच पर प्रकाश का प्रयोग हो बल्कि पूरी तरह  प्रयोग शाला  थी ।कहने को यह एकल अभिनय था लेकिन दर्शकों को साथ समेटते हुए उन्हें भागीदार बना कर । कुछ तो बात थी। पर हां, दर्शक  भी खास थे ।  विलक्षण कलाकार हैं ज्योति डोगरा जी।   एक अकेली महिला ने इतने रूप धरे , सब के सब हमारे आसपास के लोग  सारा कुछ हमारा देखा-सुना था पर सिर्फ आवाज से वैसा  माहौल बनाना कला है ।  दर्शक आत्मसात कर रहे r लगा   अगल बगल के परिवेश को खुद जिया हो बारीक से बारीक भाव भंगिमा।   चाहे औरत  की कुंठा हो,   या बुढापे की त्रासदी ,बदली आवाज़।  हमें पीछे की कुर्सियां मिली जब वह बैठ जाती थी ,हमें कुछ नहीं दिखता था उस समय में लगता था हम रेडियो सुन रहे हो रेडियो नाटक ! लेकिन फिर भी जो प्रभाव था उनकी आवाज की वजह से वह तारत्म्य बना रहा इतने सुंदर अभिनय के लिए मैं उन्हें बधाई देती हूं और शुभकामनाएं देती हूं

Tuesday, July 10, 2018

क्या फायदा ?

आधुनिकता ने हमे दो चीजों का श्राप दिया है।बाहरी तौर पर प्रदूषण और भीतर से तनाव और डिप्रेसन ।  !अब डाक्टर भी कहते पाए जाते हैं कि हर बीमारी की जड़ यही नासपीटा तनाव है। यहां तक कि फोड़े फुंसी भी ?
कैसे  ,कैसे  ,कैसे ?
वो ऐसे ,की जब कोइ राज आप अपने भीतर  छुपा कर रखते हैं ।जाहिर हैअब कम ही लोग खुले दिल के होते हैं । इसलिए हर चीज की तरह  कुछ दिनों में ये भी सड़ने लगतीं  हैंं  । शायद  यही वो  वजह हो सकती है ।
 अलबत्ता,टेंसन नही लेने का ,बिंदास रहने का,टेंसन देने का,लेने का नही ,जुमले खूब उछाले जाते हैं, दुकान में   आकाश छूती मंहगाई की बात  पर  दुकानदार झट से कहेगा आप इसकी 'टेंसन मत' लो जी ।
भैया पैसे मुझे देने हैं टेंसन कैसे न् लूं?
कुछ मामलों में टेंसन हो ही जाती है ।
आपने खूब मेहनत कर सुख सुविधा के सभी साधन  जमा कर लिए। सोचा होगा अब  चैन से रहेंगे, कोई टेंसन नही होगा।लेकिन  सुबह सुबह जब काम  वाली बाई नही आती है ,उस समय की बैचैनी याद है?
 तो पूरे दिन टेंसन टेंसन  टेंसन 
ऐसे ही आप की टेंसन की कई वजहें ड्राईवर ,गार्ड वगैरा होती हैं।
बच्चे स्कूल से लौटते हैं।
कहीं बैग,कहीं जूते, सबसे पहले टी.वी.खोल कर बैठ जाते हैं।
झुँ   झुँ   झुँ    झुंझुलाहट।
 ऐसे टेंसन के मौक़े आते रहेंगे,बस कोशिश करें इन मौके पर कूल बने रहें।बच्चे बैग,जूते फेकेंगे ही, उठाना आपका काम है।अबतक नही सिखाया तो कभी नही सीखेंगे। बच्चों के साथ आप भी  टी वी देखें।
पतिदेव शाम को शॉपिंग का वादा कर के नहीं आते हैं।
गु    गु    गु  गुस्सा।
आज नहीं तो कल उन्ही के  साथ शॉपिंग करना है। इस गलती का फायदा उठाने का मौका नहीं चूकें। आईस क्रीम की फरमाइश करें ।क्यों क्या की ओर मन को न लगाएं , गुस्से की दहक कम होगी।

अथ् टेंसन गाथा

आधुनिकता ने हमे दो चीजों का श्राप दिया है।बाहरी तौर पर प्रदूषण और भीतर से तनाव और डिप्रेसन ।  !अब डाक्टर भी कहते पाए जाते हैं कि हर बीमारी की जड़ यही नासपीटा तनाव है। यहां तक कि फोड़े फुंसी भी ?
कैसे  ,कैसे  ,कैसे ?
वो ऐसे ,की जब कोइ राज आप अपने भीतर  छुपा कर रखते हैं ।जाहिर हैअब कम ही लोग खुले दिल के होते हैं । इसलिए हर चीज की तरह  कुछ दिनों में ये भी सड़ने लगतीं  हैंं  । शायद  यही वो  वजह हो सकती है ।
 अलबत्ता,टेंसन नही लेने का ,बिंदास रहने का,टेंसन देने का,लेने का नही ,जुमले खूब उछाले जाते हैं, दुकान में   आकाश छूती मंहगाई की बात  पर  दुकानदार झट से कहेगा आप इसकी 'टेंसन मत' लो जी ।
भैया पैसे मुझे देने हैं टेंसन कैसे न् लूं?
कुछ मामलों में टेंसन हो ही जाती है ।
आपने खूब मेहनत कर सुख सुविधा के सभी साधन  जमा कर लिए। सोचा होगा अब  चैन से रहेंगे, कोई टेंसन नही होगा।लेकिन  सुबह सुबह जब काम  वाली बाई नही आती है ,उस समय की बैचैनी याद है? 
 तो पूरे दिन टेंसन टेंसन  टेंसन 
ऐसे ही आप की टेंसन की कई वजहें ड्राईवर ,गार्ड वगैरा होती हैं।
बच्चे स्कूल से लौटते हैं।
कहीं बैग,कहीं जूते, सबसे पहले टी.वी.खोल कर बैठ जाते हैं।
झुँ   झुँ   झुँ    झुंझुलाहट।
 ऐसे टेंसन के मौक़े आते रहेंगे,बस कोशिश करें इन मौके पर कूल बने रहें।बच्चे बैग,जूते फेकेंगे ही, उठाना आपका काम है।अबतक नही सिखाया तो कभी नही सीखेंगे। बच्चों के साथ आप भी  टी वी देखें।
पतिदेव शाम को शॉपिंग का वादा कर के नहीं आते हैं।
गु    गु    गु  गुस्सा।
आज नहीं तो कल उन्ही के  साथ शॉपिंग करना है। इस गलती का फायदा उठाने का मौका नहीं चूकें। आईस क्रीम की फरमाइश करें ।क्यों क्या की ओर मन को न लगाएं , गुस्से की दहक कम होगी।

Thursday, July 5, 2018

रेलगाड़ी

कहीं पर्यटन पर जा रहे हों और सफर की शुरूआत लंबी दूरी की ट्रेन से हो तो आनंद आ जाता है बिना किसी बाधा विघ्न के इतनी अच्छी नींद तो होटल के कमरे में भी नहीं आती है सुबह की चाय के लिए बैरा घंटी बजा  ही देता है न मॉर्निंग वॉक की झंझट और ना टाइम पर चाय पीने की मजबूरी इतनी चैन की नींद ट्रेन मे ही संभव होती है । खिड़की के पास वाली सीट भाग्य वालों को मिलती है अगर सामने वाले बर्थ के सहयात्री का चेहरा पसंद ना हो तो भी खिड़की वाली सीट काफी राहत देती है। रंगों की अलग-अलग छटा देखनी है तो फसल के समय में दिखती है रंग चाहे हरा हो या पीला ।सरसों के खेत का पीलापन ,रंगों के इतने बारीक अंतर आपको कहीं नहीं मिलेंगे भारत एकता में अनेकता का देश है इसका अनुभव आपको रेल यात्रा में मिलेगा ।  हर 7 कोस पर बोली और पानी बदलती है यह साक्षात दिखता है , स्थानीय लोगों की भाषा ,पहनावा आहिस्ते आहिस्ते बदल जाती है ।एक ही हिंदी उसके कई रूप सुनने को मिलेंगे हैं  आप किस इलाके में है ये वहाँ के लोगों को  देख कर समझ जाऐंगें ।लोग चढ़ते हैं उतरते हैं, बातें करते हैं नए नए चेहरों को देखना एक अलग  अनुभव प्रदान करता है ।अगर आप उत्तर भारत से दक्षिण भारत की तरफ जा रहे हों तो आश्चर्य लगता है संस्कृति  मे इतना अंतर ,धीरे-धीरे भाषा की पकड़ एकदम कमजोर होने लगती है कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता है लेकिन पैसे की भाषा सब जगह चलती  है  ।    AC के अंदर से  देखना ,लगता है जैसे हम TV देख रहे हों तेजी से बदलते दृश्य आपको पलक झपकाने का मौका नहीं देती है। सफर करने के दौरान आपको लगेगा कि भारतीय रेल भारत की लाइफ लाइन है सस्ती भी है और आरामदायक भी है।

Wednesday, July 4, 2018

कमप्यूटर बच्चे

-लगता है आजकल बच्चों की मेधा शक्ति बढ़ गई है।दिमाग कमप्युटर बन गया है। और कमपयूटर का साथ मिले तो नतीजा सामने है।बहुत बधाई रिषभ कृष्णा को, जिसने अपने पहले प्रयास में ही देश के प्रतिष्ठित परीक्षाओं में से एक UPबहुतSC के Central Armed Police Forceठs की परीक्षा में 40वां  स्थान पाया है। पूरे भागलपुर को उस पर गर्व है ।उसकी सफलता इसलिए भी खास है कि बिना किसी प्रोफेसनल कोचिंग के  उसने खुद घर मे रह कर इसकी तैयारी की।कमरे मे वो और उसका कम्प्यूटर। यह एक तपस्या थी इसमे माँँ निभा  जी और पापा  कृष्ण मुरारी जी का भरपूर सहयोग मिला क्योंकि अच्छे कौलेज से इन्जिनीयरिंग करने के बावजूद उसनें नौकरी नहींं की। अच्छी नौकरी के मौके ठुकरा दिये , क्योंकि   उसमें देश सेवा का जज्बा था इसलिए उसने प्रशासनिक सेवा में जाने का मन बनाया । रिषभ की सफलता उन विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो किसी कारणवश बाहर बड़े शहरों में  नहीं जा पाते हैं।  लेकिन अगर दृढ़ इच्छाशक्ति आपके पास हो तो आपकी सफलता को कोई रोक नहीं सकता है।