उकेरती हूँ, रंगों से अंतर्मन,
रंगों की अनोखी दुनिया।
कुछ बोलते से रंग,
हर भाव का अपना रंग।
रंगों से अठखेलियां करती,भावनाएं ।
स्याह सफेद,शोख मटमैले से रंग।
कोई पूछे तो सही
जीवन मे स्याह इतना फैला सा क्यों है?
सफेद इतना चौधियाता कैसे है।
शोख रंगों की गहराइयों में डूबता ये मन
मटमैले रंगों से किनारा करता ये मन ।
लाल रंग से लहू लुहान होता कभी,
मन बसन्ती हो जाता ये मन।
कभी हरियाली फैलता ये मन ।
कभी रंग जोगिया में खो जाता ये मन ।
रंगों से उकेरती हूँ अंतर्मन ।