Monday, April 24, 2023

हक दें,इज्जत के साथ

 हमारे समाज में शिक्षक का बहुत आदर किया जाता है विश्वविद्यालय प्रोफेसरों की एक गरिमा होती है।जिन्होंने समाज को ज्ञान दिया है हम उन्हे सम्मान देते हैं। लेकिन भागलपुर विश्वविद्यालय के कुछ सेवानिवृत्त प्रोफेसरों को अपनी पेंशन के लिए यूनिवर्सिटी कार्यालय के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, उन्हे टेबल दर टेबल भटकना पड़ रहा है,यह कैसी त्रासदी है? जिन्होंने ज्ञानदान दिया,बदले में उन्हे क्या मिला?

कार्यालय के स्टाफ जिन्हें उन्होंने कभी पढ़ाया था,उनके दया के पात्र बने हुए हैं,वो भी बेचारे क्या करें,नौकरी के नियमों से बंधे हैं।
जब ये बुजुर्ग शिक्षक धूप में पसीने से लथपथ कार्यालय में दिखते हैं तो उनकी दुर्गति पर रोना आता है।
मुख्यालय में कई ऐसे, वरिष्ठ सेवा निवृत्त शिक्षक है जो सेवा निवृत होने के बावजूद पेंशन के लिए शहर छोड़ नहीं सकते।अपने एक परिचित रिटायर्ड प्रोफेसर दंपत्ति की इस व्यथा मैंने करीब से देखा है ,बच्चे साथ नहीं होते,जिसने जीवनभर सेवा की, अब उनकी सेवा कौन करे? एक तो वृद्धावस्था, बीमार तन ,उपर से विश्वविद्यालय का ऐसा अमानवीय रवैया,उनका मन व्यथित रहता है।
आखिर कोई भी इंसान नौकरी क्यों करता है ?अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए,लेकिन जब कमाए हुए पैसे नहीं मिले तो क्या करे? यह अन्याय है !अब तक जो कमाया था बच्चों को लायक बनाने में खर्च हो गए, सेवा निवृत्ति के बाद मिलने वाला धन ही उसके अपने लिए होता है, उसके बुढ़ापे का सहारा।
लोग पहले से योजना बना लेते हैं , जो पैसे मिलेंगे उनसे मकान बनवाऐंगे या अपने इलाज के लिए खर्च करेंगे।जिनके पास मकान नहीं है वो अब क्या करेंगे?पेंशन के बिना न किराया देना संभव और न कहीं जाना।कई लोग अपने बच्चों के पास जाना चाहते हैं, कोई गांव में घर बनवाना चाहते हैं ,लेकिन इस अनिश्चिता ने उन्हें बीमार कर डाला है। कईयों को तीर्थ करना था।
सबों की योजना धरी पड़ी हैं।
इन परिस्थितियों को देख कर,
संबंधित अधिकारियों से करबद्ध प्रार्थना हैं ,कि जिन्होनें अपना पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया , शहर के गणमान्य नागरिक रह चुके हैं ,
उन्होने जिस गरिमा के साथ जीवन बिताया है ,उसे कम न होने दें ,इन्हें इनका देय,अविलम्ब उपलब्ध करवाने की कृपा करें।

Thursday, April 20, 2023

हत्यारों की सोच

 मारना कितना आसान है।    

जेब से पिस्तौल निकाली और मार दी गोली।सब देखते रह गए अगर आदमी अपनी जान की परवाह किए बिना ठान ले  तो किसी को मारने से कोई रोक नहीं सकता, देख कर लगता है भारत में मौत ऐसी ही सस्ती हो गई है, शायद नहीं। जिस अतीक की सुरक्षा पर करोडों रूपए खर्च हुए थे , दो दो जिलों की पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था दांव पर थी क्योंकि अतीक को अपनी  जान पर खतरा लग रहा था ,उसकी आशंका सही निकली ,सारी सुरक्षा व्यवस्था धरी की धरी रह गई। तीन  युवाओं ने बड़े आराम से गोली मारी ,किसी पुलिस वाले ने जवाब में गोली नहीं चलाई बल्कि वे अपने आपको बचाने में लगे रहे फिर हत्यारों ने अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया ,देखते ही देखते सब कुछ हो गया ,लगता है जैसे सारा कुछ सुनियोजित हो ,यही कि तुम किसी तरह मार डालो तुम्हारी   जान की सुरक्षा हम देख लेंगे बेशक इस दुस्साहसिक घटना की  जांच की जा रही होगी, लेकिन एक और पहलू है जिस पर ध्यान देना चाहिए,वो है हत्यारों की सोच का। क्या सोच हत्यारों की रही होगी,जबकि हत्यारों की  परिवारिक पृष्ठभूमि भी आपराधिक नहीं रही हैं, ना ही वे किसी संगठन से जुड़े अपराधी थे, अपराध की इतनी बड़ी घटना को अंजाम देना उनके वश का नहीं होगा   थे जेहादी नहीं थे जिन्हे  बचपन से ही जान देना सिखाया जाता है  फिर इन युवा लड़कों की ऐसी कौन सी सोच थी जिसके तहत तीन अलग अलग क्षेत्र के लोग मिल कर एक खूंखार की हत्या के लिए तैयार हो जाते है?गौर तलब है की। हो सकता था उसमे  वे मारे भी जा सकते थे ऐसे में पैसा भी कोई मायने नहीं   रखता उनके पारिवारिक रिश्ते भी ऐसे नही थे क्योंकि घरवालों ने उन्हे छोड़ रखा था।ऐसे में उनकी इस सोच से देश के उन युवाओं की सोच का पता चलेगा जो किन परिस्थितियों मे  ये राह से भटके युवक इतना बड़ा दुस्साहसिक कदम उठाने को तैयार हो गए।अगर वे किसी तरह सजा से बच  गए तो यह हमारी न्याय व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह जरूर होगा।

Sunday, April 16, 2023

हाय !हम डिजिटल हो गए ।

 हाय हम डिजिटल हो गए ।

ऐ बिहार की जनता तुमने खूब जातिवाद कर ली ,अब लो भुगतो ,सरकार ने तुम्हारी कोडिंग कर दी है ।अब बिहार सरकार ने जातिगत कोड जारी किया है,उसमे अपना नंबर याद कर लो , हां आसपास वालों के भी करना होगा ,मतलब उलझे रहो,इस डिजिट के चक्कर में।एक हमारा आधार नंबर पहले से मौजूद है अब ये दूसरा नंबर।ये
21वीं सदी जब से आया है तब से हमें डिजिटल करने की साजिश की जा रही है

पहले हमारे  घरों को डिजिटल किया गया,  फिर गलियों मुहल्लों को।
खुशी की बात है कि अभी तक हम अपने नाम से जाने जाते है,क्या पता कुछ दिनों बाद  शायद हम भी xyz कहाने लगें । 

पहले के पते कुछ यूं होते थे,असर गंज,टेढ़ी गली, मीठी नीम में,गुप्ता जी रहा करते थे, फिर हुआ A ब्लॉक में तीसरी गली अब जब गुप्ता जी को ढूंढना हो तो पता होता है,  नाम सेक्टर/11,बलॉक/b, रोड नंबर/6,क्वाटर नम्बर 13।
हे भगवान इतना पढ़कर तो कोई मैथ्स पास कर ले।

इम्तिहानों डिजिटल मुहावरे का मतलब पूछा जाएगा

प्रश्न कुछ यूं होगा,
100 /13 की ,और 1/194 की, 
का क्या  मतलब?
 उत्तर
(100 सुनार की 1 लोहार की ,)

कहानी होगी ,एक गांव में एक गरीब 126रहता था।उसका मित्र  95 था राह में उन्हे 13 और195 मिल गए।....…
अब पढ़ने वाला के दिमाग की दही न बन जाए तो समझें ।
लेकिन हम लोग भी अपनी आदतों को भला क्यों छोड़ें? जात तो हम पूछेंगे ही।

बिहार में आपके पड़ोस में कौन आया है जानने के लिए सीधा सपाट तरीका  है पूछते हैं ,आपके पड़ोस में  ,किस जात का आदमी आया है? आने वाले की हैसियत उसकी जात से जानी जाती है अगर आपने बताया कोई  सिंह जी हैं, तो उधर से कहा जाएगा ,

ई तो नाम में सिंह  लिखा है ,चालाक बनता है, ज़रा ठीक से पता लगाईये ये कहीं142,भैंसिया के सिंग तो नहीं है?

 सरकार लाख कोशिश कर ले हम नहीं सुधरे़गे।