जब से काका की पोस्टिंग शिलोंग हुई ,हम वहां जाने का मन बना रहे थे .लेकिन किसी न किसी वजह से हमा कार्यक्रम नहीं बन पा रहा था .आखिर इस अप्रैल के दुसरे सप्ताह में हमारा प्रोग्राम बन ही गया .
हम इस लिए भी शिलोंग जाना चाहते थे क्योंकि उसका रास्ता गुवाहाटी हो कर है और गुवाहाटी में ही जग प्रसिघ्ह कामख्या देवी का मंदिर है .कामरूप कामख्या का वर्णन मैंने कई किताबों में पढ़ रखा था .और फिर हमारे मिथिलांचल में तो इस बारे में कई तरह की किम्वदंतियां प्रचलित हैं जैसे वहां की औरते बड़ी मायावी होती हैं जो बाहरी आदमियों को कबूतर या भेदा बना के अपने पास रख लेती हैं .इस लिए जो एक बार कमाने के लिए आसाम जाता था लौट के कम ही आता था . लोक गीतों में प्रचलित मोरंग भी वही जगह है .
वहाँ की महिलाएं सचमुच मोहक हैं ,अपने पारम्परिक पोषक में तो वो और भी मोहक लगती हैं .(मंदिर प्रांगन में ढेर सारे कबूतर और भेड़ें थे क्या वो सभी बिहारी मजदुर ही रहे होंगे ?)
मंदिर की बनावट खास कर के उसका गर्भ गृह रोमांचित करता है .वास्तव में देख कर लगता है की यह जगह औघड़ों की साधना के लिए उप युक्त है .वैसे तो पुरे मंदिर में बिजली की व्यवस्था है,लेकिन गर्भगृह में कोई बल्व नहीं लगाया गया है इससे उस जगह की रहस्यात्मकता को बरकरार रखा गया है .इस से एक स्र्ध्हा का माहौल बनता है .
गुवाहाटी जा कर अगर गेंडा नहीं देखा तो क्या देखा .हमने भी उसे उसके अभ्यारण्य में
जा कर, पास से देखा .गेंदा देखने हम लोग हाथी परचढ़ कर गए थे यह भी हमारे लिए एक नया अनुभव था .
पता नहीं गेंदे जैसे निरीह प्राणी को देखने के लिए लोग हाथी पर चढ़ कर क्यों जाते हैं ?फिर वो तो बेचारा शाकाहारी भी होता है .इतनी मोटी चमड़ी ,इतना विशाल शरीर ,लेकिन हाव -भाव और मुद्रा से बड़े मासूम और भोले लगते हैं मुझे तो बड़े प्यारे लगे .उनकी इतनी बड़ी संख्या देख कर सोचने लगी कही यहाँ भी कुछ माया का चक्कर तो नहीं ?