Monday, March 25, 2013

चासनाला की होली

जब भी होली का त्यौहार आता है ,हमे चासनाला में बिताई होली जरुर याद आती है .कोई होली ऐसी नहीं होती जब हम अपने बाबूजी को याद नहीं करते .होली के दिन ,बाबूजी सुबह -सुबह सिलबट्टा ले कर बैठ जाते थे .भांग घोंटने का पूरा काम वे खुद ही करते थे .भारी शरीर की वजह से उन्हें पालथी मार कर बैठना पड़ता था लेकिन ये मुश्किल काम भी वे खुद ही करते थे .माँ को दही वडा के लिए उड़द की दाल पीसना होता था ,मीट का मसाला तैयार करना होता था .लेकिन वो सब बाद में ,पहले बाबूजी का भांग जरुरी होता था ,फिर भंग घोलने की तयारी होती थी ,उसमे दूध -चीनी ,ठंडई मसाला वगैरा डाल कर लोहे की एक पूरी बाल्टी भांग तैयार की जाती थी .फिर वो कुर्ता -वुरता पहन कर होली खेलने को तैयार हो जाते थे .उधर न तो मिक्सी न गैस पता नहीं माँ कैसे मैनेज करती थी सुबह से कोयले के चूल्हे पर पकवान बनना शुरू हो जाता था .पुतुल दी माँ की मदद करती थी .लेकिन मै शुरू से निकम्मी हूँ .मेरा समय पलाश के फूलों से रंग बनाने में बीतता था .लेकिन हमें नास्ते में नीम बैगन की भुजिया ,गरमा -गरम मालपुआ ,दही वडा खाने को मिल जाता था .ये सारे काम ग्यारह बजे के पहले निबटाना होता था क्योकि उसके बाद होली की टोली के आने का समय हो जाता था .सब सपरिवार होली खेलने को निकलते थे .रंग -अबीर -गुलाल सब एक साथ खेलते थे ,साथ में खाना पीना भी चलता रहता था .सब अपन्रे घर के सामने पकवानों के साथ निकलते थे .बाबूजी भंग की बाल्टी लिए तैयार रहते थे .हमारे यहाँ की भांग मसहूर थी सब को पकड़ -पकड़ कर भांग पिलाया जाता था .लोग डरते भी थे कंही ज्यादा नशा तो नहीं हो जायेगा ,लेकिन बाबूजी आग्रह के साथ पिलाते थे ,ये बोल कर की कुछ नहीं होगा . अंत में सब कभी सटर डे क्लब या एरिया मैनेजर के बंगले पर पहुँचते थे .फिर वहां महा -होली खेली जाती थी .यानी सबको पकड़ के पानी के चभच्चे में डुबाया जाता था . या फिर पाइप से पानी के फुहार से सबको भिंगोया जाता था दिन के एक या दो बजे सब घर लौटते थे .हम लोग तो नहाने रंग छुड़ाने में लगते थे .माँ लेकिन आते ही मीट बनाने की तैयारी में लग जाती थी .मसाला वगैरा पहले से तैयार होता था .जब तक सब नहा -धों कर आते थे मीट -भात तैयार हो जाता था .घूम -घूम कर उतना खाने के बाद भी .हम जम कर खाते थे फिर शाम से बाहरी लोगों का आना शुरू हो जाता था .उस बीच अगर किसी को भांग चढ़ गयी तो बाबूजी उन्हें सम्हालने में लग जाते थे .फिर तरह तरह के किस्से .पुरे दिन का विवरण किसने कितना खाया ,किसने कितना पीया . मुझे लगता है जिसने भी चासनाला -ऑफिसर कॉलोनी की होली खेली होगी ,उसे जिंदगी भर याद रहेगी .और हर साल उसकी चर्चा होती होगी .इतनी बढ़िया साफ -सुथरी ,सामूहिक होली अब कहाँ खेली जाती है।.