Thursday, August 31, 2023

गाम आऊ न

 मैथिल मोनक उद् गार


हम बसै छी, दिल्ली बम्बई,

मोन बसईयै  मिथिले में !

चलु रे भैया,चलु यै बहिना, 

गाम चलु अहि छुट्टी में,


 दुर्गा पूजा में हम जबै,

मा़ं दुर्गा के दर्शन करबै,

मैया सं हम आशीष मंगबै।

और मैया के भोग लगेबै।

        लड्डू,पेड़ा और जिलेबी।                          तखन उपर सं पान मखान  ।


चलु रे भैया,चलु यै बहिना, 

गाम चलु अहि छुट्टी में,


गामक मेला नीक लगैया,

पाव भाजी सं मोन घुमैया

ऐतय ने भेटय मुड़ही कचरी,

    माछ भातक दोकान कहां,


चलु रे भैया,चलु यै बहिना, 

गाम चलु अहि छुट्टी में,


,माईक कोर सन अप्पन मिथिला,

आन कतहु ने चैन  भेटैया ।

अप्पन भाषा अप्पन बोली,

सुनितहि होईयै हर्षित प्राण।


चलु रे भैया,चलु यै बहिना, 

गाम चलु अहि छुट्टी में।


दुर्गा पूजा आबि रहल अछि,सबगोटे गाम चलै चलू,

एखन आहां गाम के छोड़ने छी,बाद में गाम आहां के छोड़ि देत। अपन गाम घर के,ओगरि क राखू,ई अप्पन घरोहरि थिक,अप्पन सुंदर संस्कृति विनाशक कगार पर अछि एकरा सम्हारय के भार हमरे सब पर अछि।सम्हारु ने!



Wednesday, August 30, 2023

कोटा का सचं क्या है?

 कोटा में फंदा क्यों?


कोटा में ये हो क्या रहा है? पिछले 24 घंटों में दो बच्चों ने अपनी जान दे दी, ऐसा आए दिन हो रहा है, क्या इसकी गहराई से जांच नहीं होनी चाहिए?

बच्चों के कोमल दिल पर कैसा खौफ डाला जा रहा है?

सच्चाई थोड़ी कटू है पर सही है।

इसमें अविभावक भी शामिल हैं।क्या आप जानते हैं मानसिक प्रताड़ना की कीमत पर मिली सफलता को क्या बच्चा सहजता से लेगा?

हम अपनी महत्वाकांक्षा बच्चों से पूरी करवाना चाहते हैं, बिना ये समझे कि मेरा बच्चा कितने पानी में है।

 सब बच्चे एक समान नहीं होते, लेकिन आप एक सफल बच्चा चाहते हैं जो आपकी रुचि के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाए ।

साहित्यिक रुचि के बच्चे को  विज्ञान पढ़ाना उसकी स्वाभाविक प्रतिभा को दबाना होगा। 

अपने माता पिता के अरमानों के बोझ तले कोटा पहुंचने वाले बच्चों को ये गिद्ध कोचिंग वाले ,फीस तो सबसे एक जैसा लेते हैं पर बाद में ,सभी बच्चों को बारिकी से जांचते हैं उनमें से मेघावी बच्चों को चुन लिया जाता है(जो वैसे भी सफल हो ही जाते)बाकी अभागों को भेड़ बकरियों के समान हांका जाता है।

कमजोर पर मेहनत कौन करे ?

हीन भावना से भरे ये बच्चे, जो हो सकता है कुशल शिक्षक के हाथों बन भी जाते , मगर  बिना सही पढ़ाई के पिछड़ते जाते हैं,एक के  बाद एक परीक्षा  में कम नंबर लाते लाते अंततः हताश हो जाते हैं, इनमें से जो अधिक संवेदनशील होते हैं या जिन पर ज्याद दबाव होता है वो लौटने से बेहतर मरना पसंद करते हैं।सवाल माता पिता से है,आप क्या पसंद करेंगे ? 

आपका बच्चा उन तेज तर्रार बच्चों के बीच भोंदू बनकर रहे ?


 या आपका औसत प्रतिभावान बच्चा जो संवेदनशील भी है, अपने शहर में आपके साथ रह कर  अपनी पसंद का विषय लेकर पढ़ाई करे ?

बच्चा दो पैसा कम कमाएगा,पास तो होगा।

अंत में 

ओ कोटा जाने वाले बच्चे ,हो सके तो लौट के आना।

Thursday, June 8, 2023

आमहि आम

 आमक महिमा 

एखन आमक समय चलि रहल अछि .आमक नाम लिय त गाम मोन पडैत अछि आ गाम क नाम लिय त आम ! सेब -समतोला लोग खेलक नई खेलक कोनो बात नई ,प्राय लोग डाक्टरे के कहला पर खाईत अछि \मुदा आम,कतबो महग हुए लोग खाईते टा अछि ,मोनक संतुष्टि के,के कहै ,अत्मा तक तृप्त भ जाईत छईक |

जे जन सुतली अन्हरिया राति में ,बिहाड़ी एला पर ,गाछी कलम में आम बिछय गेल होथिन हुनका सब के एकर आनन्द आजीवन मोन रहतनि |

अहि प्रसंग में विशेष ई जे लोग अप्पन कलम मे पाछु काल ,

दोसर के कलम में पहिने जईत छल |

दोसर दिन बाबी,पीसी ,काकी सब गोटे टिकुला सोही सोहि आमिल बनब में बेहाल भेल रहैत छलखिन |

अपना सब दिस आमक विविधता सेहो प्रस्सन करय बला अछि ओ लोकनी दसहरी आ लंगड़ा खा क तृप्त भ जाईत छथि |जखन की एम्हर बम्बई ,कृष्ण भोग ,करपुरिया मालदह ,सुगवा कलकतिया वगैरह कत्ते कही ,तहिना आमक तरह तरहक आचार ,कुच्चा ,फाड़ा भरुआ ,आ सबसँ विशेष अमोट ,जे बादो में थोड़े बहुत आमक कमी पूरा करैत छईक ,पेटक गरमी सेहो दूर होइत छैक .मतलब किछु बर्बाद नहि हेबाक चाही हम शहर में रहय वाला . .,आमक कतरा खाय वाला लोग के कहैत छियनी , गाम जे छोड़ि देलियई ई तकरे सजा अछि ,कम स कम आमक समय में अवश्य गाम आऊ कीनल फल त सब दिन खाईते छी ,एक बेर आम तोड़ि क खाउ ! . .

Sunday, May 28, 2023

आम तुम्हें प्रणाम

 इस बार भी आम नहीं फलेंगे,

गांव से फोन पर बात हो रही थी,उधर से देवर जी थे,
उन्होंने कहा क्या बताऊं, ऐसी जबरदस्त आंधी थी,तूफान की गति से हवा चली,आम की कौन कहे, पेड़ सहित जड़ से उखड़ गए।सारी फसल बर्बाद हो गई।सुनकर मन उदास हो गया ।
लगता है,आम नाम जान कर कहीं प्रकृति भी इसके साथ राजनीति करने लगी क्या?
सोचने लगी ऐसी विपत्ति आम पर ही क्यों आती है?
एक तो साल, दो साल में नानुकुर करके आम में मज्जर आते हैं,
सबसे पहले प्रचंड गर्मी इसके फूलों (मज्जर)को झुलसाती है।
उससे बचा तो इन दिनों बिन मौसम अचानक से खूब तेज हवाएं,आंधी पानी का झोंका आता है,इस समय आम इतने छोटे होते हैं की किसी काम के नहीं न अचार न चटनी अमिया असमय बर्बाद हो जाती हैं।और अंत में मौसम अपना मारक अस्त्र चलाता है,वो है ,ओला वृष्टि! जो थोड़े बहुत बचे रहते है ये ओलेराम ले डुबते हैं।
मतलब आप साल भर आम का नाम जपिए और राजा जी,यूं ही खाली हाथ टरका देते हैं।
यूं इस वार आम के दिनों में गांव जाने का मन बनाया था अपने बगीचे का ताजा आम खाए सालों बीत गए ,दरअसल हमारे इलाके में आम थोड़ी देर से पकते हैं तब तक बच्चों की छुट्टीया़ं खत्म हो जाती थी।लेकिन अब जब बच्चों की जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए तो सोचा चलकर आम खाया जाए ,पर हाय री किस्मत ,यहां तो आम ,खास क्या बनते, गायब ही हो गए।
गांव तो नहीं गई लेकिन काफी दिनों पहले जब हम आम के मौसम मैं गांव गए थे , उस समय की याद आ गई जब हम थोड़े छोटे थे।
सौभाग्य से हमारा परिवार काफी बड़ा है। गर्मियों की छुट्टी में सब सपरिवार गांव आ जाते थे, काफी बड़ा जमावड़ा हो जाता था।संयोग वश उस बार हमारे चाची जी का गौना हुआ था चाची पहली वार ससुराल आई थी और सबसे मजेदार बात ये थी की रिश्ते में चाची होते हुए भी हमारी हमउम्र थी,परिवार की सभी लड़कियों का ग्रुप नई दुल्हन चाची के इर्द गिर्द मंडराता रहता था बल्कि हमारा अड्डा चाची का कोहबर घर बन गया था।घर के लोगों ने भी हमें चाची का मन लगाने के नामपर छूट दे रखी थी। हम घरेलू कामों से मुक्त थे,सारा दिन ,बातचीत हंसी मजाक में बीत जाता ,आम का मौसम था इसलिए बगीचे से कभी एकाध कच्चा आम भी मिल जाता तो हम नमक मिर्च के साथ बड़े प्रेम से खाते थे।अभी सोच कर हैरानी होती है,उस उम्र में कच्चे आम भी,बड़े आराम से चबा लेते थे और दांत खट्टे नहीं होते थे।
एक रात,सब सोए हुऐ थे की बड़े जोर की आंधी आई सब बागीचे की ओर भागे हमने भी खूब आम चुने,दूसरे दिन घर की सब महिलाएं अचार खटाई वगैरा आम की व्यवस्था में लग गई ।इधर कोहबर ग्रुप की बन आई हम कच्चे, अधपके आम का बड़े चाव से कभी खट्टा मीठा अचार बनाते,कभी चटपटे आम,कभी सरसों हरी मिर्च डाल कर चटपटी चटनी बनती,किसी के पास पैसे रहे तो गरम पकौड़े और मुरमुरे की दावत होती !लेकिन ये सब कुछ गोपनीय था हमने आम काटन छिलने काटने जैसे काम के लिए चाची के मायके से मिले गृहस्थी के सामान का सहारा लिया,सिर्फ कोहबर ग्रुप की लड़कियां ही मिल कर कमरे में दावत करते।हम किसी बहाने से कमरे का दरवाजा बंद कर लेते , फिर होती हमारी पार्टी!घर भर के सभी लोगों में प्रसाद बांटना संभव नहीं था।आम के छिलकों को संदूक के नीचे छुपा दिया करते,ताकी किसी को भनक न लगे।उन्ही। दिनो चाची के मायके से संदेशे में टोकरी भर के पुरी पकवान,नमकीन मिठाईयां आईं।पुरे मुहल्ले में बयाना बांट दिया गया अब घर के लोगों की बारी थी,दादी मां व्यस्तता की वजह से बांट नहीं पा रही थीं,अचानक से लोगों ने गौर किया टोकरी का सामान खाली हुआ जा रहा था ,शंका की सुई हमारे ओर जा टिकी ,हमारे हुड़दंगी भाई कोबर में नहीं घुसने देने पर पहले से खार खाए बैठे थे ही ,उसमें से एक ने सबको बताते हुए कहा कि उसने कोबर के झरोखे से हमें कुछ खाते हुए देखा था,हमने तुरत सफाई दी हम तो सिर्फ मुरमुरे खा रहे थे,उसने चिढ़ कर कहा तो दरवाजा क्यों बंद किया था?
हमारी छुट्टी खत्म होने को थी अब सब अपनी चले जाऐंगे,ऐसा सोच कर मामले को तूल नहीं दिया गया।
हम आम की तरह खट्टी मिट्ठी यादों को लिए वापस अपने घरों को लौट आए।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

Friday, May 26, 2023

आम आम आम

 अहू बेर आम नहि फरत, गाम सं  फोन पर गप्प होई छल,ओम्हर सं दिअर छलखिन,

कहय लगला की कहु,

तेहन बड़का बिहाड़ि छल जे आम के कहै ,गाछो खसि पड़ल।मोन उदास भ गेल।

जा...आब की खैब कपार ?

आहिरे बा सबटा बिपैत आमे पर कियैक अबैत छैक,

बुझाईत अछि,भगवानो राजनीति करय लागल छथिन,

ओकरा आम जानि ओहि पर कनियो ध्याने नहि दइत छथिन।

एक आम के हजार दुश्मन!

पहिने त मजरबे में नाकुर नुकुर,

जौं मजरल त कहियो तेहन प्रचंड रौदी की सबटा मज्जर झड़ि गेल,

ताहि सं बांचल त भीषण पनि बिहाड़ि सं खतरा,

बिहाड़ि ऐबे टा करै छै ,

आ ,नहि त यै पैध पैध पाथर खसबे टा करत !

अंतत: आम आम करिते  समय बीत जाई छै, अगिला बेरक आस में।

आम नहि त गाम की ?

आबत आमक समय में,

गाम नहिए जैब,

 प्रसंगवश मोन पड़ैया,एक बेर आमक समय में ,गाम गेल छलहूं।स्कूल में पढ़ैत छलहूं तखुनके गप्प  छैक ।

गरमीक छुट्टी में हम माता पिता सब भाई बहिनं ,गाम गेलहूं। जखन स्कूल में गरमिक छुट्टी होईत छलै तखन आम पाकैक समय नहि होइत छलै, ओहि वयस में कांच, डमहैल सब नीक लगैत छल।कलम गाछी बौआबय के क्रम में एकाध टा टपकलहा कांचो आम भेटला सं मोन प्रसन्न भ जाइत छल।

संयोगवश , दुरागमन करा क जे नबकी काकी आयल छलखिन सेहो  कनिया काकी समवयस्यकी छलीह ताहि द्वारे  हमसब लड़की सबहक सबसं प्रिय स्थान छल नबकी कनिया काकीक कोबर घर । संयोगवश परिवार पैघ अछि, छुट्टीक समय छल ,घर भरल रहैत छलै।नब कनिया के मोन लगाबय क लेल हमरासब के छूट भेटल छल तैं   लोकक बीच में रहनाई जरूरी नहि छलै ,ओना अगल बगल के बाबी पीसी उपराग देबय में पाछा नहि रहैत छलखिन ,ऐकरा सब के त कत्तउ देखितो नहि छियई जे चिन्हबो करबै,जौं भेट भेल ,त 'ई की पहिरनै छहक,'

'कोना बाजय छई' , के बारे में कोनो एकटा टिप्पनी अवश्य भेटइत छल।तहि सं काते भ क   रहनाई ठीक बुझाई छल।

एक राति ,सुतलि राति में बड़का बीहाड़ि उठलै ,सब बोरा,झोरा संगे कलम गाछी पड़ैल,दोसर दिन सं सब  स्त्रीगण आम के जगह लगाबय में ,तरह तरहक अचार ,आमिल कुच्चा ,बनबय व्यस्त  रहैत छलखिन।एम्हर कोबर घरक सदस्य सबहक मौज  होबय लागल ,हमसब नब कनियाक सांठक पेटार सं हांसु बहारक,  चुपचाप कांच ,अध् पक्कू आमक  झक्का,खट्टमिट्ठी,सरिसों मिरचाई द क चहटगर बना बना क खूब खाइत छलहूं,हमरा सबहक ई  कारोबार अत्यंत गोपनीय रूप सं चलैत छल।भरि आंगन के प्रसाद बांटनाई संभव नहि छल ,लोक नई बुझै तैं,आम सोहिक छिलका  सबके संदुक तौर में नुका देल जाई छलियै ,कहियो ककरो पाई भेटल,तकर मुड़ही,कचरी के पार्टी चलैत छल। मुदा केहन केहन चतुर चालाक लोग धरा जाईयै तकर  सोझा में हमसब की छलहूं।नबकी कनिया काकी नैहर सं पूछारिक भार पठौलकनि, टोल पर बैन तिहार बांटल  गेल ,घरक लोग सब चिखबो ने केने छल की भारक चंगेरा खाली भ गेलै,  सबहक शंकाक  नोक हमरे सब दिस घुमल छलै अहुना हमर सबहक हुड़दंगी भै सब कोठाक झरोखा दक हुलकी मरिक झंकलकै त हमरा सबके किछु खाईत देखलक, शोर भ गेलई ,हमसब कतबो कहलियै,हमसब उसनल अलहुआ खाईत रहि त, पुछलकै त केबाड़ कियै ठोकल छलै?

मामला जल्दिऐ सलटि गेलई कियैक त हमरा सबहक छुट्टी खतम होबय वाला छल।

अहि तरहे हमर सबहक गामक यात्रा,आमे जकां खटगर मिठगर स्मरण के संग समाप्त भ गेल।

Monday, April 24, 2023

हक दें,इज्जत के साथ

 हमारे समाज में शिक्षक का बहुत आदर किया जाता है विश्वविद्यालय प्रोफेसरों की एक गरिमा होती है।जिन्होंने समाज को ज्ञान दिया है हम उन्हे सम्मान देते हैं। लेकिन भागलपुर विश्वविद्यालय के कुछ सेवानिवृत्त प्रोफेसरों को अपनी पेंशन के लिए यूनिवर्सिटी कार्यालय के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, उन्हे टेबल दर टेबल भटकना पड़ रहा है,यह कैसी त्रासदी है? जिन्होंने ज्ञानदान दिया,बदले में उन्हे क्या मिला?

कार्यालय के स्टाफ जिन्हें उन्होंने कभी पढ़ाया था,उनके दया के पात्र बने हुए हैं,वो भी बेचारे क्या करें,नौकरी के नियमों से बंधे हैं।
जब ये बुजुर्ग शिक्षक धूप में पसीने से लथपथ कार्यालय में दिखते हैं तो उनकी दुर्गति पर रोना आता है।
मुख्यालय में कई ऐसे, वरिष्ठ सेवा निवृत्त शिक्षक है जो सेवा निवृत होने के बावजूद पेंशन के लिए शहर छोड़ नहीं सकते।अपने एक परिचित रिटायर्ड प्रोफेसर दंपत्ति की इस व्यथा मैंने करीब से देखा है ,बच्चे साथ नहीं होते,जिसने जीवनभर सेवा की, अब उनकी सेवा कौन करे? एक तो वृद्धावस्था, बीमार तन ,उपर से विश्वविद्यालय का ऐसा अमानवीय रवैया,उनका मन व्यथित रहता है।
आखिर कोई भी इंसान नौकरी क्यों करता है ?अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए,लेकिन जब कमाए हुए पैसे नहीं मिले तो क्या करे? यह अन्याय है !अब तक जो कमाया था बच्चों को लायक बनाने में खर्च हो गए, सेवा निवृत्ति के बाद मिलने वाला धन ही उसके अपने लिए होता है, उसके बुढ़ापे का सहारा।
लोग पहले से योजना बना लेते हैं , जो पैसे मिलेंगे उनसे मकान बनवाऐंगे या अपने इलाज के लिए खर्च करेंगे।जिनके पास मकान नहीं है वो अब क्या करेंगे?पेंशन के बिना न किराया देना संभव और न कहीं जाना।कई लोग अपने बच्चों के पास जाना चाहते हैं, कोई गांव में घर बनवाना चाहते हैं ,लेकिन इस अनिश्चिता ने उन्हें बीमार कर डाला है। कईयों को तीर्थ करना था।
सबों की योजना धरी पड़ी हैं।
इन परिस्थितियों को देख कर,
संबंधित अधिकारियों से करबद्ध प्रार्थना हैं ,कि जिन्होनें अपना पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया , शहर के गणमान्य नागरिक रह चुके हैं ,
उन्होने जिस गरिमा के साथ जीवन बिताया है ,उसे कम न होने दें ,इन्हें इनका देय,अविलम्ब उपलब्ध करवाने की कृपा करें।

Thursday, April 20, 2023

हत्यारों की सोच

 मारना कितना आसान है।    

जेब से पिस्तौल निकाली और मार दी गोली।सब देखते रह गए अगर आदमी अपनी जान की परवाह किए बिना ठान ले  तो किसी को मारने से कोई रोक नहीं सकता, देख कर लगता है भारत में मौत ऐसी ही सस्ती हो गई है, शायद नहीं। जिस अतीक की सुरक्षा पर करोडों रूपए खर्च हुए थे , दो दो जिलों की पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था दांव पर थी क्योंकि अतीक को अपनी  जान पर खतरा लग रहा था ,उसकी आशंका सही निकली ,सारी सुरक्षा व्यवस्था धरी की धरी रह गई। तीन  युवाओं ने बड़े आराम से गोली मारी ,किसी पुलिस वाले ने जवाब में गोली नहीं चलाई बल्कि वे अपने आपको बचाने में लगे रहे फिर हत्यारों ने अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया ,देखते ही देखते सब कुछ हो गया ,लगता है जैसे सारा कुछ सुनियोजित हो ,यही कि तुम किसी तरह मार डालो तुम्हारी   जान की सुरक्षा हम देख लेंगे बेशक इस दुस्साहसिक घटना की  जांच की जा रही होगी, लेकिन एक और पहलू है जिस पर ध्यान देना चाहिए,वो है हत्यारों की सोच का। क्या सोच हत्यारों की रही होगी,जबकि हत्यारों की  परिवारिक पृष्ठभूमि भी आपराधिक नहीं रही हैं, ना ही वे किसी संगठन से जुड़े अपराधी थे, अपराध की इतनी बड़ी घटना को अंजाम देना उनके वश का नहीं होगा   थे जेहादी नहीं थे जिन्हे  बचपन से ही जान देना सिखाया जाता है  फिर इन युवा लड़कों की ऐसी कौन सी सोच थी जिसके तहत तीन अलग अलग क्षेत्र के लोग मिल कर एक खूंखार की हत्या के लिए तैयार हो जाते है?गौर तलब है की। हो सकता था उसमे  वे मारे भी जा सकते थे ऐसे में पैसा भी कोई मायने नहीं   रखता उनके पारिवारिक रिश्ते भी ऐसे नही थे क्योंकि घरवालों ने उन्हे छोड़ रखा था।ऐसे में उनकी इस सोच से देश के उन युवाओं की सोच का पता चलेगा जो किन परिस्थितियों मे  ये राह से भटके युवक इतना बड़ा दुस्साहसिक कदम उठाने को तैयार हो गए।अगर वे किसी तरह सजा से बच  गए तो यह हमारी न्याय व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह जरूर होगा।

Sunday, April 16, 2023

हाय !हम डिजिटल हो गए ।

 हाय हम डिजिटल हो गए ।

ऐ बिहार की जनता तुमने खूब जातिवाद कर ली ,अब लो भुगतो ,सरकार ने तुम्हारी कोडिंग कर दी है ।अब बिहार सरकार ने जातिगत कोड जारी किया है,उसमे अपना नंबर याद कर लो , हां आसपास वालों के भी करना होगा ,मतलब उलझे रहो,इस डिजिट के चक्कर में।एक हमारा आधार नंबर पहले से मौजूद है अब ये दूसरा नंबर।ये
21वीं सदी जब से आया है तब से हमें डिजिटल करने की साजिश की जा रही है

पहले हमारे  घरों को डिजिटल किया गया,  फिर गलियों मुहल्लों को।
खुशी की बात है कि अभी तक हम अपने नाम से जाने जाते है,क्या पता कुछ दिनों बाद  शायद हम भी xyz कहाने लगें । 

पहले के पते कुछ यूं होते थे,असर गंज,टेढ़ी गली, मीठी नीम में,गुप्ता जी रहा करते थे, फिर हुआ A ब्लॉक में तीसरी गली अब जब गुप्ता जी को ढूंढना हो तो पता होता है,  नाम सेक्टर/11,बलॉक/b, रोड नंबर/6,क्वाटर नम्बर 13।
हे भगवान इतना पढ़कर तो कोई मैथ्स पास कर ले।

इम्तिहानों डिजिटल मुहावरे का मतलब पूछा जाएगा

प्रश्न कुछ यूं होगा,
100 /13 की ,और 1/194 की, 
का क्या  मतलब?
 उत्तर
(100 सुनार की 1 लोहार की ,)

कहानी होगी ,एक गांव में एक गरीब 126रहता था।उसका मित्र  95 था राह में उन्हे 13 और195 मिल गए।....…
अब पढ़ने वाला के दिमाग की दही न बन जाए तो समझें ।
लेकिन हम लोग भी अपनी आदतों को भला क्यों छोड़ें? जात तो हम पूछेंगे ही।

बिहार में आपके पड़ोस में कौन आया है जानने के लिए सीधा सपाट तरीका  है पूछते हैं ,आपके पड़ोस में  ,किस जात का आदमी आया है? आने वाले की हैसियत उसकी जात से जानी जाती है अगर आपने बताया कोई  सिंह जी हैं, तो उधर से कहा जाएगा ,

ई तो नाम में सिंह  लिखा है ,चालाक बनता है, ज़रा ठीक से पता लगाईये ये कहीं142,भैंसिया के सिंग तो नहीं है?

 सरकार लाख कोशिश कर ले हम नहीं सुधरे़गे।