Thursday, June 2, 2016

ये हवा नहीं तूफान है।

मनमीत की इतनी लंम्बी तलाश ।पहले नही होती  थी बल्की किस्मत में जैसा मिला निभा लेने का चलन था ।लेकिन आजकल के युवक युवतियों का ये नया ट्रेंड चल पड़ा है अब नजारा  बदल चुका है अब बड़े शहरों में अकेली लडकियों की संख्या बढ़ रही है। ये लड़कियां  हाव भाव से दुखिया कहीं से भी नजर नही आती। अपने आप में मस्त दुनिया को अपने ठेंगे पर रखने वाली अकेली लडकियाँ पहले अकेली रहने वाली ं  आत्म निर्भर लडकियाँ  वो होती थी या तो जिनकी शादी देखने में सुंदर न होने की वजह से या दहेज नही देने के कारण नही हो पति थी ,ये बेचारियाँ मकान मालिक के संरक्ष्ण में सुरक्षित मानी जाती थी   इनके हर कदम पर नजर रखना इनका टाइमपास होता था अब ऐसा नही है मकान तय करने पर प्रायवेसी की शर्त तय  हो जाती है मिलजुल के रहे या अकेली ,अपने मन की करना पहनना ,घूमना फिरना ,वो काम जो पहले लडकों के किये जाने वाले काम मानेे जाते थे ये लडकियाँ बखूबी कर रही है। वैसे भी लडके स्कूटर बाइक चलाना छोड़ कुछ करते भी नही थे। रही पैसे कमाने की बात तो लडकियाँ किसी से कम नही कमाती हैं सबसे बड़ी जंग इन्होने अपने परिवार को शहर में अकेली रहने की बात मनवा कर जीती है। माता पिता उनसे मिलने आते हैं उन्हें खुश आत्म निर्भर ,सुरक्षित ,संयमित देख कर संतुस्ट हो कर जाते हैं .समाज में बढती तलाक  की समस्या ने उन्हें ये सोचने पर मजबूर कर दिया है की अपने मनपसन्द से शादी हो ,चाहे जिस समय मन का मीत मिले .एक और बात ये लडकियाँ बेटों से बढ़ कर घर परिवार की देखभाल करती हैं अपने शौक  से ज्यादा भाई बहन,ंमाता -पिता का इलाज हो या कोई मन में दबी कोई इच्छा .उनके मन को टोह कर वही इच्छा पूरी करना ये इनका स्टाइल है,।
आज की बेटियां मम्मी पापा के सर का बोझ नही ताज है।
एक  और नये चलन की ओर नजर जाती है इनका घर सम्हालती साफ सफाई,खाना बनाने वाली महिलाओं को  इनका सहारा .इन्होने इन्हें अपना दूसरा परिवार बना लिया है ये उनके सूख दुःख में सहारा देती हैं बदले में वे उन्हें भरोसा  देती हैं ।इनके पास उनके घरो की चाभी रहती है,घर पहुंच कर खाना तैयार मिलता है।और अकेलापन दूर करने को एक  ममतामयी महिला। जो उन्हें बड़े शहर के मतलबी दुनिया में। अपनेपन का एहसास दिलाती हैं।

दिल है कि मानता नहीं

मनमीत की इतनी लंम्बी तलाश ।पहले नही होती  थी बल्की किस्मत में जैसा मिला निभा लेने का चलन था ।लेकिन आजकल के युवक युवतियों का ये नया ट्रेंड चल पड़ा है अब नजारा  बदल चुका है अब बड़े शहरों में अकेली लडकियों की संख्या बढ़ रही है। ये लड़कियां  हाव भाव से दुखिया कहीं से भी नजर नही आती। अपने आप में मस्त दुनिया को अपने ठेंगे पर रखने वाली अकेली लडकियाँ पहले अकेली रहने वाली ं  आत्म निर्भर लडकियाँ  वो होती थी या तो जिनकी शादी देखने में सुंदर न होने की वजह से या दहेज नही देने के कारण नही हो पति थी ,ये बेचारियाँ मकान मालिक के संरक्ष्ण में सुरक्षित मानी जाती थी   इनके हर कदम पर नजर रखना इनका टाइमपास होता था अब ऐसा नही है मकान तय करने पर प्रायवेसी की शर्त तय  हो जाती है मिलजुल के रहे या अकेली ,अपने मन की करना पहनना ,घूमना फिरना ,वो काम जो पहले लडकों के किये जाने वाले काम मानेे जाते थे ये लडकियाँ बखूबी कर रही है। वैसे भी लडके स्कूटर बाइक चलाना छोड़ कुछ करते भी नही थे। रही पैसे कमाने की बात तो लडकियाँ किसी से कम नही कमाती हैं सबसे बड़ी जंग इन्होने अपने परिवार को शहर में अकेली रहने की बात मनवा कर जीती है। माता पिता उनसे मिलने आते हैं उन्हें खुश आत्म निर्भर ,सुरक्षित ,संयमित देख कर संतुस्ट हो कर जाते हैं .समाज में बढती तलाक  की समस्या ने उन्हें ये सोचने पर मजबूर कर दिया है की अपने मनपसन्द से शादी हो ,चाहे जिस समय मन का मीत मिले .एक और बात ये लडकियाँ बेटों से बढ़ कर घर परिवार की देखभाल करती हैं अपने शौक  से ज्यादा भाई बहन,ंमाता -पिता का इलाज हो या कोई मन में दबी कोई इच्छा .उनके मन को टोह कर वही इच्छा पूरी करना ये इनका स्टाइल है,।
आज की बेटियां मम्मी पापा के सर का बोझ नही ताज है।
एक  और नये चलन की ओर नजर जाती है इनका घर सम्हालती साफ सफाई,खाना बनाने वाली महिलाओं को  इनका सहारा .इन्होने इन्हें अपना दूसरा परिवार बना लिया है ये उनके सूख दुःख में सहारा देती हैं बदले में वे उन्हें भरोसा  देती हैं ।इनके पास उनके घरो की चाभी रहती है,घर पहुंच कर खाना तैयार मिलता है।और अकेलापन दूर करने को एक  ममतामयी महिला। जो उन्हें बड़े शहर के मतलबी दुनिया में। अपनेपन का एहसास दिलाती हैं।