Monday, September 28, 2020

असली स्क्रिप्ट

 हम  भारतीय आत्मा  के   अस्तित्व को स्वीकार करते हैं।सुशांत  की कथित आत्महत्या  के संदर्भ   में कहा जा सकता है कि उसकी आत्मा भटक रही होगी ,और अपनी मृत्यु की साजिश में शामिल हत्याऱों की दुर्गति पर हंस रही होगी।

कला को काला बना कर रख दिया इन  कलाकारों  ने ।ऊपर से हसीन दिखने वाली इनकी दुनिया अंदर कितनी  घिनौनी होगी, सोचा ना था ।  गला काट प्रतिस्पर्धा को अक्षरशः साबित कर दिखाया इन्होंने । क्या किसी सहकर्मी की सफलता से  ईर्ष्या की आग ऐसी की भड़क उठी की  उसे तड़पा तड़पा कर मार डाला ? और तो और उसे मरता हुआ देख रहे थे ।।ऐसी पाशविक प्रवृत्ति कलाकारों में थी? लानत है, इन्हें कलाकार कहलाने पर। अगर  यही प्रवृत्ति चलती रही तो कुछ दिनो बाद ये मरने वाले की  बोटियां काट कर खाएंगे।   ंनशे की दुनिया के ये   नसेड़ , जिनका पूरा परिवार इस नरक में डूबा है।पता नहीं ,इनका अंजाम कैसा होगा ।

अपनी लौहपुरुष,एक आदर्श भारतीय नागरिक की छवि रखने वाला कलाकार अन्दर से,इतना लाचार  और टूटा हुआ है।इंसान अपने परिवार को सुख में  रखने के लिए धन कमाता है,और वही धन इसकी बर्बादी का कारण बनता है।इन्हीं शातिर दिमाग वालों ने एक प्रतिभान नौजवान को बरगलाना शुरू किया होगा ।छोटे शहर  की,आत्मीयता के माहौल से निकल कर मुंबईया धूर्तों के बीच जा फंसा बेचारा। घात लगा कर बैठे इन दरिंदों ने कैसे कैसे कुचक्र रचे, जानकर फिल्में देखने का दिल नहीं करता ।
पहले के समय में फिल्मों को और उसमे काम करनेवालों को अच्छी नजरों से नहीं देखते थे लेकिन इन कुछ सालों में लोगों की मानसिकता बदलने लगी है जिसके कारण एक से एक सुन्दर प्रतिभावान कलाकारों कोआजीविका मिल रही ।लेकिन इस जधन्य हत्याकांड के बाद इस क्षेत्र मे आजीविका  ढूंढने वाले दस दफा सोचेंगे।इस घटना से फिल्म जगत की प्रतिष्ठा को गहरा आधात लगा है।

Monday, September 21, 2020

गांडीव उठाओ

 बिहार फिर चुनाव की चपेट में है।सोचा कुछ  लिखा जाए,पर क्यो?

कुछ नया हो,कुछ अलग हो, यहां तो 

वही आलम है,नागराज जीतेंगे या सांप राज हमे क्या?

 हमारी ड्राइंग रूम पार्टी यूं ही चलती रहे।

अपना वही पुराना राग अलाप रही हूं।

चुनाव दर चुनाव देश की जनता को एक ऐसे नेता की तलाश  है  जो पढा़ लिखा, बेदाग छवि वाला हो,जिस पर देशहित का भरोसा किया जा सके | लेकिन  हम केवल कल्पना करते हैं, पहल नही करते|
किसी दुर्घटना के बाद , सड़क जाम हो या आक्रोश दिखाने के लिऐ किया जाने वाला रोड जाम  ,प्रदर्शन  ,पुतला दहन | 
कौन करता है ये सब ?  प्रायः औसत अंक लानेवाला छात्र ,जो ऊँची पढा़ई के लिए बाहर नही जा पाते, वे ही इन कामो मे बढ् चढ् कर हिस्सा लेते हैं|
 हम -आप अपने बच्चों को इन कामों से दूर रखते हैं | उन्हे अच्छी शिक्षा लिए बाहर भेज देते हैं ।हम अपने बच्चों को अपनी घरेलू  समस्याओं से भी दूर रखते हैं , की   हमने उसकी पढा़ई के खर्चे कैसे पूरे किए  | उसे मानसिक तनाव नहो |फिर तो हमारा इतना बड़ा देश ,अंतहीन समस्यााऐं ,अगर इस ओर उलझ गया तो   पढ़ेगा कैैसे ? कब ? हां GK मे सौ मे सौ नं लाने के लिए उसे सब कुछ पता होता है |लेकिन उसे इन लफड़़ोंं से दूर रखते हैं|
कॉलेज  मे चुनाव होते हैं शुरुआत में यही बच्चे छात्र संघ का चुनाव लड़ते हैं |ये उनके राजनीति मे प्रवेश की पहली सीढी़ होती है |उसका भविष्य इसबात पर निर्भर करता है की वह कितना आक्रामक है|  यही औसत दर्जे के छात्र  अंतोगत्वा मंत्री बन जाते हैं |मंत्री बनने के बाद उनका हक है कि वह जो चाहे कानून बनाए कानून बदलें |यही हमारे नीति नियंता बन जाते हैं |आजकल किसी पार्टी का कोई सिद्धात नही होता |इसलिए जहाँ चारलोग बैठे हों और चर्चा राजनीति की हो तो  नेताओं के  गिरते नैतिक स्तर  ,उनके चरित्रहीन ,अपराधी होने की बात करते  नहीं थकते । पहले राजनीति को जनसेवा से जोड़ा जाता था हर पार्टी का अपना एक सिद्धांत हुआ करता था, लोग उसी हिसाब से पार्टी चुनते थे | लेकिन अब उसकी कोई चर्चा ही नहीं होती किसी भी तरह उद्देश्य होता है सत्ता प्राप्ति । क्योंकी जैसी सुख सुविधाएं उसे मिल रही है वह हमारे लिए दूर्लभ है | हम कुढ़ते है ,सरकारी नीतियों की निंदा करते हैं |लेकिन पहल नही करते|
अपने कमरे में  TV के सामने बैठकर  बातें करना  आसान है  दरअसल  हम  अपना  टाइम पास करते हैं  क्योंकि  हमे कोई जरूरत नहीं है   बेटे को नौकरी नहीं चाहिए  , राशन कार्ड  नहीं चाहिए   आपको डॉक्टर के लिए सरकारी हॉस्पिटल नहीं चाहिए  ।आपके पास सारी सुख सुविधाएं हैं,  इसलिए    आप वोट देने तक नहीं जाते  छुट्टियां मनाते हैं ।नेता कोई भी बने  आपको कोई मतलब नहीं 'कोहु नृृृप होहु हमे का हानि', ऐसै मे शिकायत करना  गैरवाजिब है| लेकिन  देश हम सबका है | राजनैतिक मतभेद होना अलग मुद्दा है |लेकिन सभी दलों को देशहित के मामलों मे एक मत होना होगा | अगर देश को सही दिशा मे ले जाना है तो हमे पहल करनी  होगी |राजनीति को यूँ हल्के से लेने के कारण आज नेता शब्द गाली जैसा बन गया है| राजनीति एक गम्भीर विषय है| क्योंकी किसी गलत कदम से देश ही नही विदेशों मे भी हमारी शाख कमजोर होती है| विदेशों मे रहने वाले करोडो्ं भारतीयों की उम्मीदें हमारी नीतियाँ पर टिकी होती हैं।

Friday, September 11, 2020

रिश्ता ,दिल का

 जितिया के पारण का दिन था,मैंने पूजा की,फल –मिठाइयों का भोग लगाया .मन उदास था.मुझे याद है, इन बच्चों ने ही ये व्रत शुरू करवाया था  जितिया के अगले दिन उन्हें मुझसे बड़ी शिकायत रहती थी ,क्योकि उस दिन जिन की माएं व्रत रखती थी लंच बॉक्स में बढिया –बढिया चीजें ले कर आते थे.फिर मै भी .बच्चों की पसंद के पकवान बनाती थी .अब तो त्योहारों में शायद ही कोई आ पाते हैं.बस फोन से मैं आशीर्वाद दे देती हूँ ,और वे भी अपना ख्याल रखने की हिदायतें दे देते है.मैं ये सब सोच ही रही थी की सूरज हडबडाता आया ,मेमसाब आपकी पूजा हो गयी ?सब्जी बन गयी है गरम-गरम ,पुरियां तल के लाऊं क्या?असल में साहब की तरफ से उसे सख्त हिदायत दी गयी थी की जैसे ही पूजा खत्म हो, मुझे झट से नास्ता परोसा जाय.बड़ा कठिन व्रत होता है ,फिर मेरी तबियत ठीकनहीं रहती है


                   सूरज तेरह-चौदह साल का लड़का,अब हमारे घर का सदस्य बन गया है.जब से मेरी तबियत खराब रहने लगी थी,मेरा घर में अकेला रहना थोडा असुरक्षित हो गया था. क्या पता कभी चकरा के गिर गयी तो? या फिर पांव ही फिसल जाये .हमारी कॉलोनी के पास एक बस्ती है.मेहनतकश लोगों की.कभी कभार बाजार जाने के क्रम में एक रिक्शा चालक से कहा था ,कोई घर के कामकाज में सहायता करने वाला, मिले तो बताना और ये भी जोड़ दिया था की उसके रहने, खाने-पीने दवाई-पढाई जैसी सारी जिम्मेदारी हम उठाएंगे . दो तीन दिनों बाद वही रिक्शा वाला , इसी सूरज को साथ लिए आ  खड़ा हुआ .उस वक्त इसने स्कूल ड्रेस पहना हुआ  था .उसे देखते ही मैंने उसे डाटते हुए कहा अरे ,इस बेचारे को क्यों पकड़ लाए ?इसकी पढाई छूट जायेगी.ये तो स्कूल जाता होगा.कोई गांव का गरीब हो तो लाना . उसने बोला ,मेमसाब ये मेरा ही लड़का है.मै तो रिक्शा ले के निकल जाता हूँ .मेरे पीछे ये स्कूल से भाग आता है फिर सारे दिन गली के शैतान बच्चों से मिल कर आवारागर्दी करता है .अपनी माँ का कहना नही मानता है .आपके पास रह कर सुधर जाएगा.इसकी जिंदगी बन जायेगी . मै सोच में पड़ गयी,कहीं आवारा बच्चों के साथ रह कर उन्ही जैसा बन गया हो तो हम तो मुसीबत में फंस जायेंगे .नौकरों द्वारा किये गए न जाने कई किस्से दिमाग में कौंध गए.शायद वह भी मेरे मन की बात भांप गया .कहने लगा नही-नही मेमसाब मैंने अभी तक इसे बिगड़ने नही दिया है .ये आपको कोई शिकायत का मौका नही देगा.मैंने लडके का चेहरा गौर से देखा चेहरे पर मासूमियत थी .नजरे झुकाए खड़ा था.मैंने उसे छोड़ जाने को कहा.अजनबी लोग नई जगह .उसका घर पास में था सोचा ,कहीं भाग ही न जाये .मैंने टीवी ऑन करके उसे बिठा दिया .फिर क्या था.वो मग्न हो कर टीवी देखने लगा .मेरी चिता दूर हुई .उसका अपना साबुन है .पेस्ट ,टूथ ब्रस,कंघी ,शीशा हर नए सामान को पा कर अचम्भित हो जाता था . .फिर तो सूरज ऐसा रमा की हम सारे दिन सूरज-सूरज करते रहते .वो दौड –दौड कर हमारी जरूरतें पूरी करता. सन्तान के सारे कर्तव्य वो करता. कभी- कभी तो उससे भी बढ कर उसने हमे सहारा दिया है .मैंने सूरज को प्यार से देखा वो मेरे हाँ कहने का इंतजार कर रहा था मैंने संतान को दिया जाने वाला पहला प्रसाद उसके हाथ में दे कर कहा ,जा बेटा, पहले प्रसाद खा ले फिर पूरी तलना .वो खुश हो कर अंदर भागा .

Saturday, September 5, 2020

हाउस कीपर,टीचर,, नमन है

 आज शिक्षक दिवस के मौके पर मैं दुनिया के तमाम शिक्षकों का अभिनंदन करती हूं ,और उन्हें शुभकामनाएं देती  हूं जिस सम्मान के वे हकदार हैं समाज  उन्हें वही गरिमा प्रदान करे ।आज का पूरा दिन हमनें शिक्षकों को समर्पित किया ,

लेकिन मुझे समाज से शिकायत है । आज सब  शिक्षकों का सम्मान कर रहे  हैं ।उन्हें बधाइयां दे रहे हैं, क्योंकि वे विधिवत शिक्षक है यानी किसी स्कूल या कॉलेज में पढ़ाते हैं ।लेकिन ऐसी शिक्षिकाऐं जो कहीं  नामांकित तो नहीं है लेकिन पर्दे के पीछे से अनंत काल से शिक्षा देने का काम करती आई हैं  ,उसे किसी ने बधाई नहीं दी उसके काम के महत्व को नहीं समझा।  नहीं समझे ? वही मास्टर की पत्नी मास्टरनी बोलते हैं । मास्टर की पत्नी भले ही अंगूठा छाप हो धड़ल्ले से मास्टरनी बना दी जाती है। बुलाते हो तो बधाई देने में दोहरा व्यवहार क्यों?  शिक्षक जब छात्रों को पढ़ा कर घर लौटता है घर में उसे पढा़ने मास्टरनी मौजूद रहती है‌ । स्कूल में  सख्त  माना जाने वाला मास्टर घर में पत्नी के सामने शिष्यवत बैठा रहता है। पत्नी उसे बाजार में ठगी से बचने के तमाम तरीके सिखाती है।  सावधान करती है ।मास्टरनी से  शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक झोला लेकर बाजार को निकल जाता है।   

यही हाल प्रोफेसर साहब का है ।क्लास में छात्रों को लेक्चर दे देकर जब घर लौटते हैं तो  खराब तरकारी लाने के लिए प्रोफेसराईन एक लंबा सा लेक्चर सुनाती है और प्रोफेसर साहब  सर झुका कर सुन  रहे होते हैं , मानो सब्जियां उन्होंने ही उगाई  हैं। या ठेलेवाला उनका कोई सगा है। ् इसलिए इस मौके पर मैं   मास्टरनी और प्रोफेसराईन को  बधाई देती हूं और शुभकामनाएं देती हूं उनका वर्चस्व बना रहे ।घर की बात बाहर कतई न निकले ,जिस गरिमा  से अपने पति का साथ देती हैं वही गरिमा बनी रहे ।