आज शिक्षक दिवस के मौके पर मैं दुनिया के तमाम शिक्षकों का अभिनंदन करती हूं ,और उन्हें शुभकामनाएं देती हूं जिस सम्मान के वे हकदार हैं समाज उन्हें वही गरिमा प्रदान करे ।आज का पूरा दिन हमनें शिक्षकों को समर्पित किया ,
लेकिन मुझे समाज से शिकायत है । आज सब शिक्षकों का सम्मान कर रहे हैं ।उन्हें बधाइयां दे रहे हैं, क्योंकि वे विधिवत शिक्षक है यानी किसी स्कूल या कॉलेज में पढ़ाते हैं ।लेकिन ऐसी शिक्षिकाऐं जो कहीं नामांकित तो नहीं है लेकिन पर्दे के पीछे से अनंत काल से शिक्षा देने का काम करती आई हैं ,उसे किसी ने बधाई नहीं दी उसके काम के महत्व को नहीं समझा। नहीं समझे ? वही मास्टर की पत्नी मास्टरनी बोलते हैं । मास्टर की पत्नी भले ही अंगूठा छाप हो धड़ल्ले से मास्टरनी बना दी जाती है। बुलाते हो तो बधाई देने में दोहरा व्यवहार क्यों? शिक्षक जब छात्रों को पढ़ा कर घर लौटता है घर में उसे पढा़ने मास्टरनी मौजूद रहती है । स्कूल में सख्त माना जाने वाला मास्टर घर में पत्नी के सामने शिष्यवत बैठा रहता है। पत्नी उसे बाजार में ठगी से बचने के तमाम तरीके सिखाती है। सावधान करती है ।मास्टरनी से शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक झोला लेकर बाजार को निकल जाता है।
यही हाल प्रोफेसर साहब का है ।क्लास में छात्रों को लेक्चर दे देकर जब घर लौटते हैं तो खराब तरकारी लाने के लिए प्रोफेसराईन एक लंबा सा लेक्चर सुनाती है और प्रोफेसर साहब सर झुका कर सुन रहे होते हैं , मानो सब्जियां उन्होंने ही उगाई हैं। या ठेलेवाला उनका कोई सगा है। ् इसलिए इस मौके पर मैं मास्टरनी और प्रोफेसराईन को बधाई देती हूं और शुभकामनाएं देती हूं उनका वर्चस्व बना रहे ।घर की बात बाहर कतई न निकले ,जिस गरिमा से अपने पति का साथ देती हैं वही गरिमा बनी रहे ।
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