Wednesday, February 28, 2018

अबला नही सबला।

भागलपुर की महिलाएं हमेशा से प्रखर एवं मुखर रही हैं |बात चाहे उच्चशिक्षा की हो या नौकरी की ,बल्कि अपने पारिवारिक बिजनेस को सम्हालने का काम जो प्रायः पुरुष वर्चस्व का क्षेत्र मना जाता है उसमे भी यहाँ की महिलाएं सहयोग करने में किसी से पीछे नही हैं | लेकीन इन दिनों, आये दिन महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की धटनाओं ने ये सोचने पर विवश कर दिया है , की आखिर वजह क्या है ?   हमे  पुलिस की कार्यशैली, उसकी संख्या ,एवं पुलिस के प्रति महिलाओं की सोच पर गौर करना चाहिए |भागलपुर  में अगल बगल क्षेत्रों से पड़ने आई छात्रों की संख्या में बेतहाशा वृद्घि हुई है |बढ़ते लॉज इसके उदाहरण हैं |उस हिसाब से पुलिस काफी कम है | पर उन इलाकों में नियमित गस्त से कुछ असर हो सकता है कम से कम सडक छाप मजनुओं को पकड़े जाने का डर  रहेगा पर ऐसा है नही|और सबसे बुरी बात ये है की अभीभी महिलाओं में पुलिस के प्रति वो विश्वास नही जगा है की वो निर्भीक हो कर पुलिस से सहायता ले सकें |

इन हालातों की वजह से अविभावक लडकियों को यहाँ भेजने से  कतराएँगे,जिस से जो भागलपुर महिला सश्तीकरण में काफी आगे था अब पिछड़ने लगेगा इसका सही उपाय यही है की लडकियाँ खुद को सबल बनाएं ,इतनी की उसे किसी पुलिस या  किसी के सहारे की जरूरत न हो ।        

Tuesday, February 27, 2018

बोलते अक्षर: bachhon ka mohak sansar

बोलते अक्षर: bachhon ka mohak sansar

उन्हें उड़ने दो।

हमारे गांव के पुश्तैनी मकान मे ,दिन रात फुदकती रहती थी , दो गोरैया सी  बहने  ,सोनी मोनी |माता पिता ने
अपनी  हथेली पर रख कर पाला है उन्हें | उधर दोनों बेटियां भी नाज करने  वाली हैं  |घरेलू काम में जितनी सुघड .उतनी ही ,सिलाई बुनाई में पारंगत  | हम कहते भी थे इन दो बहनों ने जादू की छड़ी छुपा के रखी होगी ,क्योंकी बड़ा सा मकान है खुला खुला सा ,चाहे उसकी सफाई हो या हमारी आवभगत ,सारा कुछ यूँ यूँ निबटा
लेती थी ।पिछली वार हम
सोनी की शादी में गये थे |रोती -बिलखती सोनी अपने ससुराल चली गयी |हम भी खूब रोए |रो -रो कर विदा किया हमारे रोने की वजह ये भी थी की अब पुरे घर की बागडोर कौन सम्हालेगा ? बिना मैनेजमेंट की पढ़ाई किये इतनी अच्छी व्यवस्था  किसी को कोई शिकायत की नौबत नही आती  थी ।अब भी  बेटी होंते ही  उसे विदा करने की तैयारी शुरू हो जाती है 


उधर प्रतिभावान बेटियों को पढाने की नही विदा करने की जल्दी रहती है ।चूँकि लडकी की कमाई नही लेने की सोच अभी भी दिमाग पर हावी है ,इसलिए उसको ज्यादा पढ़ाने की जहमत कौन और क्यों उठाएं | कोई बेटियों से पूछे ,वो भी तन मन धन से अपने माता -पिता का सहारा बनना चाहती हैं उन्हें एक मौका दे कर देखें ।

       ये तो जग जाहिर है ,कि बेटियां धन   से तो नही, पर तन मन से  परिवार, माता पिता की सेवा करती हैं।इसलिए  उन्हें भी आत्मनिर्भर बनाऐं। यकीन मानिए, वो सूद समेत  लौटाने जैसा होगा।

और आपके लिए जो  सम्मान उसके मन मे बढे़गा ,वो तो अनुभव करने की बात हैं।
 ये बाई वन ,टेक अनलिमिटेड वाला सौदा साबित होगा।






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Wednesday, February 14, 2018

आशिकाना मौसम

 लव का परब  -60 +
पाठक बाबा जब रिटायर्मेंट के बाद अपना ज्यादा समय घर में बिताने लगे तब उन्होंने देखा की पाठकाईन के रिटायर्मेंट का कोई स्कोप नही  है बल्कि उनके घर पर रहने से उनकी बिजीनेस और बढ़ ही गई है उनका घडी - घड़ी  चाय की फरमाइश ! कभी पोते को तेल लगा रही  होती थी, कभी पोती की चोटियाँ गूँथ  रही होती थीं, फिर अचार-पापड़ बड़ियाँ  तो चलती ही रहती थी ,अगर जरा फुर्सत मिली तो टी.वी.था | अलबत्ता उनके घर में रहने से उन्हें उन्हें फ्री फंड बन्दा मिल गया था जब चाहो बाज़ार र्भेज दिया  |
 इन दिनों  माहौल में वलेंटाईन  वीक की तरंग छाई थी ,बाजार में लडके बच्चे धडाधड गिफ्ट खरीद रहे थे | हुंह उन्होते मन में सोचा  ये दुकानदारी चलाने के टोटके हैं इन्हें कौन समझाए | लेकिन माहौल के तरंग का असर उन पर भी पड ही गया ,उन्हें पाठकाईन याद आ गई |लेकिन गिफ्ट के मामले में उनका सर घूम गया  साईंज, नम्बर ,छोटा बड़ा ,रंग डिजाइन कौन इन लफड़ों में पड़े |उन्होंने गुलाब जामुन और मलाई रबड़ी बंधवा लिया ,साथ में दो फूलों के गजरे  भी  ले लिए .उन्हें इन चीजों के साथ देख कर सब  हैरान हो गये बिना मंगवाए क्यों इतनी सारी  चीजें ले आए .? तभी बहु ने कहा  समझ में आ गया ,आज शिवरात्रि है। मिठाई शंकर जी को भोग  लगाने के लिए और शंकर पार्वती के लिए फूलों की माला !
जय भोले नाथ तेरी जय हो ,जय हो ,जय हो |