Wednesday, March 2, 2016

रईसों का आरामगाह

इस वार की दिल्ली यात्रा के दौरान मुझे एक महंगे  से ब्यूटी पार्लर जाने का मौका मिला। , पार्लर  जा कर सजना, मुझे  पसंद नही है  .यह   मुझे एक तरह से रचयिता  का अनादर लगता है।  भगवान ने जैसा बना  के जग में भेजा है,उसी में संतुष्ट रहो।  वैसे  हम औरतों में  श्रृंगार की प्रवृति सनातन है  ,चेहरा चाहे जैसा हो ,लेकिन हम  उसे सजा --संवार के रखते हैं  .अब तो लडकों ने भी सजना शुरू कर दिया है ,खास करके वे अपने बालों का स्टाइल  बदलते रहते हैं ,हाँ ,मूंछों का भी। बड़े  शहरों की कामकाजी महिलाओं के लिए हफ्ते में  कम से कम  एक दिन ब्यूटी   पार्लर जाने की बेशक वजह है ,इसे शौक कहें ,लेटेस्ट फैशन  के लिए ,पुरे हफ्ते की थकान दूर करने के लिए जो भी हो। हम औरते ,जीवन को रंगीन बनाती हैं। ये साज , श्रृंगार ,गहने -जेवर ,तरह , तरह की साड़ियाँ   ,कपड़े ,वरना