हम भारतीय आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं।सुशांत की कथित आत्महत्या के संदर्भ में कहा जा सकता है कि उसकी आत्मा भटक रही होगी ,और अपनी मृत्यु की साजिश में शामिल हत्याऱों की दुर्गति पर हंस रही होगी।
कला को काला बना कर रख दिया इन कलाकारों ने ।ऊपर से हसीन दिखने वाली इनकी दुनिया अंदर कितनी घिनौनी होगी, सोचा ना था । गला काट प्रतिस्पर्धा को अक्षरशः साबित कर दिखाया इन्होंने । क्या किसी सहकर्मी की सफलता से ईर्ष्या की आग ऐसी की भड़क उठी की उसे तड़पा तड़पा कर मार डाला ? और तो और उसे मरता हुआ देख रहे थे ।।ऐसी पाशविक प्रवृत्ति कलाकारों में थी? लानत है, इन्हें कलाकार कहलाने पर। अगर यही प्रवृत्ति चलती रही तो कुछ दिनो बाद ये मरने वाले की बोटियां काट कर खाएंगे। ंनशे की दुनिया के ये नसेड़ , जिनका पूरा परिवार इस नरक में डूबा है।पता नहीं ,इनका अंजाम कैसा होगा ।अपनी लौहपुरुष,एक आदर्श भारतीय नागरिक की छवि रखने वाला कलाकार अन्दर से,इतना लाचार और टूटा हुआ है।इंसान अपने परिवार को सुख में रखने के लिए धन कमाता है,और वही धन इसकी बर्बादी का कारण बनता है।इन्हीं शातिर दिमाग वालों ने एक प्रतिभान नौजवान को बरगलाना शुरू किया होगा ।छोटे शहर की,आत्मीयता के माहौल से निकल कर मुंबईया धूर्तों के बीच जा फंसा बेचारा। घात लगा कर बैठे इन दरिंदों ने कैसे कैसे कुचक्र रचे, जानकर फिल्में देखने का दिल नहीं करता ।
पहले के समय में फिल्मों को और उसमे काम करनेवालों को अच्छी नजरों से नहीं देखते थे लेकिन इन कुछ सालों में लोगों की मानसिकता बदलने लगी है जिसके कारण एक से एक सुन्दर प्रतिभावान कलाकारों कोआजीविका मिल रही ।लेकिन इस जधन्य हत्याकांड के बाद इस क्षेत्र मे आजीविका ढूंढने वाले दस दफा सोचेंगे।इस घटना से फिल्म जगत की प्रतिष्ठा को गहरा आधात लगा है।
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