आजकल मदर्स डे,या यू कहूं तो तरह तरह के 'डे' मनाने का रिवाज ही चल पडा़ है और फेसबुक पर नही दिया तो क्या किया 'जगल में मोर नाचा' मेरी बला से ,किसी ने देखा क्या?
कविता तो यूं पढ़ेंगे,मानो मां के धो कर,सिंहासन पर बिठा कर आए हों,पता है,पता है आज भी रोज की तरह न खुद चैन से खुशी खुशी बाय बोला होगा ना मम्मा मुस्कुराई होगी।फिर भी
डे क्या है ?हैप्पी मदर्स डे,
क्या सही में?
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