Sunday, May 28, 2023

आम तुम्हें प्रणाम

 इस बार भी आम नहीं फलेंगे,

गांव से फोन पर बात हो रही थी,उधर से देवर जी थे,
उन्होंने कहा क्या बताऊं, ऐसी जबरदस्त आंधी थी,तूफान की गति से हवा चली,आम की कौन कहे, पेड़ सहित जड़ से उखड़ गए।सारी फसल बर्बाद हो गई।सुनकर मन उदास हो गया ।
लगता है,आम नाम जान कर कहीं प्रकृति भी इसके साथ राजनीति करने लगी क्या?
सोचने लगी ऐसी विपत्ति आम पर ही क्यों आती है?
एक तो साल, दो साल में नानुकुर करके आम में मज्जर आते हैं,
सबसे पहले प्रचंड गर्मी इसके फूलों (मज्जर)को झुलसाती है।
उससे बचा तो इन दिनों बिन मौसम अचानक से खूब तेज हवाएं,आंधी पानी का झोंका आता है,इस समय आम इतने छोटे होते हैं की किसी काम के नहीं न अचार न चटनी अमिया असमय बर्बाद हो जाती हैं।और अंत में मौसम अपना मारक अस्त्र चलाता है,वो है ,ओला वृष्टि! जो थोड़े बहुत बचे रहते है ये ओलेराम ले डुबते हैं।
मतलब आप साल भर आम का नाम जपिए और राजा जी,यूं ही खाली हाथ टरका देते हैं।
यूं इस वार आम के दिनों में गांव जाने का मन बनाया था अपने बगीचे का ताजा आम खाए सालों बीत गए ,दरअसल हमारे इलाके में आम थोड़ी देर से पकते हैं तब तक बच्चों की छुट्टीया़ं खत्म हो जाती थी।लेकिन अब जब बच्चों की जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए तो सोचा चलकर आम खाया जाए ,पर हाय री किस्मत ,यहां तो आम ,खास क्या बनते, गायब ही हो गए।
गांव तो नहीं गई लेकिन काफी दिनों पहले जब हम आम के मौसम मैं गांव गए थे , उस समय की याद आ गई जब हम थोड़े छोटे थे।
सौभाग्य से हमारा परिवार काफी बड़ा है। गर्मियों की छुट्टी में सब सपरिवार गांव आ जाते थे, काफी बड़ा जमावड़ा हो जाता था।संयोग वश उस बार हमारे चाची जी का गौना हुआ था चाची पहली वार ससुराल आई थी और सबसे मजेदार बात ये थी की रिश्ते में चाची होते हुए भी हमारी हमउम्र थी,परिवार की सभी लड़कियों का ग्रुप नई दुल्हन चाची के इर्द गिर्द मंडराता रहता था बल्कि हमारा अड्डा चाची का कोहबर घर बन गया था।घर के लोगों ने भी हमें चाची का मन लगाने के नामपर छूट दे रखी थी। हम घरेलू कामों से मुक्त थे,सारा दिन ,बातचीत हंसी मजाक में बीत जाता ,आम का मौसम था इसलिए बगीचे से कभी एकाध कच्चा आम भी मिल जाता तो हम नमक मिर्च के साथ बड़े प्रेम से खाते थे।अभी सोच कर हैरानी होती है,उस उम्र में कच्चे आम भी,बड़े आराम से चबा लेते थे और दांत खट्टे नहीं होते थे।
एक रात,सब सोए हुऐ थे की बड़े जोर की आंधी आई सब बागीचे की ओर भागे हमने भी खूब आम चुने,दूसरे दिन घर की सब महिलाएं अचार खटाई वगैरा आम की व्यवस्था में लग गई ।इधर कोहबर ग्रुप की बन आई हम कच्चे, अधपके आम का बड़े चाव से कभी खट्टा मीठा अचार बनाते,कभी चटपटे आम,कभी सरसों हरी मिर्च डाल कर चटपटी चटनी बनती,किसी के पास पैसे रहे तो गरम पकौड़े और मुरमुरे की दावत होती !लेकिन ये सब कुछ गोपनीय था हमने आम काटन छिलने काटने जैसे काम के लिए चाची के मायके से मिले गृहस्थी के सामान का सहारा लिया,सिर्फ कोहबर ग्रुप की लड़कियां ही मिल कर कमरे में दावत करते।हम किसी बहाने से कमरे का दरवाजा बंद कर लेते , फिर होती हमारी पार्टी!घर भर के सभी लोगों में प्रसाद बांटना संभव नहीं था।आम के छिलकों को संदूक के नीचे छुपा दिया करते,ताकी किसी को भनक न लगे।उन्ही। दिनो चाची के मायके से संदेशे में टोकरी भर के पुरी पकवान,नमकीन मिठाईयां आईं।पुरे मुहल्ले में बयाना बांट दिया गया अब घर के लोगों की बारी थी,दादी मां व्यस्तता की वजह से बांट नहीं पा रही थीं,अचानक से लोगों ने गौर किया टोकरी का सामान खाली हुआ जा रहा था ,शंका की सुई हमारे ओर जा टिकी ,हमारे हुड़दंगी भाई कोबर में नहीं घुसने देने पर पहले से खार खाए बैठे थे ही ,उसमें से एक ने सबको बताते हुए कहा कि उसने कोबर के झरोखे से हमें कुछ खाते हुए देखा था,हमने तुरत सफाई दी हम तो सिर्फ मुरमुरे खा रहे थे,उसने चिढ़ कर कहा तो दरवाजा क्यों बंद किया था?
हमारी छुट्टी खत्म होने को थी अब सब अपनी चले जाऐंगे,ऐसा सोच कर मामले को तूल नहीं दिया गया।
हम आम की तरह खट्टी मिट्ठी यादों को लिए वापस अपने घरों को लौट आए।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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