Thursday, April 20, 2023

हत्यारों की सोच

 मारना कितना आसान है।    

जेब से पिस्तौल निकाली और मार दी गोली।सब देखते रह गए अगर आदमी अपनी जान की परवाह किए बिना ठान ले  तो किसी को मारने से कोई रोक नहीं सकता, देख कर लगता है भारत में मौत ऐसी ही सस्ती हो गई है, शायद नहीं। जिस अतीक की सुरक्षा पर करोडों रूपए खर्च हुए थे , दो दो जिलों की पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था दांव पर थी क्योंकि अतीक को अपनी  जान पर खतरा लग रहा था ,उसकी आशंका सही निकली ,सारी सुरक्षा व्यवस्था धरी की धरी रह गई। तीन  युवाओं ने बड़े आराम से गोली मारी ,किसी पुलिस वाले ने जवाब में गोली नहीं चलाई बल्कि वे अपने आपको बचाने में लगे रहे फिर हत्यारों ने अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया ,देखते ही देखते सब कुछ हो गया ,लगता है जैसे सारा कुछ सुनियोजित हो ,यही कि तुम किसी तरह मार डालो तुम्हारी   जान की सुरक्षा हम देख लेंगे बेशक इस दुस्साहसिक घटना की  जांच की जा रही होगी, लेकिन एक और पहलू है जिस पर ध्यान देना चाहिए,वो है हत्यारों की सोच का। क्या सोच हत्यारों की रही होगी,जबकि हत्यारों की  परिवारिक पृष्ठभूमि भी आपराधिक नहीं रही हैं, ना ही वे किसी संगठन से जुड़े अपराधी थे, अपराध की इतनी बड़ी घटना को अंजाम देना उनके वश का नहीं होगा   थे जेहादी नहीं थे जिन्हे  बचपन से ही जान देना सिखाया जाता है  फिर इन युवा लड़कों की ऐसी कौन सी सोच थी जिसके तहत तीन अलग अलग क्षेत्र के लोग मिल कर एक खूंखार की हत्या के लिए तैयार हो जाते है?गौर तलब है की। हो सकता था उसमे  वे मारे भी जा सकते थे ऐसे में पैसा भी कोई मायने नहीं   रखता उनके पारिवारिक रिश्ते भी ऐसे नही थे क्योंकि घरवालों ने उन्हे छोड़ रखा था।ऐसे में उनकी इस सोच से देश के उन युवाओं की सोच का पता चलेगा जो किन परिस्थितियों मे  ये राह से भटके युवक इतना बड़ा दुस्साहसिक कदम उठाने को तैयार हो गए।अगर वे किसी तरह सजा से बच  गए तो यह हमारी न्याय व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह जरूर होगा।

No comments:

Post a Comment