लव का परब -60 +
पाठक बाबा जब रिटायर्मेंट के बाद अपना ज्यादा समय घर में बिताने लगे तब उन्होंने देखा की पाठकाईन के रिटायर्मेंट का कोई स्कोप नही है बल्कि उनके घर पर रहने से उनकी बिजीनेस और बढ़ ही गई है उनका घडी - घड़ी चाय की फरमाइश ! कभी पोते को तेल लगा रही होती थी, कभी पोती की चोटियाँ गूँथ रही होती थीं, फिर अचार-पापड़ बड़ियाँ तो चलती ही रहती थी ,अगर जरा फुर्सत मिली तो टी.वी.था | अलबत्ता उनके घर में रहने से उन्हें उन्हें फ्री फंड बन्दा मिल गया था जब चाहो बाज़ार र्भेज दिया |
पाठक बाबा जब रिटायर्मेंट के बाद अपना ज्यादा समय घर में बिताने लगे तब उन्होंने देखा की पाठकाईन के रिटायर्मेंट का कोई स्कोप नही है बल्कि उनके घर पर रहने से उनकी बिजीनेस और बढ़ ही गई है उनका घडी - घड़ी चाय की फरमाइश ! कभी पोते को तेल लगा रही होती थी, कभी पोती की चोटियाँ गूँथ रही होती थीं, फिर अचार-पापड़ बड़ियाँ तो चलती ही रहती थी ,अगर जरा फुर्सत मिली तो टी.वी.था | अलबत्ता उनके घर में रहने से उन्हें उन्हें फ्री फंड बन्दा मिल गया था जब चाहो बाज़ार र्भेज दिया |
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