Saturday, June 10, 2017

आशंकित मन

निष्ट्ब्ध रातें मुझे बहुत डराती हैं .कहीं से कोई आवाज नही आती है .इस सृष्टि में न जाने कितने तरह के जीव जन्तु है जो बरसात के महीनों में इस कदर शोर मचाते हैं की कभी डर सा लगने लगता है कहीं ये कोई साजिश न रच रहे हों .पर अभी उनको क्या हो गया है ,क्या वो भी मेरी तरह ,खुली आँखों से चुपचाप किसी अनहोनी की आशंका से डर से शांत हो गये हैं .अरे कोई कुछ तो बोलो ,अच्छा नही तो बुरा ही बोलो ,ये सन्नाटा क्या सही में तूफान लायेगा ?चलो वो भी सही .कुछ होगा लोग अपने अपने अनुभव बताएँगे ,कोई फोन से चीख चीख कर अपनी बात बोलेगा . हो जाएगी चहल पहल तभी अजान की आवाजें आने लगी ,तो सबेरा हो चला .दरवाजा खोल के बाहर निकली ,सामने सूरज का लाल गोला ,हंसता हुआ सा लगा ,जैसे कह रहा हो ,पगली ,डर रही थी ? मै आ ही रहा था ,सचमुच वक्त पर सब हो जाता है .हम खामखा घबराए से रहते हैं .

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