इसवार की बाढ़ ने जो तबाही मचाई है वह अकल्पनीय था,
जिससे उबरने में लोगों को न जाने कितना वक्त लगे,ऐसा भी हो सकता है की शायद तब तक फिर से मानसून का मौसम फिर आ धमके क्योंकी सरकार कभी बाढ़ की समस्या का स्थाई समाधान नहीं करती बस फौरी तौर पर कुछ राहत सामग्री बांट कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त समझ लेती है।
यह कटू सत्य है कि बाढ़ के मौसम को सरकारी महकमे में बहार का मौसम माना जाता है,राहत सामग्री के घपले अक्सर उजागर होते रहते हैं।
साल दर साल बढ़ती इस विनाशलीला को रोकने के लिए सिर्फ सरकार के किए कुछ नहीं होगा जबतक हम खुद सतर्क न हों।इसमें सबसे अहम मुद्दा पर्यावरणीय उपाय का पालन करने का है।हमने पेड़ काटे ,नतीजा सामने है।
इस बाढ़ की त्रासदी से कितना नुकसान हुआ ,कितनी जाने गई ,ये बाद मे देखा जाएगा।पर जो जीवन के लिए संघर्ष कर रहे है, उनके लिए जल जीवन नही काल बन कर आया है।न जाने कितनो को लीला है और कितनो को् लीलेगा।कुछ क्षेत्रो मे बाढ़ हर साल आती है।कोई वैकलपिक व्यवस्था नहीं है नीतीश कुमार हर बार हवाई दौरा करते हैं खिड़की से झाक कर ,जाने क्या ढँढ़ती है ये आँखें उनकी ,ब़ाढ मे कुछ मिला क्या ? नही न .
फिर हुलकते क्या हो।इसके बदले बाढ पीडित की कुछ सहायता करतेे ।हवाई सर्वेक्षण फिजूलखर्ची है।अगर नीयत सही है ,सहायता कहीं से हो सकती है।
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