रोज
की नीरस दिनचर्या, संवेदनहीन समाज , ईर्ष्यालु लोग ,छद्म आचरण ,कूटचाल. नहीं ये
दुनिया मेरे लिए नहीं है .जी करता है, भाग जाऊं कहीं
दरवाजे
की घंटी बजती है ,खोलना पडेगा .
जी
करता है, भाग जाऊं कहीं !
जी
भर के सोऊँ .
कमरे
में धूप घुस आए ,तब भी !
तकिये
के नीचे सर छुपा कर ,
देर
तक ,सोती रहूँ.
उनिंदी
आखों से चाय बनती हूँ .
बाई
को खुश ,रखने के लिए !
भाdhड
में जाये ,बाई !
जी
करता है ,भाग जाऊं कहीं !
नींद
खुलते ही गरमा-गरम चाय का प्याला ,
मिल
जाये ,तो मजा आ जाये !
लोग
आते हैं ,चेहरे पर मुस्कान सजाये ,
शब्दों
का आडम्बर ,भीतर से खोखलापन !
जी
करता है ,भाग जाऊँ कहीं !
कोई
तो करे ,सच्चे मन से बात ,
दिल
तोड़ने नहीं .दिल जोड़ने की बात !
.
कितने आश्चर्य कि बात है कि दिल्ली और भागलपुर, दोनों में एक जैसा ही महसूस करते हैं हम दोनों ! चलो साथ में भाग चलते हैं कंही। कसी पहाड़ वाली जगह पे... वहाँ अपना स्कूल खोलते हैं...
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