Saturday, January 2, 2016

स्वागत है नया साल!

हम कार्ड बनाया करते थे।  थोड़ा मोटा चार्ट पेपर, स्केच पेन, वेलवेट पेपर, वाटर कलर, गोंद, कैंची....  दिसंबर आते ही भाइयों से ख़ुशामद करके सारी चीज़ें मंगवायी जाती थी। स्कूल में परीक्षाओं के बाद छुट्टियाँ होते ही कार्ड बनाना शुरु हो जाता था। सबसे बड़ी बात आईडिया की होती थी - इस बार क्या नया बनाया जाये? कभी वाटर कलर के ब्रश से छींटें मारकर, कभी ऊपर से वेलवेट पेपर की तितली बनाकर, कभी कतरनों से कार्टून बनाकर  - सब तरीकों  से कार्ड को सजाते थे।  एक बार सोनी ने एक सुन्दर सा कार्ड भेजा। उस पर लाल और हरे ऊन से चिपकाकर फूल-पत्तियाँ बनाये थे।  हमें वो आईडिया बड़ा अच्छा लगा। फिर अगले साल हमने वैसा भी कार्ड बनाया था।  हमें एक नया आईडिया मिल गया था। 

आजकल नया साल आ रहा है लेकिन लगता नहीं है कि कुछ नया होने जा रहा है। हाँ, घर के कैलेंडर जरूर बदल जायेंगे।  बस और क्या।  नए साल पर ग्रीटिंग कार्ड का रिवाज़ तो अब बंद ही हो गया है।  पहले उसकी जगह फ़ोन ने ले ली। तब भी ठीक था , अपने लोगों की आवाज़ सुनकर हम थोड़ी बहुत तसल्ली कर लेते थे।  लगे हाथ दो टूक बतिया लेते थे।  हाँ, उस समय कॉल रेट ज़्यादा थी, लम्बे समय तक गपियाते नहीं थे।  अब तो SMS  से काम चला लेते हैं।  कभी बैठ कर सबके मैसेज पढ़ लो, बस हो गया।  अब फ़ोन कॉल सस्ते हैं, फिर भी लोग कम बातें करते हैं।  

मुझे लगता है कि संवाद होते रहना चाहिए।  इस से अकेलेपन का एहसास कम होता है।  लेकिन करें क्या? लोगों के पास वक़्त की बेहद कमी हो गयी है।  जिनके पास वक़्त है, उनसे कोई बतियाने वाला नहीं है। 

फिर स्वागत है नया साल, स्वागत है! 

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