Monday, September 13, 2010

दोहरी ज़िम्मेदारी

हमारे पड़ोस में एक दंपत्ति रहते हैं। दोनों कमाते हैं. पति अच्छा खासा कमाता है .लड़की बीमार रहती है.फिर भी शाम को जल्दी आ कर खाना बनती है. मैंने उस से पूछा - क्या तुम्हारा नौकरी करना इतना ही जरुरी कि तुम्हारी सेहत ही ख़राब हो जाये? उसने कहा फिर मेरी पढाई का क्या मतलब रह जायेगा. यानि आज कल कि लड़कियों कि आम सोच मतलब नौकरी - चाहे वो किसी भी कीमत पर मिले. उनको अभी ये समझ नहीं आ रहा है कि अपनी सेहत और अपने बच्चों के मानसिक विकास के रूप में वे कितनी बड़ी कीमत चुका रही हैं. प्रकृति ने तो अपने हिसाब से बड़ी बढिया व्यवस्था की- पुरुषों को मेहनत कर कमाने के लिए बनाया और औरतों को एक महान काम - पुनर्निर्माण - की जिम्मेदारी दी. उसने उसे कोमल और सुन्दर बनाया - वह प्राकृतिक रूप से कोमल होती है इस लिए उसे मेहनत वाले काम करने ही नहीं चाहिए, जीवन में रंग भरने के लिए उसे सुन्दरता मिली है, लेकिन आजकल सभी मूल व्यवस्थाओं में उलट फेर हो रहा है .चाहे वह पर्यावरण हो या मानव जीवन -ज्यादातर खामियाजा औरतों को ही भुगतना पड़ता है, अपने को ज्यादा काबिल साबित करने का चक्कर कहिये या आत्मनिर्भर होने कि इच्छा, आजकल की लड़कियां अपने सर पर दोहरी जिम्मेदारी ढो रही हैं.

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