Friday, December 31, 2010

गाम चलू

बहुत दिन बाद गाम गेल छलहूँ , बस पर सं उतरिते एक टा रिक्शावाला लग में आबी क अप्पन रिक्शा ठाड़ क
देलक आ हिनका पुछ्ल्क्नी ,मालिक ,अहि बेर त बहुत दिन बाद एलियाई ?अपने हँसैत बजल खिन हं रौ बेसिए व्यस्त भय गेल छलहूँ आब ओकरा पुछ्ल्खिन तोहर की हाल-चाल ?कह लागल ,हुजुर ,ठिक्के हाल हई,एक्को गो बाल-बच्चा लग में नहि हई बेटी त ससुरे बसई हई ,आ तीनू बेटा दिल्ली कमाई हई तखन ,कहलखिन बाज कतेक पैसा किराया लेबही ओ कहलकनी , बेसी नईलेब हुजुर ,खाली पचीसे टा द देब .हम सब रिक्शा पर बईस गेलहूँ .तखन अपने कहलखिन ,अहि बेर त तोहर किराया दुन्ना बुझाइए ,ओ बाजल,ई सं कम में नहि पोसाए हई .
अंगना ,पहुंचला के बाद हम भगवती के गोड़ लागे लेल गेलहुं आ अपने माय के प्रणाम केला के बाद

कहलखिन ,-जौं,दू कौर भात छौक त अहि रिक्सावाला के परसि दहीं
हम शहर आ गामक अंतर करय लगलहुं.आई जाही शहर में हम पचीस -तीसबरख सं रहिरहल छि शायदे कोनो रिक्शावाला या एहने कोनो अन्य आहां के व्यक्तिगत रूप सं चिन्हैत हैत. छोट शहर में त तैयो ठीक छैक पैघ शहर में त आहां सिर्फ नंबर सं जानल जाई छि ,लोकक भीढ़ में सिर्फ एक चेहरा बस .अपन जिंदगी भरि के कमाई सं जौं आहां एक टा विशाल मकान बनैयो लैत छि त ताहि सं की ,नगर निगम द्वारा आहां के एक टा नया नंबर द देल जाईया, दू चारी टा अड़ोसी- पडोसी किछु मित्र परिचित ,परिजन के बुझेतई ,यएह की नई? आब आहां सोचु की अगर अपन गाम पर जौं आहां ओहने मकान बनबैत छि त लागत त कम लगबे करत ,ओही पूरा इलाका में आहां अपन मकान सं चिन्हल जायब अपना गाम घर दिश अखनो लोग सुन्दर पैघ मकान कम्मे बनबैत छैक -मिथिलाक गाम जन शुन्य भेल जा रहल अछि ,प्रायः इ देखल जा रहल छैक जे ,जौं एक बेर गाम छोड़ी क बहरा गेला से फेर घुरि क गाम बसै लेल नहि अबैत छैत.
हम समस्त मैथिल जन सं आग्रह करैत छियैन ,जे ओ सब फेर घुरि क अप्पन गाम आबिथआ ओत्तही बसिथ .अप्पन मिथिलांचल में आहां के स्वागत अछि .....

1 comment:

  1. hamne aapka blog pdha kafi pasand aaya .aapka pryas srahneey hai .

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