कौन सा नेता अपनी बातों को कितने प्रभावशाली रूप में रख रहा है बस इसी का खेल है. वैसे माने तो शब्दों की बाजीगरी बहुत बड़ा गुण ही है. किसी मुद्दे को उठाकर लोगों का ध्यान उसकी तरफ खींचना एक कला ही तो है.
जब आप नेताओं का भाषण सुनते हैं तो मन अभिभूत हो जाता है. अपनी पार्टी के प्रत्याशी का ऐसा वर्णन, मानो वही एक मात्र हैं. लेकिन भाषण सुनकर जब आप अपने घर की टूटी फूटी सड़क, गन्दी गलिओं से लौट रहे होते हैं तो सारा भ्रम दूर हो जाता है.
मन दिग्भ्रमित है, बड़ी असमंजस की स्थिति है.
अपना वोट किसे दूँ?
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