हे भवानी , दुःख हरु माँ ,पुत्र अप्पन जनि कय
दयरहल छी कष्ट भारी बीच विश्व में आनि कय ,
अखन मिथिलांचलक घर आँगन ,प्रत्येक मंदिरक प्रांगन अहि तरहक गीत सं गुंजायमान होयत .भगवान मनुष्य केकतबो कियक ने द दौकमुदा ओ भगवती क आगांसदैब दीन-हीन ,प्रार्थी बनल रहैत अछि .मिथिलाक गीत में जेहन अटूट श्रधा ,समर्पण ,विनय क तत्त्व रहैत छैक जे मोन भाव विभोर भ जैत छैक .हम कतेको गीत सुनैत छियैक लेकिन अहन भाव -प्रवणता अन्यत्र कहाँ?सम्पूर्ण वातावरण देवीमय बनल रहैत छैक .एक भोरे अन्हारे सं फूल लोधय के काज सं पूजा के ओरीयानक कार्यक्रम आरम्भ होइत छैक से चीनबार निपनाई, सराई -लोटा ,मज्नाई ,पूजा -पाठक व्यवस्था ,भोग इत्यादी करैत -करैत अबरे भ जैत छैक .दिन कोना बीत जैत छैक नहि बुझैत छई. तैं कनिए काल बाद ,संध्या आरती समय भय जैत छैक. अंतिम तिन चारि दिन मेला देखबाक उल्लास अखनो गाम घर में छैक. भगवतीक दर्शन तं प्रमुख कारन रहिते छैक। ओ गामक मेला में झिल्ली -मुढ़ी ,कचरी क आनंद ,गरम जिलेबी क अपूर्व स्वाद, शहरक पिजा -बर्गर में कहाँ ? भागलपुर जिला में एकटा गाम छैक भ्रमरपुर, ओत्तुका भगवती के बड़ महिमा छनि ओही गामक लोग सब ,नियम कयने छथि जेओ सब कत्तहु कमाय-खाय लेल कियैक ने बसी गेल होथि,शारदीय नवरात्रा में सब गोटेअप्पन गाम अवस्य अबैत छथि आ भगवती क आशीर्वाद ले क धन्य होइत छथि हमरा त इ परम्परा बड्ड निक बुझाइत अछि तें हम सब सं आग्रह करब जे अप्पन गामक भगवती के नहीं बिसरू ,अपन घर- घरारी के वैह कल्याण करती, इति शुभ.
No comments:
Post a Comment