Monday, October 11, 2010

इस वार का कॉमन -वेल्थगेम्स हमने भी देखा
खेल देखने के अनुभव को मैं दो भागों में बाटना चाहती हूँ पहले हिस्से में खेलों के दौरान दिल्ली में रहने से ले क़र टिकट कटाने का है
जो लोग दिल्ली में नहीं रहते हैं ,उन लोगों को जरूर इस बात से बड़ी इर्ष्या हो रही हो गी कि काश इन दिनों हम भी दिल्ली में रहते .लेकिन हमारी जो गति हो रही है सो हम ही जान रहे हैं .खेल शुरू होने केपहले ही हमने पंद्रह दिनों का रसद -पानी ,जरुरी सामानखरीद क़र रख लिया था .अभी तो कहीं आने जाने कि सोचना भी मुस्किल है ,जो लोग घर से निकलते हैं उनके घर लौटने के समय का कोई ठीक नहीं रहता है ,सब्जी -फल वालों के ठेले हटा लिए गए हैं इस लिए एक तो मिलनी दिक्कत और अगर मिल भी गयी तो औने -पौने दामो पर मिल रही हैं
खेलों के टिकट स्टेडियम के पास नहीं मिलते .किन्ही खास जगहों पर या ऑन लाइन मिलते भी हैं तो कहीं जा क़र आपको लेना पड़ता है .मतलब ये कि अगर कामकाजी आदमी खेल देखना चाहे तो सिर्फ एक खेल देखने के लिए उसे अपना पूरा दिन लगाना पड़ेगा दुसरे खेल के लिए उसे फिर से छुट्टी लेनी पड़ेगी.टिकट लेने के लिए आपको अपना कोई पहचान पत्र ले क़र जाना होगा ,और खेल lदेखने जाने में तो ,आप कुछ भी नहीं ले जा सकते हैं इन सब चीजों कि पूर्व जानकारी कहीं भी नहीं दी जाती है
हमने जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम का टिकट लिया था ,मकसद यही था खेल के साथ-साथ मुख्यस्थान देखना और एक साथ कई खेल देख लेना
नेहरू स्टेडियम वाकई विश्व स्तरीय बन पड़ा है वो तमाम चीजें और सुविधाएँ वहां हैं जो अब तक हम विदेशों में देखा करते थे .
स्टेडियम के चारों ओरअभूत पूर्व सुरक्छा व्यवस्था कि गयी है .भले ही जिसके चलते लोगों को काफी चलना पड़ता हो .हर टिकट में मेट्रो से जान-आने कि सुविधा दी गयी है साफ सफाई तो ऐसी किलगता ही नहीं है कि वो ही दिल्ली है वाकईदिल्ली को काफी खूबसूरती से सजाया गया है फिल हाल ऑटो वाले भी पुलिस के डर से अनाप -सनाप भाडा नहीं वसूल रहे हैं चप्पे- चप्पे पर पुलिस तैनात हैं कहीं से भी कभी भी आओ -जाओ कोई डर कि बात नहीं .
इन खेलों के आयोजन से दिल्ली वासियों को कई फायदे हुए हैं ,जैसे मेट्रो सेवा का विस्तार ,नेहरु स्टेडियम कई फ्लाई ओवर कई जर्जर सड़कों का पुनः -उध्हारऔर सबसे बड़ी बात इस बात का आत्म विस्वास जगा है कि अपने देश में भी इतना बड़ा आयोजन हो सकता है

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