दिल्ली मे बिहारी भरे पडे हैं मुझे तो लगता है .अब दिल्ली मे दिल्ली वाले कम बाहरी ज़्यादा हो गये होंगे .लेकिन जैसा मैने महसूस किया यहाँ बिहारियों को वह सम्मान नही मिलता है जो उन्हे मिलना चाहिए . ऐसा शायद इसलिए होता हो की यहाँ के लोगो को प्रायः ऐसे बिहारियों से ज़्यादा सामना होता है जो छोटे -मोटे काम धंधों से लगे हुए हैं . आम जीवन मे ऑटो वाला, फल-सब्जियों की रेढ़ी वाला , डिलीवरी बॉय , सेल्स मेन, इत्यादि प्रायः बिहारी भाई ही मिल जाते है . कभी आप बिहार से आने वाली ट्रेन के समय स्टेशन पहुँच के देख लें ऐसा लगता मानो बिहारियों का एक रैला दिल्ली मे समाने आ रहा हो . इसमे होते तो सभी तबके के लोग हैं लेकिन अधिकतर संख्या उन लोगों की होती है जो आजीविका की तलाश मे यहाँ आते हैं . यहाँ के लोगो से जल्दी से जल्दी घुल-मिल जाने की इच्छा के कारण ये दिल्ली की धरती पर पैर धरते ही यहाँ की तेरी -मेरी बतियाना शुरू कर देते हैं मैने एक ऑटो वाले को रोका जो पक्का बिहारी ही था पूछने लगा तुम कहाँ जाओगे जी? मैने मन ही मन मे सोचा वहाँ तो हम सब को आप कहते है . यहाँ मे इसके माँ के उम्र की हूँ फिर भी मुझ से तू तड़क कर रहा है ....अपनी बोली , अपनी संस्कृति ,अपने रीति- रिवाज ,....बिहारियों की भाषा मे जो मिठास अपनापन है दूसरों के प्रति जो इज़्ज़त है आप उसे तो ना छोड़िए .
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